मकर संक्रांति पर्व पर विशेष

शिवपुरी-भारतीय ज्योतिष में बारह राशियां मानी गयी हैं। उनमें से एक का नाम मकर राशि है। मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को ''मकर संक्रांति" कहते हैं। यों तो यह संक्रांति प्रत्येक मास में होती रहती है पर मकर और कर्क राशियों का संक्रमण विशेष महत्व का होता है।

ये दोनों संक्रमण छह-छह मास के अंतर से होते हैं। मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने और कर्क संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन होने को कहते हैं। उत्तरायण-काल में सूर्य उत्तर कीओर और दक्षिणायन काल में सूर्य दक्षिण की ओर झुकता हुआ दिख पड़ता है। उत्तरायण की दिशा में दिन बड़ा और रात छोटी रहती है। इसके विपरीत दक्षिणायन की अवस्था में रात बड़ी और दिन छोटा होता है। यह त्यौहार सौर वर्ष के हिसाब से मनाया जाता है, इस दिन सूर्य अपनी स्थित बदल दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। इसे संक्रमण कहा जाता है, सूर्य 1 साल में 12 राशियों में घूमता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।

उत्तरायण का समय देवताओं का दिन व दक्षिणायन का समय रात माना जाता है। मकर संक्रांति के दूसरे दिन किंक्रांत मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन दुर्गा माँ ने ंिकंकासुर राक्षस का संहार किया था। इस दिन पूड़ी,पकौड़े, पापड़ आदि बनाए जाते हैं। भीष्म पितामह ने भी मृत्यु शैया पर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। मकर संक्रांति हिन्दुओं का बड़ा दिन है। कहे हैं, यशोदा जी ने इस दिन कृष्ण के जन्म के लिए किया था। मकर संक्रांति व्रत का विधान अत्यंत सरल है।

पौराणिक कथाओ में मकर संक्रांति
पौराणिक ग्रंथों में लिखा है, कि मकर संक्रांति के पहले एक समय भोजन करना चाहिए तथा मकर संक्रांति के दिन प्रात: काल तिलों से तौल डग स्नान करना चाहिए। इस दिन तिल का विशेष महत्व है। तिल के तेल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल का जल पीना, तिल का भोजन करना और तिल का दान देना ये छह कर्म तिल से ही होने का विधान है। इसके अतिरिक्त चंदन से अष्टïदल का कमल बनाकर उसमें सूर्य भगवान का आव्हान करना चाहिए और उसका यथाविधि पूजन करके सब सामान ब्राह्मïण को दे देना चाहिए। इस मास में घी और क बल देने का विशेष महत्व है। कई जगह मिट्टïी के बर्तनों को हल्दी से सजाया जाता है और इनमें गन्ने, हल्दी, अनाज, सिक्के रखे जाते हैं। इसदिन महिलाएं हल्दी कुमकुम की रस्म भी करती है। बंगाल में तिवलोवा और उबले हुए गन्ने का रस बांटा जाता है। लोग मकर संक्रांति पर मंदिर जाते हैं और नदियों में स्नान करते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर पंतगें उड़ाई जाती है। कई जगह पंतगबाजी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है।

यह कथा है संक्रांति की
कहा जाता है कि इस दिन यशोदा ने कृष्ण को पुत्र के रूप में पाने के लिए व्रत किया था। इसलिये पुत्र प्राप्ति के लिए भी इसका महत्व है। शादी के बाद पहली संक्रांति को दुल्हन को गन्ने व तिल्ली से सजे हुए गहने पहनाए जाते हैं। इस दिन काले कपड़े पहनने का भी रिवाज है। मकर संक्रांति को उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में खिचड़ी कहते हैं। इस दिन लोग खिचड़ी ही खाते हैं और खिचड़ी तथा तिलवा का दान करते हैं। महाराष्टï्र में विवाहित लड़कियां पहली संक्रांति को तेल, कपास, नमक आदि सौभाग्यवती स्त्रियों को देती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां अपनी सहेलियों को हल्दी, रोरी, तिल और गुड़ देती है। बंगाल में भी स्नान और तिल दान की प्रथा है। पंजाब में यह त्यौहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर होली भी जलाई जाती है, गंगा सागर में इसी तिथि पर बड़ा भारी मेला लगता है।