सिंधिया से घबराए, पवैया लौटकर शिवपुरी आए

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शिवपुरी। गुना-शिवपुरी से भाजपा से सिंधिया के खिलाफ ऐलान से पहले मैदान छोड चुक जयभान सिंह पवैया एक बार फिर शिवपुरी आए। चुनावी जमीन तलाशने नहीं बल्कि भगोड़ा घोषित होने से बचने के लिए। यहां उन्होंने सिंधिया के खिलाफ चुनाव कैसे लड़ें, यह टिप्स सार्वजनिक किए।

बाहर निकल आया दर्द

सन् 98 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर से स्व. माधव राव सिंधिया के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ चुके पूर्व सांसद और विधायक जयभान सिंह पवैया मानते हैं कि इस बार मोदी लहर और शिवराज के करिश्मे की बदौलत गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया को पराजित करना बहुत आसान है और यह करिश्मा भाजपा का एक सामान्य कार्यकर्ता भी कर सकता है बशर्ते कि भाजपा उम्मीदवार को मुद्दे चुनने की स्वतंत्रता मिले और किसी वरिष्ठ नेता का सामंतवाद की लड़ाई लडऩे के लिए उसकी पीठ पर हाथ हो। यह परिस्थितियां बनीं तो भाजपा कार्यकर्ता तो सामंतवाद के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लडऩे के मूड में हैं और इससे ही भाजपा का मिशन 29 का टारगेट पूर्ण हो पाएगा।

कुल मिलाकर इशारों इशारों में पवैया ने बता दिया कि सिंधिया के खिलाफ मैदान में उतरने वाला प्रत्याशी अपनी ही पार्टी में अकेला पड़ जाता है। खुद भाजपा के बड़े नेता भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ प्रत्याशी को मदद नहीं करते और ना ही उसे स्वतंत्र छोड़ते हैंं। कुछ ऐसा ही दर्द हार जाने के बाद वीरेन्द्र रघुवंशी ने भी बयां किया था। हालांकि लड़ने से पहले उन्होंने भगत सिंह के जैसे नारे भी एसएमएस किए थे।

भाजपा में भी पॉवरफुल हैं सामंतवाद के पैरोकार

सर्किट हाउस में इस संवाददाता से खास बातचीत करते हुए जयभान सिंह पवैया ने बहुत ही संभल-संभलकर एक-एक बात कही और इस बात का खास ध्यान रखा कि उनका वक्तव्य अनुशासनहीनता के दायरे में नहीं आने पाए। लेकिन इसके बाद भी उनके मन की पीड़ा छुप नहीं पाई। बकौल पवैया, उन्होंने सन् 98 में जब सामंतवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी थी। उस समय उन्हें मुद्दे चुनने की छूट मिली थी और उनकी पीठ पर कुशाभाऊ ठाकरे जैसे संगठक और राष्ट्रीय नेता का हाथ था।

उस समय भाजपा के भीतर सामंतवाद के पैरवीकारों को दरकिनार कर दिया गया था और उनसे कह दिया गया था कि आखिर हमारी पार्टी पूर्व रजवाड़ों की पालकी को कब तक उठाएगी? यही कारण रहा कि चुनाव तो उन्होंने जीत लिया, लेकिन उन्हें टेबिल पर हरा दिया गया। जब श्री पवैया से पूछा गया कि क्या वह गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे जा रहे हैं? उनका जवाब था कि न तो मैंने ऐसी कोई इच्छा व्यक्त की है और न ही पार्टी की ओर से ऐसा कोई अधिकृत प्रस्ताव मिला है।

सिंधिया का सामना करने को तैयार नहीं हुए पवैया

उनसे जब पूछा गया कि यदि पार्टी की ओर से उन्हें प्रस्ताव मिला तो क्या वह चुनाव लड़ेंगे? इस पर उनका दो टूक जवाब था कि मैं काल्पनिक सवाल का जवाब नहीं देता। फिर उनके नाम की चर्चा क्यों? श्री पवैया बोले कि स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ लडऩे के कारण शायद ऐसी चर्चाएं चल रही हों। वैसे भी सिंधिया के खिलाफ उम्मीदवार महत्वपूर्ण नहीं है। सामंतवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए ठीक उसी तरह की परिस्थितियां निर्मित करनी होंगी जिस तरह की सन् 98 के चुनाव में स्व. माधव राव सिंधिया के खिलाफ पार्टी ने की थी। चुनाव आक्रामक तरीके से और जीतने की मानसिकता के साथ लडऩा होगा। शहरी क्षेत्र में जहां मुद्दे प्रभावी होंगे। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सामंतवाद के नकली आभामण्डल से लडऩा होगा। यह हुआ तो भाजपा का कोई भी एक्स, बाई,जेड उम्मीदवार चुनाव जीत सकता है।

सिंधिया ने नहीं किया विकास: जयभान सिंह

जयभान सिंह पवैया ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस क्षेत्र में विकास नहीं किया है। यदि विकास में उनकी रूचि होती तो गुना शिवपुरी हाईवे की इतनी खराब और जीर्णशीर्ण हालत नहीं होती। श्री पवैया कहते हैं कि मुझे श्री सिंधिया की क्षमता पर दुख और अफसोस होता है।

सक्रियता का चुनाव लडऩे से संबंध नहीं

जयभान सिंह पवैया से जब पूछा गया कि इस चुनाव क्षेत्र में सक्रियता का अर्थ यह है कि वह यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। श्री पवैया ने जवाब दिया कि मैं तो पार्टी निर्देशों के अनुसार हर जगह जाकर विधानसभा स मेलन को संबोधित कर रहा हूं। जब उनसे पूछा गया कि यहां से भाजपा का उ मीदवार कौन होगा? तो उनका जवाब था कि यह सवाल प्रदेश नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए।

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