परमात्मा को पाने वाणी और काया पर रखें नियंत्रण : संत श्री कृष्णा स्वामी

संत श्री कृष्णा स्वामी
शिवपुरी- परमात्मा को पाने के लिए वाणी और काया(शरीर) पर नियंत्रण जरूरी है। इस संसार में जन्म तो माता-पिता देते है परन्तु उसमें प्राण परमात्मा देते है अगर यह शरीर 5-5 ज्ञानेन्द्रियों को प्राप्त कर ले तो दशरथ के समान हो जाता है और यदि यही इन्द्रियों के वश में हो जाए तो दशानन हो जाता है अर्थात् इस शरीर और वाणी के नियंत्रण रखने के लिए सर्वप्रथम श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करें इससे सारे पापों से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही मोक्ष का मार्ग भी यहीं से प्रशस्त होगा। यह शरीर हमारा है आत्मा नहीं इसलिए आत्मा की पवित्रता के लिए शरीर की पवित्रता आवश्यक है। शरीर और वाणी को अपने आचरण में उतारकर मोक्ष का यह मार्ग प्रशस्त कर रहे थे प्रसिद्ध भागवताचार्य संत श्री कृष्णा स्वामी महामण्डलेश्वर जो स्थानीय गोयल परिवार द्वारा कैला माता मंदिर पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पश्चात पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे।
पत्रकारों से चर्चा करते हुए संतश्री कृष्णा स्वामी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण 18 पुराणों में और श्रीमद् देवी भागवत एक ही है श्रीमद् शब्द ब्रह्म और एश्वर्य का प्रतीक है इसलिए ब्रह्म और ऐश्वर्य की अखण्डता के लिए निरंतर श्रीमद् भागवत कथा पेय(ग्रहण) एक मात्र साधन है। भागवत शब्द का सार्थक अर्थ है जहां भक्त भगवान के भक्ति और तरंगों को आत्मसात कर लें तो उसे परमात्मा का मोक्ष मिलेगा। इस शरीर के साथ ऐश्वर्य प्रकृति में परमात्मा से प्राप्त होते है जो 7 प्रकार के होते है। संत श्री स्वामी ने बताया कि पहला ऐश्वर्य जन्म से वाणी की प्राप्ति द्वारा, दूसरा श्रवण करना अर्थात् सुनने के द्वारा, तीसरा नेत्र आंखों के द्वारा, चौथा शरीर(काया) की गति के द्वारा, पांचवों मन एवं छठवां बुद्धि व 7वां चित्त इन्हीं सातों का समावेश यदि शरीर काया में स्थापित कर लिया जाए तो मनुष्य प्रकृति ऐश्वर्य से भरा होगा और यहां ईष्र्या स्थापित होने से ही मनुष्य अधर्म अर्थात् पाप का भागी बनता है। 

संतश्री स्वामी के अनुसार ऐश्वर्य के लिए परोपकार, परमार्थ, प्रीतीका हो तो देह साधना से परमात्मा मोक्ष को पाया जा सकता है। मनुष्य जन्म में योग, भोग, भक्ति, मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति संभव है। जहां हमारी वाणी श्रीमद् भागवत उद्बोधन में चरित्र चित्रण में द्रोपदी जैसी होना चाहिए जहां द्रोपदी के सामने ही उसके पुत्रों का धड़ और मस्तक अलग-थलग पड़े थे फिर भी उसने अपराधी को क्षमा कर दिया। हमारी श्रवण शक्ति भगवान शिव की तरह होनी चाहिए जहां भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने उन्हें भला-बुरा कहकर अपमानित किया फिर भी शिवजी ने उन्हें क्षमा किया। हमारे नेत्र जड़-भरत जैसे हों जहां संसार में रहते हुए संसार कों मनें ऐश्वर्य को परमात्मा ना समझें। काया शक्ति रूप से प्रकट होती है काया बलि जैसी हो जो कि जब परमात्मा वश में करने आए तो हम परमात्मा को ही वश में कर सके। मन की शक्ति ऐसी हो कि सतत कथा में हमारा मन एकाग्र हो और हम से सभी को आकर्षित कर सकें, बुद्धि रूकमणी जैसी हो जहां नारद का क्षण भर सत्संग मिलने पर रूपमती हो गई और श्रीकृष्ण मिले। 

चित्त परीक्षित जैसा हो जहां परमात्मा का आश्रय मिलने पर ही जगह में भय लगे। इन सात ऐश्वर्य की साधना करने पर मनुष्य कर्म बंधन से समाप्त हो जाता है। संतश्री स्वामी ने कहा कि इसीलिए श्रीमद् भागवत कथा है अर्थात कथनी है करनी नहीं, कथा वह है जो वाणी से है और करनी कर्मों से प्रकट होती है। कथा का श्रवण करने से हमें प्रायश्चित करने से परमात्मा मिलते है तो वहीं काया के प्रायश्चित के लिए मन में स्मरण करने से, वाणी में कीर्तन करने से और काया में कथा का श्रवण करने से काया का पाप नष्ट होता है लेकिन वाणी और मन के चंचल होने से हम काया के संकल्प को समाप्त कर देते है। संत श्री स्वामी ने बड़े ही सारगर्भित शब्दों में श्रीमद् भागवत कथा के पुण्य लाभ का वर्णन पत्रकारों को श्रवण कराया।