जनसुनवाई में काला पीला:मुसिद्दीलाल के आबेदनों का शतक लगने के बाद भी नहीं हो रही सुनबाई

कोलारस। मध्यप्रदेश सरकार ने एक छत के नीचे सभी शासकीय विभागो के अफसरो को लाकर इसलिए बैठाया जिससे कि जनता की सारी समस्याओ को निजात एक ही छत के नीचे मिल सके इस प्रक्रिया को जनसुनवाई नाम दिया गया। मध्यप्रदेश सरकार ने जनसुनवाई के आव्हान जनता कि भलाई के लिए किया  लेकिन अफसरो के गैर-जिम्मेदाराना रवैये के चलते जनसुनवाई में लोगो कि कुछ समस्याऐं एक कागज तक सिमट कर रह गई है। 

जब से अफसर लापरवाह हुए तभी से लगातार जनसुनवाईयो से जनता का मोह भंग होता गया। लगातर दर्जनो आवेदन देने के बाद भी लोगो की मूल समस्याओ का निराकरण जनसुनबाईयो में नही किया जाता। ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े है। अगर हम पिछले महिनो का रिर्कोड उठाकर देखे तो साफ जाहिर हो जाएगा कि जनसुनवाई में जनता कि किस हक तक अनसुबाई हो रही है।

यह तो हुई अफसरशाही कि बात अब हम अपने मूल मुददे पर आते है। मामला जनता से जुड़ा हुआ है। इसलिये जनता तक पहुंचाना कर्तव्य है। जरासर दिन व दिन लोगो का मोह जनसुनवाई से भंग होता जा रहा है। इसका मूल कारण जो निकलकर सामने आ रहा है वह है जनसुनवाई में लोगो कि लगातार हो रही अनसुनवाई यह मूल कारण माना जा सकता है। जिसमें मु य रूप से खाली पड़़ी कुर्सियां जनसुनवाई कि हकीकत को बयां कर रही थी।

बीते रोज मंगलवार को जनपद पंचायत भवन में हुई जनसुनवाई में प्रभारी तहसीलदार धीरज परिहार रहे वेसे हर मंगलवार को जनसुनवाई कि कमान एसडीएम आरके पांडे के हाथो में रहती थी। लेकिन लगातार लोगो को चक्कर कटवाने के बाद भी शिकायत का निराकरण नही हो पा रहा और ना ही लोगो को जनसुनवाई से कोई फायदा हो रहा है  ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े जो जांच के नाम पर सरकारी पोटरियो में कैद है।

जिसका जीता जागता उदाहरण हाल ही में सामने आया है जहां कोलारस के एक किसान को अपने हक कि लिए आवेदनो कि शतक लगानी पड़ गई और किसान चीख चीख कर अफसरो के सामने आवेदनो कि पोटरी लिये घूम रहा है। जिसके बाद भी किसान कि कोई सुनवाई नही हुई। ऐसे कई मामले जो आज तक अधर में लटके पड़े है और लोगो कि चप्पले घिसने के बाद भी कोलारस में मजबूरो कि कोई सुनने बाला नही। यह पूरा मामला काफी शर्मनाक करने वाला है।