
मध्यांचल ग्रामीण बैंक शाखा सतनवाड़ा के प्रबंधक बच्चनलाल चिड़ार ने न्यायालय में दिये परिवाद में बताया कि अभियुक्त ने 37 हजार रूपए केसीसी ऋण के रूप में ग्रामीण बैंक से प्राप्त किया था तथा अभियुक्त ने लिए गए ऋण की अदायगी पेटे एक चैक दिनांक 25 मार्च 2015 को 66 हजार रूपए की राशि का बैंक को दिया था। बैंक ने जब उक्त चैक को भुगतान हेतु 18 अप्रैल 2015 को जमा किया तो उक्त चैक अभियुक्त के खाते में निधि कम होने के कारण बिना भुगतान के वापस लौट आया। इस पर बैंक ने अभिभाषक के माध्यम से 24 अप्रैल 2015 को अभियुक्त को मांग सूचना पत्र रजिस्टर्ड डाक से भेजा लेकिन सूचना पत्र प्राप्त होने के बाद भी अभियुक्त ने चैक में वर्णित राशि का भुगतान बैंक को नहीं किया इस पर मध्यांचल ग्रामीण बैंक शाखा सतनवाड़ा ने धारा 138 पर परक्रा य लिखत अधिनियम के तहत परिवाद पत्र न्यायालय में पेश किया।
अपने बचाव में अभियुक्त ने तर्क दिया कि उसने केसीसी ऋण अपने और अपनी पत्नि के नाम प्राप्त किया था तथा ऋण प्राप्त करते समय भूमि को बंधक भी रखा था, लेकिन परिवाद में उसकी पत्नि को शामिल न कर उसी पर दायित्व अधिरोपित किया गया। न्यायालय ने अभियुक्त की आपत्ति पर विचार करते हुए निर्णय दिया कि जहां तक बंधक भूमि से बसूली का प्रश्न है तो यह बैंक का विवेक अधिकार है कि वह किस माध्यम से बसूली करना चाहता है और जहां तक अभियुक्त की पत्नि को आरोपी बनाने का सवाल है तो चैक अभियुक्त ने दिया था और बाउन्स होने पर उसका ही उत्तर दायित्व बनता है।