सिकरवार सर की कविता 'मुश्किलें'

अभी तो बहुत काम करने है मुझको, अभी तो बहुत लक्ष्य पाने है मुझको,
अभी तो शुरूवात है जिन्दगी की, अभी तो बहुत नाम करने है मुझको।

न चुपचाप यूं ही मैं बैठा रहूगां, न आलस है न डर है न आराम लूगां।
मुश्किलें आएंगी चली जाएंगी, जाते-जाते मुश्किलें, ये कह जाएंगी।

मुश्किलों से मिला है मुश्किलों से कोई, मुश्किलों में भी जिसने न हिम्मत खोई,
मुश्किलें ही तो मेरा मार्ग दे जाएंगी, मुश्किलें ही तो लक्ष्य तक ले जाएंगी।

मुश्किलें दोस्त है दुश्मन नही, मुश्किलों में कोई साथ देता नही,
मुश्किलें साथ है मुश्किलों में मेरे, मुश्किलों से ही तो बदले है दिन मेरे।

मुश्किल ही तो ये सीख देती है मुझे, छोड़ो आराम, हरबार कहती मुझे,
काम पर चल पड़ो काम हो जाएंगा, मुंश्किलों से ही मुश्किल काम हो जाएंगा।

मुश्किलें साथ है डर किस बात का, मुश्किलें दोस्त है गम किस बात का,
मुश्किल से भी मुश्किल, क्या मुश्किल होगी, मुश्किल में ही तो तय, मेंरी मंजिल होगी।

मंजिल तो मिली मुश्किलों से सही, दोस्त परखे है मैने, मुश्किलों में सभी,
दोस्त सुख के है, दुख में न मिलता कोई, मुश्किलों में मुश्किल से ही साथ देता कोई।

मुश्किले साथ है पास मेहनत मेरी, लक्ष्य पाने में, मुझको न लगती देरी,
मुश्किलें मुश्किलों से, ये कह जाएंगी, मुश्किलें मेहनत से मात खा जाएंगी।

इसलिए कहा है मेहनत करनी है मुझको,
सुबह हो या शाम एक ही हसरत है मुझको,
लक्ष्य से भी आगे, बहुत आगे बढना है मुझको,
मुश्किलों मे न आराम करना है मुझको।