सिकरवार सर ने जीवन ऐसे जिया कि जीवन ही ग्रंथ बन गया

ललित मुदगल/शिवुपरी। कल शाम 6:45 मिनिट पर सूर्य तो डूबा ही परन्तु मुरैना जिले में शिवुपरी का सूर्य भी हमेशा के लिए डूब गया। खबर मिली कि परमश्रद्धेय, परमपूज्यनीय, त्याग की जीती जागती परिभाषा प्रो.सीपी सिकवार ने देह त्याग दी। उनका शरीर आज सुबह 9 बजे उनके परिवारजनों ने उनके अनेक शिष्यों की उपस्थिति मेंं पंचतत्व में विलीन कर दिया।

डॉ. सिकरवार का जन्म 20 अगस्त 1943 को मुरैना जिले के गांव बागचीनी में हुआ। उनकी जन्म स्थली भले ही मुरैना थी, लेकिन उनकी कर्मस्थली शिवपुरी रही। लगभग 40 वर्षों तक डॉ. सिकरवार ने शिवपुरी में अपनी सेवाएं दीं और उनकी पहली पदस्थापना सन 64 में शासकीय महाविद्यालय शिवपुरी में अंग्रेजी विषय के व्याख्याता (लेक्चरार) के रूप में हुई। 

पदस्थापना से लेकर सेवानिवृत्ति तक वह शिवपुरी के महाविद्यालय में रहे और अपने मानवीय गुणों तथा समाजसेवा से उन्होंने न केवल अपने विद्यार्थियों, बल्कि शिवपुरीवासियों की दिलों पर राज किया। समय की पाबंदी उनकी मुख्य विशेषता थी और वह अपनी ड्यूटी से कभी भी गैर हाजिर नहीं रहे यहां तक कि अपने भाई की बारात में वह इसलिए शामिल नहीं हुए क्योंकि इस कारण वह अपनी ड्यूटी नहीं दे पाएंगे। 

अंग्रेजी के साथ-साथ महाविद्यालय के विद्यार्थियों को उन्होंने नि:शुल्क रूप से जनरल नॉलेज का पाठ पढ़ाया और इसी कारण उनके पढ़ाये हुए कई विद्यार्थियों ने आईएएस, आईपीएस और लोकसभा आयोग मप्र की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर शिवपुरी का नाम रोशन किया। 

सादा जीवन उच्च विचार वाले डॉ. सिकरवार ने कभी साइकिल से ऊपर स्कूटर या कार लेने की इच्छा नहीं की। आज की चमकदमक भरी जिंदगी में वह हमेशा साइकिल पर चलते रहे। शाम होते ही शहर के अधिकांश मंदिरों के दर्शनों के लिए वह नियमित रूप से निकल जाते थे और न सर्दी न गर्मी एवं न ही बरसात की परवाह करते थे। 

उनके दरबाजे हर जरूरतमंद के लिए हमेशा खुले रहते थे। ज्ञान दान और धन दान का उपयोग उनसे बेहतर करने वाले गिने चुने ही होंगे। उनका कभी ऐसा कोई आचरण नहीं रहा जिससे उनके प्रति श्रद्धा लेश मात्र भी कम होती। निश्चित रूप से डॉ. सिकरवार ने अपने व्यक्तित्व को इस हद तक सजाया और संवारा कि कभी उनके विरूद्ध आलोचना का एक स्वर भी नहीं उठा। 

उनका व्यवहार और आत्मीयता बेमिसाल थी। जिसमें कहीं से कहीं तक भी अहंकार नहीं झलकता था। राजनीति से उनका कभी लेनादेना नहीं रहा, लेकिन शिवपुरी में वह इतने प्रसिद्ध और लोकप्रिय थे कि यदि कभी चुनाव लड़ जाते तो उनके सामने वाला श्रृद्धा से अपना नाम वापस ले लेता। 

सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ. सिकरवार अपने निजी परिवार के बीच मुरैना पहुंच गये, लेकिन वहां वह एक कमरे में कैद होकर रह गये। शिवपुरी उन्होंने छोड़ी लेकिन मुरैना जाकर उन्होंने कुछ नहीं पाया। उनके हाथ खाली रह गये। वह टूट गये और उनकी दीनहीनता के दृश्य फेसबुक पर जब दृष्टिगोचर होते थे तो शिवपुरीवासियों का मन दुखी हो उठता था। उन्होंने अपना वेतन तो खुशी खुशी निर्धन छात्रों की फीस भरने में खर्च किया, लेकिन बताते हैं कि उनकी पेशन से उन्हें दवाएं भी उपलब्ध नहीं कराईं गईं। 

वह इतने टूट गये थे कि बिस्तर ही उनका सहारा बन गया। बिस्तर से उठने की दृढ इच्छा शक्ति जबाव देने लगी थी। जीवन के संघर्षों ने और कुछ जाने अनजाने दुखों ने उन्हें थका दिया था। संघर्ष करते हुए डॉ. सिकरवार ने कल अंतिम सांस ली और उनके निधन पर समूचा शिवपुरी शहर शोकाकुल है। 

शिवपुरी श्रृद्धा से नतमस्तक है, कि उसने एक ऐसे इंसान के साथ 40 वर्ष ​बिताए जिसका जीवन भगवान राम की तरह आदर्शमय रहा। सिकरवार सर ने सारा जीवन ऐसे जिया कि जीवन ग्रंथ बन गया. दुनिया में कहीं देवता होते होंगे तो वो सिकरवार सर जैसे ही होते होंगे। क्योंकि उनसे अच्छा तो अब कोई हो ही नहीं सकता।