कचंन सोनी शिवपुरी। खाडेराव के आने की सूचना पर जेबुन्निसा जड हो गईं। क्षण भर पश्चात ही संभल गई और कक्ष के द्धार पर आ गई। तब तक द्धार पर खाडेराव आ गए। जेबुन्निसा ने हिन्दू रीति रिवाज से उसे हाथ जोडकर प्रणाम किया। खाडेराव ने भी हाथ जोडकर प्रतिनमस्कार किया। जेबुन्निसा इच्छा होते हुए भी कुछ नही कह पा रही थी।
संकोचभाव इतना प्रबल था कि वह साधारण सभ्यता भी भूल बैठी थी और कुछ देर तक खाडरेाव को भीतर आने के लिए भी नही कह पाईं। वह उसके मुख की लज्जा जनित लालिमा और आंखो के छलकते हुए प्रेमावेश को देख नही पाये।
उन्होने सोचा की शहजादी के सम्मान में उनको ही कोई बात करनी चाहिए। उंन्होने शाहजादी से कहा,शहजादी साहिबा आपके निमंत्रण के लिए धन्यवाद। अब जेबुन्निसा विवश सी हो गई। बडी कठिनाई से धीरे से कहा कि आप अंदर तो तशरीफ लाईये।
खाण्डेराव जेबुन्निसा के पीछे कक्ष में प्रविष्ट हुए। एक रेशम के मसनद पर बैठने के लिए जेबुन्निसा ने उन्है इंगित किया। वह स्वंय सामने वाली मनसंद पर बैठ गई। ओर अपनी दासी को नाजिमा को पुुकारा,नाजिमा। दासी दौडती हुई आई जी हुजूर शाहजादी साहिबा हुक्म,नाश्ता लेकर आओ।
जी कह कर दासी चली गई। फिर महौल में चुप्पी छा गई। अब खाडेराव को अनुभव होने लगा कि शाहजादी सहज मुद्रा में नही हैं। उन्होने गौर से उसके चेहरे को देखा। शाहजादी के मुख पर लज्जा का आवेग था। झुकी हुई पलके जैसे मौन आमंत्रण दे रही हो। खाडेराव शाहजादी के इस दशा को देखते रहे।
खाडेराव ने इस चुप्पी भरे महौल को तौडते हुए शाहजादी से कहा कि शाहजादी साहिबा कल हाथी पकडने के अभियान मेें आप पधारी थीं। शायरा होने के साथ ही आप शिकार के साहसिक अभियान में भी रूचि रखती हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई।
जेबुन्निसा ने अब पलके उठाकर भरपूर दृष्टि से खाडेराव को देखा,इतनी निकट से उन्है देखने का उसका प्रथम अवसर था। खाडेराव की आंखो में तेज इतना ज्वलंत था कि वह अधिक देर तक उसने आंखे मिलाये नही सकी। उसने एक क्षण में ही अपनी दृष्टि फिर झुका ली और संकोच सहित बोली।
मै तो पहली बार गई थी। लेकिन न जाती तो आपकी बहादुरी केसे देेख पाती। इसी समय दासी ने जलपान ले कर कक्ष में प्रेवश किया। जेबुन्निसा उठी और स्वयं चौकी पर जलपान की वस्तुओ को सजाने लगी। खाडेराव ने औपचारिकता निभाते हुए कहा कि आप क्यो कष्ट करती हैं। शाहजादी ने कहा कि जिंदगी का यह सबसे सुनहरा मौका हैं,कि खुदा ने मुझे आपकी खिदमत करने की इनायत बख्शी हैं।
जेबुन्न्सिा ने शरबत का एक गिलास उठाकर खाडेराव की ओर बढाया और कहा आप शरबत लीजिए शरबत देते समय जेबुन्निसा की उंगली खाडेराव के उंगली से तनिक स्पर्श कर गई तो जेबुन्निसा लज्जा से दुहरी सी हो गई,उसके पूरे शरीर में रोमांच हो आया।
Social Plugin