सिंधिया की जीत: जश्न नहीं अलार्मिंग सिचुएशन

शिवपुरी। गुना/शिवपुरी लोकसभा सीट से भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया जीत गए लेकिन यह उनके लिए अलार्मिंग पोजीशन है। जिस शिवपुरी विधानसभा सीट से उन्हें लाखों की बढ़त मिला करती थी, उसी विधानसभा से वो बुरी तरह हार गए हैं। लोग कहते हैं कि यदि सिंध पानी नहीं आया तो हालात इससे भी बदतर कर दिए जाएंगे, नगरीय निकाय चुनावों में सिंधिया समर्थक पार्षद भी नहीं जिताएंगे।

एक समय था जब सिंधिया राजवंश के नाम पर हरेक मतदाता अपने मत का प्रयोग करता था लेकिन बदलते परिवेश में जिस प्रकार से नरेन्द्र मोदी की लहर ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है। उस हार की लपटें गुना संसदीय क्षेत्र तक भी पहुंची, भले ही लोकसभा में 1 लाख 20 हजार मतों से श्री सिंधिया चुनाव जीत गए लेकिन इसके बाद अब सिंधिया का प्रभाव भी कुछ कम होता नजर आ रहा है। यहां पहले तो सिंधिया पोलिंग हारते थे लेकिन अब तो पूरी विधानसभा में ही उन्हें उनके प्रतिद्वंदी मात दे रहे है। लोकसभा चुनावों में गुना शहर और शिवपुरी विधानसभा से जयभान सिंह पवैया ने श्री सिंधिया को मात दी है।

गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भले ही विजय पताका फहरा ली हो और लगभग 1 लाख 20 हजार मतों से भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया को पराजित कर स मान बचा लिया हो, लेकिन इस जीत के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खतरे की घंटी साफ सुनाई दे रही है। उन्हें आत्मावलोकन करना होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में उनका करिश्मा बरकरार रहा, लेकिन शहरी क्षेत्र में क्यों उन्हें पराजय हासिल हुई?

गुना  और शिवपुरी दोनों इलाकों में सिंधिया को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। शिवपुरी के दो-तीन अल्पसं यक बाहुल्य वार्डों को यदि छोड़ दिया जाए तो लगभग प्रत्येक वार्ड में सिंधिया को पराजय का सामना करना पड़ा। 121 मतदान केन्द्रों में से सिंधिया मात्र 20 केन्द्रों से ही विजय हासिल कर पाए। शिवपुरी शहर से सिंधिया लगभग 12 हजार मतों के विशाल अंतर से भाजपा से पीछे रहे हैं और यही स्थिति गुना विधानसभा क्षेत्र में कायम रही और यहां पर भी ङ्क्षसधिया का जादू नहीं चल पाया। यहां भी वह 12 हजार मतों से भाजपा से पीछे रहे।

शहरी क्षेत्र में सिंधिया की पराजय को मोदी लहर का असर बताकर टाला नहीं जा सकता। सवाल यह है कि मोदी लहर उस परिमाण में ग्रामीण इलाकों में प्रभावी क्यों नहीं हुई और उसका असर शहरी क्षेत्र में देखने को ही क्यों मिला?  जबकि शहरी क्षेत्र में सिंधिया निरंतर सक्रिय रहे हैं और शिवपुरी शहर पर उनका खास ध्यान केन्द्रित रहा है। फिर क्या कारण रहा कि शहरी मतदाता ने इसके बावजूद उन्हें आईना दिखाया। निसंदेह शहरी क्षेत्र का मतदाता तुलनात्मक रूप से अधिक शिक्षित और भावनात्मक की अपेक्षा प्रोफेशनल अधिक होता है। उसे महज 250 साल के संबंध बताकर और अपने आप को परिवार का मुखिया जाहिर कर प्रलोभित नहीं किया जा सकता।

शहरी मतदाता इस दलील में भी कोई भरोसा नहीं करता कि मैंने तो अपने हिस्से का काम किया, लेकिन राज्य सरकार दूसरे दल की होने और प्रशासन पर पकड़ न होने के कारण कार्य का क्रियान्वयन नहीं हो पाया अथवा विलंबित क्रियान्वयन हुआ अथवा भ्रष्टाचार के कारण विकास कार्य पर पलीता लग गया। निसंदेह सिंधिया शिवपुरी के लिए सिंध परियोजना मंजूर कराकर लाए, लेकिन सवाल यह है कि वह योजना क्रियान्वित क्यों नहीं हो पाई? इसकी जि मेदारी से भी वह अपने आप को अलग नहीं कर सकते। तालाबों की सफाई का पैसा लेकर सिंधिया आए, लेकिन धरातल पर क्या काम हुआ? कौन नहीं जानता? करोड़ों रूपयों पर पलीता लग गया।

खदानें भले ही उन्होंने खुलवाईं, लेकिन उसका लाभ शिवपुरीवासियों को क्यों नहीं मिला? इसकी जि मेदारी से भी क्या वह अपने आप को अलग कर सकते हैं? फोरलेन का शिलान्यास हुए वर्षों हो गए, लेकिन आज तक उसका काम प्रारंभ नहीं हो पाया। सीवेज प्रोजेक्ट का कार्य भी कितने विलंब से प्रारंभ हुआ। शिवपुरी की बेरोजगारी समस्या समाप्त करने के लिए औद्योगिकरण न होना भी कम से कम कार्य प्रणाली पर एक सवाल तो खड़ा करता ही है। सवाल यह भी है कि राज्य सरकार दूसरे दल की है प्रशासन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन इनके खिलाफ सड़क पर आने से किसी ने तो आपको रोका नहीं।

 जनता के बीच पकड़ बनाने के लिए हर स्तर पर आपको अपने आप को लीडर साबित करना होगा। इससे ही जनप्रतिनिधि की जनता के मानस में विशिष्ट छवि बन पाएगी। इस चुनाव का सबसे बड़ा निष्कर्ष यह है कि शहरी मतदाता अब काम पर भरोसा करने लगा है और भावनात्मक आधार पर उसे अपने पक्ष में नहीं मोड़ा जा सकता, लेकिन सिंधिया जी के लिए राहत की बात यह रही कि उनके संसदीय क्षेत्र में ग्रामीण मतदाताओं का प्रतिशत कहीं अधिक है। लेकिन एक बार जब लहर चलने लगी तो एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचने में उसे अधिक समय नहीं लगेगा।

इस खतरे की घंटी को श्री सिंधिया को समझना होगा और अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन कर नए सिरे से राजनीति की शुरूआत करनी होगी। जिसमें कार्यकर्ताओं का स मान हो, जनता की भावनाओं का आदर हो और सबसे बड़ी बात यह है कि काम करने की दृढ़ता और जज्बा हो। इस समय वह विपक्ष में हैं और ऐसी स्थिति में जुझारूपन से ही वह अपनी राजनीति को नए सिरे से परिभाषित कर सकते हैं।

करैरा और पोहरी की उलटबांसी
करैरा और पोहरी विधानसभा क्षेत्र जो कि ग्वालियर संसदीय सीट का हिस्सा है, में इस बार चुनाव परिणाम में उलटबांसी देखने को मिली। पोहरी में जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती जीते थे वहां लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर 15 हजार मतों से पीछे रहे जबकि करैरा में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कब्जा किया था यहां की विधायक शकुंतला खटीक विधानसभा चुनाव में 10 हजार से अधिक मतों से जीती थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव में  यहां से भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को 13 हजार मतों से विजय मिली है।