कंचन सोनी/शिवपुरी। पंडित ने अपने पूत्र खाडेराय से कहा कि खाडेराव अपनी मां से विदा ले लो। खाडेराय ने अपने माता-पिता से विदा ली और घोडे पर बैठकर राजा के साथ चल दिया। कहते है कि आदमी बलबान नही होता समय बलबान होता है। यह कहावत यह सत्य होते दिखी। खाडेराय का समय बलवान हुआ और सारी कायनात उसे उसके राजपुरूष बनने की ओर ले चली।
महाराज अनूप सिंह जब बालक खाडेराव को उनके माता-पिता से मांग कर शिवुपरी लाए तो उन्होने सबसे पहले यह किया कि रानी मृगावती को सारी कहानी सुना कर खाडेराव को उनकी गोद में बिठा दिया और कहा कि इसे अपने पुत्र से गजसिंह से अधिक प्यार से पालना। रानी भी खाडेराव की दिव्य कहानी को सुन ओर उसके मुख के तेज से प्रभावित हुई और अपने पुत्र से ज्यादा वातस्लय लुटाने लगी। राजकुमार गजसिंह के कक्ष में ही खाडेराव के रहने की व्यवस्था कर दी गई।
दोनो का खान-पान, अध्यन कार्य, अस्त्र-शस्त्र का प्रबंध महाराज ने एक समान किया। खाडेराव के सभी श़िक्षाओ में दझ होते चले गए। दिन,महिने ओर साल गुजरते चले गए। दोनो ही राजकुमार अपने यौवन काल में प्रवेश कर गए। जब खाडेराव 17 साल के हुए तो महाराज अनूपसिंह के साथ उनके प्रिय मित्र बैराड नगर के सांमत के यहां गए।
खाडेराव रासो के अनुसार बैराड नगर पुराना विराट नगर है। यह नगर महाभारत काल के समय विराट नगर के रूप में जाना जाता है। पांडवो के वनवास के समय का अज्ञातवास का पूरा एक वर्ष विराट नगर में गुजारा था। विराट नगर में किचक का वध हो जाने के कारण कौरवो को शक हुआ था कि महाबली किचक का वध केवल भीभ जैसा बलशाली की कर सकता हैंं।
अत: उन्है लगा पांडव निश्चित रूप से विराट नगर में ही अपने अज्ञात वास में छुपे हुए हैं। इसी कारण ही कौरवो ने एक विशाल सेना लेकर विराट नगर पर चढाई शुरू कर दी। राजा विराट उस समय अपनी राजधानी में नही थें। कौरवो ने विराट की असंख्यक गायो को घेर लिया था ओर ब्रहन्नलला के रूप में छुपे अर्जन ने विराट नगर के राजकुमार उत्तर को अपना सारथी बनाकर पूरी कौरवो की सेना को पछाड दिया था।
इसी राजा विराट के वंशज उक्त ग्राम बैराड के छोटे से जमींदार के रूप में मुगलो के समय में थे। बैराड नगर नरवर राज्य के अधीन आता था। फिर भी नरवर के राजा अनुपसिंह विराट वंशज ठाकुर दलवीर सिंह का बहुत सम्मान करते हुए मित्रवत संबध थे। दोनो एक दूसरे के यहां आते-जाते रहते थे। इस बार वे अपने साथ राजकुमार गजसिंह और खाडेराव को साथ ले गए थे।
ठाकुर दलवीर सिंह की हवेली के बहार बाडे में विशाल शीशम का पेड था। सावन का माह था और इस शीशम के पेड पर झूला डला हुआ था। इस झूले पर ठाकुर दलवीर सिंह की बेटी विशाला और उसकी प्रिय सखी शोभा बैठकर झूला झूल रही थी। और अनेक सखियो उनको झूला झूला रही थी।
इसी समय पूर्ण व्यस्क बाघ बडे की सीमा को लंघाता हुआ घुस आया उसे देखकर झूला झूला रही सखिंया चीख पुकार करते हुए दौड पडी। विशाला और शोभा झूले पर ही थी। बाघ ने झूले पर छपटटा मारा और विशाला की साडी उसके पंजे में फस गई जिससे विशाल गिर पडी। बाघ ने एक और छंलाग विशाल पर लगाई कि तभी खाडेराव और गजसिंह बिजली की गति से अपने घोडो को दौडाते हुए बाडे में प्रवेश कर गए।
खाडेराव ने अपने घोडे को बाघ की ओर किया और अपनी तलवार से बाघ की गर्दन पर जोरदार प्रहार किया। खाडेराव का बार इतना अचानक और बिजली से भी तेज गति से था कि बाघ को संभालने का मौका नही मिला और खाडेराव की तलवार उसकी गर्दन में घुस गई। बाघ ने प्रलयकारी गर्जना करते हुए खाडेराव पर आक्रमण कर दिया,खाडेराव भी उसके लिए तैयार थे उन्होने अपने तलवार से बाघ के खुल हुए मुंह में घुसडे दी। लम्बी तलवार बाघ के मुंह को चीरते हुए उसकी पसलियोे तक पहुंच गई।
बाघ का भारी शरीर निर्जीव होकर गिर गया। खाण्डेराव बडी की फुर्ती से अपने घोेडे से उतरे और अपनी कमर से तेजधारी कटार निकाली और अंतिम प्रहार करते हुए बाघ के सीने में कई बार कर दिए। खाडेराव के प्राणलेवा प्रहारो से बाघ के प्राण भी निकल गए। विशाला अभी भी आधी मुर्छित अवस्था में जमीन पर पडी थी। शोभा अभी तक सिसकी हुई सी झूले पर बैठी थी,बाघ के मर जाने के बाद वह झूले से उतरी और अपनी प्रिय सहेली विशाला के पास पहुंची उसक वस्त्रो का सही करते हुए उसे होश में लाने का प्रयास करने लगी। खाडेराव रासो की खाडेराव की गाथा आगे के अंक में क्रमंश:जारी रहेगी।
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