अशोक कोचेटा,शिवपुरी। गुना लोकसभा क्षेत्र संभवत देश का एकमात्र लोकसभा क्षेत्र है जहां संसदीय चुनाव की शुरूआत से अब तक एक ही परिवार का कब्जा यथावत रहा है। खास बात यह है कि अकेले सिंधिया परिवार ने 1957 से लेकर अब तक 14 बार इस लोकसभा सीट पर विजयश्री हासिल की है। जिसमें दादी से लेकर नाती तक शामिल हैं और इसमें भी खास बात यह है कि सिंधिया परिवार के सदस्य चाहे दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ें हो अथवा निर्दलीय हर बार उन्हें जीत हासिल हुई है।
इसलिए यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि कांग्रेस, भाजपा, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी अथवा निर्दलीय ने इस सीट पर कब कब विजय प्राप्त की है। सिंधिया परिवार के सदस्य जनसंघ से लेकर भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरकर आसानी से गुना से विजयी हुए हैं।
गुना लोकसभा सीट पर सिंधिया परिवार का वर्चस्व 1957 के लोकसभा चुनाव से लेकर अभी तक रहा है। 1952 में अवश्य इस सीट से हिंदू महासभा के विष्णुगोपाल देशपांडे विजयी रहे थे। श्री देशपांडे ने कांग्रेस के गोपीकृष्ण विजयवर्गीय को पराजित किया था उस समय यह लोकसभा क्षेत्र गुना भेलसा के नाम से जानी जाती थी। उस चुनाव में हिंदू महासभा के विजयी उम्मीदवार विष्णुगोपाल देशपांडे गुना और ग्वालियर दोनों सीटों से चुनाव जीते थे और बाद में उन्हं ग्वालियर से इस्तीफा देकर गुना सीट को अपने पास रखा था।
श्री देशपांडे महात्मा गांधी के घोर विरोधी थे और देश के विभाजन का उन्हें ही जिम्मेदार मानते थे। महात्मा गांधी के तीसरे दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया था। विश्व हिंदू परिषद की स्थापना में भी श्री पांडे शामिल रहे थे। 1957 में स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया सक्रिय राजनीति में उतरी और उन्होंने गुना सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा तथा विजयराजे ने हिंदू महासभा के उम्मीदवार विष्णु देशपांडे को लगभग 50 हजार मतों से पराजित किया।
1962 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ग्वालियर से चुनाव लड़ी और गुना शिवपुरी से उन्होंने कांग्रेस के रामसहाय शिवप्रसाद पांडे को चुनाव लड़ाया जिन्होंने हिंदू महासभा के उम्मीदवार विष्णु देशपांडे को हरा दिया। 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से विवाद हुआ और वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गुना लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरी तथा उन्होंने अपने रिश्तेदार देवराव कृष्णराव जाधव को बड़े अंतर से पराजित कर दिया।
उस चुनाव में राजमाता करैरा विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ी थी और उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार स्व. गौतम शर्मा को हराया था। राजामाता ने करैरा सीट अपने पास रखी तथा गुना लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में आचार्य जेआर कृपलानी को चुनाव मैदान में उतारा और आचार्य कृपलानी ने महल का सपोर्ट पाकर कांग्रेस उम्मीदवार सुभद्रा जोशी को पराजित किया।
खास बात यह थी कि आचार्य कृपलानी जब लोकसभा में शपथ ग्रहण करने के लिए गए तो अपनी लोकसभा सीट का नाम ही भूल गए। 1971 में स्व. माधवराव सिंधिया गुना सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने कांग्रेस के डीके जाधव को सवा लाख से अधिक मतों से पराजित कर दिया।
1977 में स्व. माधवराव सिंधिया का पुन: इस सीट पर कब्जा रहा, लेकिन उस चुनाव में वह कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जनता पार्टी के आजाद ङ्क्षहंद फौज के सैनानी कर्नल गुरूबख्श सिंह ढिल्लन को 80 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। 1980 में माधव राव सिंधिया कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जनता पार्टी के नरेश जौहरी को 1 लाख से अधिक मतों से पराजित किया।
1984 में स्व. माधवराव सिंधिया ग्वालियर चले गए, लेकिन उन्होंने गुना सीट से अपने सहायक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़वाया और महेंद्र सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार उद्धव सिंह रघुवंशी को 1 लाख 40 हजार मतों से पराजित कर दिया। 1989 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया 20 साल बाद पुन: गुना लौंटी और उन्होंने उस चुनाव में कांग्रेस के महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को 1 लाख 46 हजार मतों से हरा दिया।
सन 91 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया को गुना सीट से जीतने में कुछ परेशानी हुई, क्योंकि उनका मुकाबला देश के जाने माने कांग्रेसी शशिभूषण वाजपेयी से हुआ, लेकिन राजमाता फिर भी 55 हजार मतों से चुनाव जीत गई। अभी तक सिंधिया परिवार के लिए यह सबसे कठिन मुकाबला रहा। 1996 में कांग्रेस ने राजमाता के मुकाबले स्व. रामसिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन रामसिंह ने चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया जिसके कारण कांग्रेस ने पिछोर विधायक केपी सिंह को टिकट दिया, लेकिन राजमाता आसानी से चुनाव जीत गई।
सन 1998 में राजमाता ने कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को चुनाव में पराजित किया। 1999 में माधवराव सिंधिया फिर गुना लौटे और यहां की जनता ने उन्हें हाथोंहाथ लिया तथा उन्होंने भाजपा के देशराज यादव को भारी मतों से पराजित किया। 2001 में माधव राव सिंधिया के निधन के बाद इस क्षेत्र की कमान उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में हैं। अपने पिता की तरह वह भी गुना सीट से अभी तक चार बार चुनाव जीत चुके हैं।
2001 के उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के देशराज यादव से साढ़े 4 लाख मतों से चुनाव जीते थे, लेकिन 2004 में उन्हें भाजपा उम्मीदवार हरिवल्लभ शुक्ला ने किंचित परेशान किया, लेकिन अंतत: ज्योतिरादित्य सिंधिया 77 हजार मतों से चुनाव जीत गए। 2009 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा को ढाई लाख मतों से पराजित किया और 2014 की मोदी लहर में भी सिंधिया परिवार की विजयगाथा यथावत जारी रही और ज्योतिरादित्य सिंधिया 1 लाख 20 हजार से अधिक मतों से आसानी से चुनाव जीत गए। हालांकि गुना और शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी।
हारीं इंदिरा, संजय और कमलनाथ, लेकिन नहीं हारा सिंधिया परिवार
देश में कई ऐसी लोकसभा सीटें हैं जिनमें एक ही परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा है। रायबरेली लोकसभा सीट गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन 1977 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी को राजनारायण ने पराजित कर दिया था। अमेठी सीट भी गांधी परिवार की सीट मानी जाती है, लेकिन 1977 के चुनाव में ही यहां से स्व. संजय गांधी रविंद्र प्रताप सिंह से पराजित हो गए थे।
रीवा नरेश मार्ततण्ड सिंह जिनका नाम सर्वाधिक मतों से जीतने के कारण गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज है, वह भी 1977 में नेत्रहीन यमुना प्रसाद शास्त्री से हार गए थे। उस समय हारने वालों में इलाहाबाद सीट से स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा भी शामिल थे। कमलनाथ का छिंदवाड़ा सीट पर कब्जा रहा है, लेकिन कमलनाथ भी एक बार छिंदवाड़ा सीट से मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा के हाथों पराजित हुए थे, परंतु सिंधिया परिवार न तो गुना सीट पर कभी हारा है और न ही जिस उम्मीदवार का सिंधिया परिवार ने समर्थन किया है वह भी कभी नहीं हारा है।
सिंधिया परिवार इस सीट पर कभी नहीं रहा आमने सामने
स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया और स्व. माधव राव सिंधिया राजनीति की शुरूआत में भले ही एक ही दल में रहे हों, लेकिन बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए थे। राजमाता विजयाराजे और माधवराव सिंधिया दोनों इस सीट पर क्रमश: 6 बार और 4 बार जीते। राजमाता विजयाराजे सिंधिया के निधन के बाद उनके उत्तराधिकार की कमान उनकी सुपुत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने संभाली और माधवराव सिंधिया के निधन के बाद उनकी राजनीति को उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संभाली।
यशोधरा राजे सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र की शिवपुरी से चार बार विधायक का चुनाव जीत चुकी है, लेकिन सिंधिया परिवार के विपरीत धु्रव के सदस्य एक दूसरे के सामने चुनाव नहंी लड़े है और शायद यही इस परिवार की राजनैतिक ताकत है।
लेखक शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक सांध्य तरूण सत्ता के संपादक हैं
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