सिंधिया के शार्गिर्दो ने ही उठाया महल विरोध का झंण्डा, हरिबल्लभ के बाद संभाली वीरेन्द्र ने कमान | Shivpuri News

शिवपुरी। शिवुपरी-गुना की राजनीति महल का वर्चस्व है। शिवपुरी-गुना सांसदीय सीट कांग्रेेस की जब तक अजेय मानी जाती है जब तक सांसद सिंधिया यह से चुनाव लडेंगें। शिवपुरी में भाजपा हो या कांग्रेस महल विरोध की राजनीति एक धडा करता है। अगर देखा जाए तो सिंधिया के शर्गिदो ने ही महल विरोध का झंण्डा बुलंद किया है। 

सबसे पहले महल विरोध की राजनीति में पोहरी के पूर्व विधायक हरिबल्लभ शुक्ला का नाम आता है,अब वीरेन्द्र रघुवंशी का। कांग्रेस से बागी होकर आए वीरेन्द्र रघुवंशी को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है। या यू कह लो की महल विरोध का झण्डा अब वीरेन्द्र रघुवंशी ने बुलंद कर लिया है। 

कल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आमसभा में वीरेन्द्र रघुवंशी ने खुलकर सिंधिया का नाम लिए बिना कहा कि गुना संसदीय क्षेत्र में राजनैतिक क्षत्रपों के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए मुझे आशीर्वाद प्रदान करो। इस तरह से उन्होंने कोलारस के मुकाबले को ज्योतिरादित्य बर्सेस वीरेन्द्र रघुवंशी का रूप देने का प्रयास किया। 

इससे यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि छह माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में एक जमाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के शार्गिद वीरेन्द्र रघुवंशी गुना संसदीय क्षेत्र से उन्हें चुनौती दे सकते हैं। कोलारस में टिकट भी श्री रघुवंशी को सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सिफारिश पर मिला। इससे स्पष्ट है कि सिंधिया को चुनौती देने के लिए ही वीरेन्द्र रघुवंशी पर हाथ रखा गया है।

इस अंचल में महल को चुनौती उन शर्गिदो से  मिलती रही है जो एक जमाने में जयविलास पैलेस और रानी महल के निकट रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले में भाजपा ने महल को चुनौती देने के लिए समानता दल के विधायक हरिबल्लभ शुक्ला को मैदान में उतारा। 

श्री शुक्ला को 1980 में स्व. माधवराव सिंधिया ने पोहरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा था और उस जमाने में वह सिंधिया परिवार के बहुत निकटस्थ माने जाते थे, लेकिन अतिरिक्त महत्वाकांक्षा के कारण हरिबल्लभ राज दरबार से बाहर हुए और उन्हें क्षमता के बावजूद 1985, 93 और 98 के चुनाव में टिकट नहीं मिला। 

इससे निराश होकर हरिबल्लभ ने कांग्रेस और भाजपा के विरूद्ध समानता दल प्रत्याशी के रूप में 2003 के चुनाव में पोहरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इससे उनके हौसले बुलंद हुए और उन्होंने 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा प्रत्याशी के रूप में जोरदार चुनौती दी। इसके बाद वह लगातार महल के रास्ते में कांटे बिखेरते रहे। 

उनके विरूद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज हुए और अंतत: उन्हें समझ में आ गया कि महल विरोध से उनकी राजनीति ज्यादा आगे नहीं चल पाएगी। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले हरिबल्लभ सिंधिया खेमे की राजनीति में शामिल हो गए और उन्हें 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने पोहरी से टिकट भी दे दिया। यह बात अलग है कि वह चुनाव नहीं जीत पाए। महल के खूंटे से बंध जाने के कारण महल विरोध की राजनीति नदारद हो गई थी जिसकी भरपाई अब पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी कर रहे हैं। 

वीरेन्द्र रघुवंशी को 2007 के शिवपुरी विधानसभा उपचुनाव में जिताने को महल ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था और उन्हें जिता भी दिया, लेकिन 2013 के चुनाव में शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया के हाथों हार की कसक वह भूल नहीं पाए और उन्होंने आरोप लगाया कि सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनकी हार सुनिश्चित की। इसके बाद वीरेन्द्र रघुवंशी भाजपा में शामिल हो गए और उन्होंने महल विरोध की कमान जो कि हरिबल्लभ के मैदान से हट जाने के बाद सूनी पड़ी थी उसे थाम लिया।