शरद गौड से पूछो: जनता जरूरी है या मगरमच्छ ?

शिवपुरी। जनहितकारी योजनाओं को थोथे नियमों और कानूनों के जरिये कैसे लटकाया जाता है इसकी मिसाल माधव नेशनल पार्क के संचालक शरद गौड ने पेश की है। उनकी दखलंदाजी के कारण 18 माह से शिवपुरी की महत्वपूर्ण पेयजल परियोजना सिंध प्रोजेक्ट लटकी है। अब इसी क्रम में सीवर प्रोजेक्ट भी शरद गौड के रवैये से रूक गया है।

कुछ पेड़ नेशनल पार्क में कट जाने के कारण उन्होंने योजना का कार्य रुकवा दिया था और जनप्रतिनिधि बेवश बने रहे। इस बार फिर पार्क संचालक शरद गौड सीवेज प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में खलनायक के रूप में सामने आये हैं। मात्र 50 मगरमच्छों के लिये उन्होंने दो से ढाई लाख आबादी की शिवपुरी की जनता का हित ध्यान में नहीं रखा और साफतौर पर कहा कि जाधव सागर का पानी खाली नहीं होगा और मगरमच्छ नहीं हटाये जायेंगे। अब यह सवाल जोरशोर से पूछा जाने लगा है कि आखिर पार्क संचालक को किसकी शह है जिससे जनता और जनप्रतिनिधि बेवश बने हुए हैं।

बार-बार यह बात साबित होती रही है कि शिवपुरी के विकास में नेशनल पार्क सबसे बड़ा अडंग़ा है। नेशनल पार्क के कारण ही शिवपुरी उद्योग विहीन है और यहां के हजारों नौजवान बेरोजगार बने हुए हैं। नेशनल पार्क के नाम पर यहां देखने के लिये भी कुछ नहीं है। शनै:-शनै: यह शहर उजड़ता जा रहा है। अभिजात्य वर्ग तो क्या मध्यम वर्ग के युवा भी शिवपुरी से पलायन करने लगे हैं। व्यापार के नाम पर यहां के व्यापारी किसी तरह इज्जत बचा रहे हैं।

नेशनल पार्क ने पत्थर उद्योग को उजाड़कर रख दिया है। दिन प्रतिदिन शिवपुरी अवनति की कगार में पहुंचता जा रहा है। यहां तक कि शिवपुरी में पीने के लिये शुद्ध पानी भी नहीं है। वर्षों से यहां के नागरिक चांदपाठा तालाब का दूषित मलमूत्र युक्त पानी पीने के लिये वेवश बने हुए हैं। लगभग 25-30 साल से सिंध नदी से पानी लाने का झांसा देकर राजनेताओं द्वारा वोट हड़पे जाते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं है।

सन् 2007 में शिवपुरी के लिये सिंध परियोजना मंजूर हुई तो ऐसी उम्मीद बनी कि अब शिवपुरी के नागरिकों को शुद्ध पानी मिलेगा, लेकिन अडंग़ा कैसे लगाया जाता है इसका पता भी यहां के लोगों को लग गया। श्रेय की होड़ में जनहित को दरकिनार कर दिया गया और नेशनल पार्क में महज कुछ पेड़ कट जाने की आड़ में पार्क संचालक शरद गौड ने योजना के कार्य को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अव्हेलना बताकर रुकवा दिया।

तब से अब तक यह कार्य रुका हुआ है और दिल्ली की एमपॉवर्ड कमेटी से मंजूरी नहीं मिल सकी है। इससे परेशान होकर दोशियान कंपनी ने एक तरह से काम छोड़ दिया है और धीरे-धीरे सिंध के पानी की आस टूटती जा रही है। सवाल यह है कि जब सिंध प्रोजेक्ट पूरा नहीं होगा तो सीवेज प्रोजेक्ट कैसे पूर्ण हो पायेगा, लेकिन उसके पहले ही पार्क संचालक शरद गौड सीवेज प्रोजेक्ट में अड़ंगा बन गये हैं।

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