शिवपुरी-अक्सर देखने में आता है कि किसी भी कलाकार अथवा साहित्यकार के वंशज विशेषकर पुत्र अथवा पुत्रियां उनकी परिसम्पत्तियों के वारिस तो हो जाते हैं पर उनकी कलात्मक और रचनात्मक कार्यों के संवाहक नहीं बन पाते हैं।
इस लिये वे लोग जो किसी कलात्मक अथवा साहित्यिक परम्परा का संवाहन कर रहे हैं वे अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों और साहित्यकारों के सच्चे वारिस हैं- उपरोक्त विचार कोलारस में आयोजित दिवंगत साहित्यकारों के लिये श्रद्धपक्ष में आयोजित श्रद्धा कार्यक्रम में अध्यक्षता करते हुये शिवपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार अरूण अपेक्षित ने व्यक्त किये।
कोलारस शा.महा विद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.लखन लाल खरे के संयोजन में आयोजन के मुख्यअतिथि श्री दिनेश वशिष्ठ और विशिष्ट अतिथि श्री पल्लन जैन थे। कार्यक्रम में श्री राजकुमार श्रीवास्तव,संजय श्रीवास्तव,नईम सिद्धकी,शिवकुमार शर्मा,केशव सक्सेना,परमाल सिंह कोली,मनोज कोली ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
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