परशुराम कथा: बलि प्रथा के विरोधी थे भगवान परशुराम

शिवपुरी।। आर्यावर्त के राजा हरीशचंद्र को जलोदर की बीमारी हो गई थी। इसके उपचार के लिए किसी बालक के बलि देने की सलाह दी गई तब ब्राह्मण अजीगर के बालक सुनाशेव को बलि के लिए सुनिश्चित किया गया। यह खबर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पहुंची जहां भगवान परशुराम ज्ञानार्धन कर रहे थे।

परशुराम ने इस प्रथा का यहीं विरोध करने का संकल्प लिया। आज यह जानकारी परशुराम का पारायण कर रहे पं. रमेश शर्मा ने श्रोताओं को दी।

जब वशिष्ठ के आश्रम में बालक की बलि दी जाने की खबर पहुंची तो परशुराम हतप्रभ रह गए। उन्होंने गुरू वशिष्ठ को कहा कि क्या आप राजा हरीशचंद्र का उपचार तप और बल से नहीं कर सकते जिससे किसी बालक की बलि नहीं देनी पड़े।

वशिष्ठ बोले- मैं तप, बल से बलि को नहीं रोक सकता, किन्तु तुम हरीशचंद्र की सभा में जाकर इस बलि का विरोध करो और वरूण का आव्हान करके महाराजा का उपचार कराओ।

परशुराम तुरंत अपने चार मित्रों के साथ हरीशचंद्र के दरबार में पहुंच गए वहां परशुराम के पिता जमदग्रि और विश्वामित्र भी उपस्थित थे।

यहां परशुराम ने राजा को अपना परिचय भार्गव परशुराम कहकर दिया और महर्षि जमदग्रि को अपना पिता बताया। राजा ने तुरंत परशुराम को स मान दिया और उनके आने का कारण जाना। तब परशुराम ने कहा कि आप अपनी बीमारी के उपचार के लिए एक बालक की बलि दे रहे हैं।

क्या इस बलि के बिना आपका उपचार नहीं हो सकता? परशुराम ने कहा- क्या कोई देवता किसी प्राणी को ग्रहण कर सकता है।

यह काम तो दैत्यों का है जो मनुष्यों का रक्त पीते हैं। राजा ने कहा कि मैंने बलि के लिए नहीं कहा और न ही मैं अपने उपचार के लिए किसी निर्दोष बालक की बलि चाहता हूं। तब परशुराम ने प्रसन्न होकर वरूण के आव्हान की अनुमति मांगी, उन्हें अनुमति दी गई।

परशुराम ने वरूण का आव्हान किया जैसे ही सभा स्थल के वायु मंडल में वरूण के आने का आभास हुआ वैसे ही वातावरण रोमांचित हो गया।

चंूकि वरूण जल के देवता मानेे जाते हैं जैसे ही वे प्रगट हुए उन्होंने राजा की जलोदर बीमारी को हर लिया। तब राजा ने बालक सुनाशेव को मुक्त करने का आदेश दिया। इस तरह से भगवान परशुराम समाज में व्याप्त बलि प्रथा जैसी कुरीति को दूर करने के लिए सामने आए।