शिवपुरी। शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों में से 2 सीट पर कांग्रेस पराजित हुई है।कोलारस में कांग्रेस 702 वोटो से हारी हैं तो वही शिवपुरी विधासभा सीट पर प्रदेश की सबसे तीसरी 29 हजार से करारी हार हुई हैं। कोलारस की मात्र 702 की वोटो हार पर हाहाकार मचा हुआ है,लेकिन शिवपुरी की 29 हजारी हार पर चिंतन बैठक भी नही हुई है। कांग्रेस की इस नीयत पर सवाल खडे हो रहे है। और दबी जुबान में पूछे भी जा रहे हैं,ऐसा आखिरी क्य़़ो ..........
कांग्रेस को अपनी शिवपुरी सीट पर सर्वाधिक मतों से पराजय के लिए चिंतन करना था, लेकिन सांसद सिंधिया के हाल के शिवपुरी जिले के दौरे में उन्होंने सर्वाधिक चिंता कोलारस विधानसभा सीट हारने पर व्यक्त की थी और कांग्रेस के एक-एक स्थानीय नेता से बंद कमरे में बातचीत की थी जिनमें जिला कांग्रेस अध्यक्ष बैजनाथ सिंह यादव, कोलारस नगर पंचायत अध्यक्ष रविन्द्र शिवहरे, बदरवास नगर पंचायत के उपाध्यक्ष भूपेन्द्र यादव भोले आदि भी शामिल हैं।
सिंधिया ने पोलिंग बूथ कार्यकर्ताओं की बैठक में यहां तक कहा था कि मैं उन कार्यकर्ताओं की छटनी करूंगा जिन्होंने कोलारस में भितरघात का कार्य कर कांग्रेस की हार सुनिश्चित की है। ऐसे में सहज ही यह सवाल उठता है कि शिवपुरी की हार पर क्यों नहीं इतनी गंभीरता से समीक्षा की गई।
सवाल यह उठता है कि कांग्रेस कोलारस की हार पर क्यों इतनी अधिक गंभीर है। एक वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि कोलारस में कांग्रेस का मजबूत जनाधार है। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी स्व. रामसिंह यादव भाजपा उम्मीद्वार देवेन्द्र जैन से 25 हजार मतों से विजयी हुए थे और उनके निधन के बाद जब उपचुनाव हुआ तो स्व. रामसिंह यादव के सुपुत्र महेन्द्र यादव महज आठ माह पूर्व 8 हजार मतों से जीते थे।
फिर आठ माह में ऐसा क्या हो गया जिसके कारण कांग्रेस ने अपनी जमीन खो दी जबकि सांसद सिंधिया ने कोलारस सीट को जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बनाया था और उन्होंने जिले में सर्वाधिक तीन आमसभाएं कोलारस विधानसभा क्षेत्र में ही की थीं। इसलिए कोलारस सीट पर कांग्रेस की हार एक समीक्षा का विषय है। जहां तक शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र का सवाल है तो जिस तरह से कोलारस में कांग्रेस का मजबूत जनाधार हैं।
उसी तरह से शिवपुरी सीट भी भाजपा की सर्वाधिक सुनिश्चित जीत मानी जाती है और 2007 के उपचुनाव को छोड़ दें तो 1989 से भाजपा यहां से लगातार चुनाव जीत रही है। भाजपा ने इस बार अपने सबसे मजबूत उम्मीद्वार यशोधरा राजे सिंधिया को चुनाव मैदान में उतारा था जो इससे पहले भी इस सीट से तीन चुनाव जीत चुकी थीं। उनका यहां अपना प्रभाव है और सिंधिया राज परिवार का प्रभाव भी इस सीट पर है।
इस कारण कांग्रेस शिवपुरी सीट को पहले से हारी हुई मान रही थी इसलिए यहां कांग्रेस की हार पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। हां, यह बात अवश्य है कि कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढ़ा बुरी तरह से पराजित हुए। उनकी इतनी बुरी हार से एक बात निश्चित है कि भितरघात के कारण उन्हें पराजय हासिल नहीं हुई।
वह यदि नहीं जीते तो यह स्वयं उनकी कमजोरी थी जबकि कोलारस में कांग्रेस की 720 मतों की हार उस स्थिति में जब उपचुनाव में कांग्रेस आठ हजार मतों से जीती थी, इस बात का संकेत है कि कांग्रेस की हार सिर्फ और सिर्फ भितरघात के कारण हुई है। अगर इन सभी बातो से सिद्ध् होता है कांग्रेस ने शिवपुरी विधानसभा चुनाव लडने से पहले ही मन से हार चुकी थी। इसलिए कोलारस की हार पर इतना हाहाकार मचा हुआ हैं।
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