शासकीय स्कूलों में न पानी और न शौचालय, अब कैसे जाए छात्र स्कूल

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शिवपुरी। वैसे तो स्कूल एव शिक्षा विभाग शासकीय स्कूलों में छात्रों के भविष्य को गढऩे की बाते कर रहे है। परंतु दूसरी और हजारों रूपए की सेलरी पाने बाले शिक्षक शासन को सरेआम चूना लगा रहे है। शासकीय स्कूलों में प्रायवेट स्कूलों की तुलना में शिक्षकों के अधिक वेतनमान और सरकार द्वारा करोड़ों रूपया स्कूलों के विकास पर खर्च करने की बाद भी जिले के अधिकांश शासकीय स्कूल अव्यवस्था के शिकार हैं। 

अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि अधिकांश स्कूलों में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है और यदि शौचालय हैं भी तो वह इतने गंदे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान की उक्त शौचालय खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। कुछ स्कूलों में शुद्ध पानी पिलाने के बजाय विधार्थियों को पीने का पानी भी नसीब नहीं है जबकि सरकार ने स्कूलों में विद्यार्थियों को शुद्ध पानी पिलाने के लिए एक्वागार्ड की व्यवस्था की है।

विधार्थियों को सांझा चूल्हा कार्यक्रम के तहत भोजन तो दिया जाता है लेकिन पानी के लिए वह तरसते रहते हैं। स्कूलों की इन्हीं अव्यवस्थाओं के कारण शासकीय विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा के बावजूद विधार्थियों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है और स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या दर्शाने के लिए फर्जी आंकड़ेबाजी का भी उपयोग किया जा रहा है। 

इनके अलावा भी शासकीय विद्यालय में अनेक अव्यवस्थायें हैं आदर्श कॉलोनी स्थित कन्या विद्यालय बारिश के दिनों में पानी में डूब जाता है जिससे एक-एक सप्ताह तक कक्षायें नहीं लगती हैं। विद्यालय के पास ही खुली डीपी लगे होने के कारण बरसात में हर समय करंट का खतरा बना रहता है। माधव चौक स्कूल बेहद जर्जर हालत में है जो तेज बरसात के कारण कभी भी गिरकर हादसे को जनम देने की स्थिति में है। 

खास बात तो यह है कि इस विद्यालय के नजदीक शिक्षा विभाग के चार-चार वरिष्ठ अधिकारी डीपीसी, बीआरसी, सीएसी साथ ही परीक्षा नियंत्रण अधिकारी बैठते हैं लेकिन इसके बाद भी उनका स्कूल के रखरखाव की ओर कोई ध्यान नहीं है। प्राथमिक विद्यालय सिद्धेश्वर अतिक्रमण का शिकार बना हुआ है। विद्यालय की जमीन पर अतिक्रामकों ने कब्जा कर स्कूल भवन को संकुचित कर दिया है वहीं खेल का मैदान पूरी तरह खत्म हो चुका है। 

शौचालय तोड़े जा चुके हैं वहीं फतेहपुर विद्यालय पर कृषि विभाग के प्रशिक्षण केन्द्र का निर्माण करा दिया गया जिससे यहां भी खेल का मैदान खत्म हो चुका है और विद्यार्थी खेलने के लिए तरस रहे हैं। उपरोक्त सभी विधालयों में शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल का अभाव बना हुआ है। शहर के हदय स्थल में स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विधालय क्रमांक 2 में शौचालय इतने गंदे हैं कि विद्यार्थी चाहते हुए भी उनका उपयोग नहीं करते हैं। शिक्षकों का कहना है कि फंड और पानी के अभाव में वह कैसे शौचालय की सफाई कराएं। 

प्राइवेट स्कूलों से दस गुने से अधिक मिलता है शिक्षकों को वेतन 
सरकारी स्कूलों में प्रायवेट स्कूलों की तुलना में शिक्षकों को दस गुना से अधिक वेतन मिलता है। प्रायवेट स्कूलों में शिक्षकों को मुश्किल से 2 से 3 हजार रूपए प्रतिमाह वेतन दिया जाता है जबकि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन 20-22 हजार से लेकर 50 हजार रूपए प्रतिमाह है लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की ओर शिक्षकों का ध्यान नहीं हैं। उनका पूरा ध्यान विद्यार्थियों की फर्जी संख्या बढ़ाने की ओर रहता है। सरकारी स्कूल के एक शिक्षक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्कूलों में जब बच्चे आते ही नहीं है तो हम उन्हें पढ़ायेंगे कैसे। 

भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुके हैं शासकीय विधालय 
शासकीय विधालय भ्रष्टाचार के गढ़ बन चुके हैं। हालांकि सरकार सरकारी स्कूलों पर बेतहाशा पैसा खर्च कर रही है लेकिन उस पैसे का उपयोग हो रहा है अथवा नहीं हो रहा यह देखने की किसी को भी फुर्सत नहीं है। पिछले दिनों  सरकारी स्कूलों में मरम्मत के नाम पर पैसा आवंटित हुआ था ताकि जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत कराई जा सके, स्कूलों में पानी की व्यवस्था की जा सके लेकन अधिकांश पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है और स्कूलों की दशा दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है।
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