पेट की खातिर रोज मौत के कुए में उतरते है महाराणा प्रताप के वशंज

शिवपुरी। कहते है कि पेट के खातिर मरता न तो क्या करता यह कहावत चरिर्थात हो रही है। ग्राम नया बलारपुर के पास बंजारा बस्ती में। बताया गया है कि यह बस्ती के सभी परिवार अपना पेट भरने के लिए पोतनी की कुएं नुमा खदाने में पोतनी खोदने के लिए उतरते है। 2 साल में इन खदानो में ादान धसकने से 3 पुरूषो और कई बच्चो की मौत हो चुकी है।  

जानकारी के अनुसार शिवपुरी शहर से 20 किलोमीटर दूर ग्राम नया बलारपुर के पास बंजारा बस्ती के चार सैकड़ा लोग खुद को खतरे में डालकर पेट पालते हैं इनमें मासूम बच्चे भी शामिल हैं स्थिति यह है कि यहां बस्ती से पांच किलोमीटर दूर स्थित सफेद मिट्टी की खदान से बंजारा बस्ती के लोग पिछले एक दशक से पोतनी खोदकर अपनी आजीविका चला रहे है। 

इस काम में मासूम बच्चों से लेकर महिलाएं भी अपने परिवार का हाथ बंटा रही हैं इन परिवारों में हर रोज तभी चूल्हा जलता हैए जब इनकी खदानों से निकली पोतनी गांव-गांव में जाकर बिकती है दो साल में बंजारा बस्ती के तीन लोग खदान धंसकने से जान गंवा चुके है।

सुरवाया थाना क्षेत्र में पिछले एक दशक से पोतनी को अपनी आजीविका बना चुके खानाबदोश बंजारों के परिवार पोतनी खोदकर हर रोज गांव गांव में बेचने जाते हैं यहां आधा किलो गेहूं में ग्रामीणों को पांच किलो पोतनी बेची जाती है वहीं पोतनी से भरी बैलगाडी के ऐवज में बंजारों को 200 से 250 रुपए मिलते हैं।

पोतनी की खदान पर काम करते समय बंजारा बस्ती के कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं यहां खदान धंसक जाने से पिछले दो सालों में अभी तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है बंजारा बस्ती के भोला बंजारा का कहना है कि खदान में पोतनी खोदते समय उनके भाई गुलाब व हरी बंजारा सहित तीन लोगों की खदान में दबकर मौत हो चुकी हैए साथ ही खदान पर काम करते समय कई बच्चे भी दबकर हादसों का शिकार हो चुके है। 

 जब बंजारा बस्ती के लोगों से इस संबंध में चर्चा की तो बंजारा बस्ती के लोगों का कहना था कि बस्ती में उनके पचास के आसपास परिवार हैं और वह पिछले 10 साल से खदान से पोतनी खोदकर परिवार की आजीविका चला रहे हैं इसके अलावा उनके पास परिवार की आजीविका के लिए कोई साधन नही हैं बस्ती वालों का यह भी कहना था कि आज तक कोई भी प्रशासन का अधिकारी या नेता कभी उनके हाल चाल जानने नहीं पहुंचा यही वजह है कि इन पचास परिवारों की जीविका अब पूरी तरह से पोतनी पर निर्भर है। 

बताया गया है कि खुदाई का काम इस बस्ती के बच्चे ही करते है क्यो कि बच्चे होने के कारण इन कुएंनुमा खदानो में आसानी से काम कर लेते है। अपना पुश्तैनी काम करने के कारण इन बच्चो के हाथो ने बस्तो के जगह पोतनी खोदने के हथियाद औजार पकड लिए है।