छाती पर झेल गई यह गढी, लक्ष्मी बाई और तात्या पर दागे गए गोले | Shivpuri News

ललित मुदगल/शिवपुरी। मै शिवपुरी हॅू, मैने तात्या की लहराती तलवार देखी है, जो एक साथ कई अग्रेंजो के सर को कलम कर देती है। मैने तात्या के भय से कई अंग्रेजो अफसरों को र्थराते देखा हैंं। में बलिदान की स्थली हूॅ, कई महान आत्माओं ने मेरी गोद में दम तोड़ा है, लेकिन मेरी माटी से जन्म लेने वाली आजादी में अग्रेंजो से लोहा लेने वालो की वीरता को इतिहास ने कही खो दिया हैं।

पोहरी विधानसभा का एक गांव गोपालपुर जो कि शिवपुरी मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित हैं। भारत की आजादी से पूर्व गोपालपुर गांव राव रघुनाथ सिंह वशिष्ठ की जागीर हुआ करती थी। जब सन 1857 में आजादी का संग्राम चरम पर था। महारानी लक्ष्मी बाई अंग्रेजो के विरूद्ध् संघर्ष कर रही थी उस समय गोपालपुर जागीर ने महारानी के लिए अपने पूरे द्वार खोल दिए थे। 

इतिहास के पन्नों में गोपालपुर के जागीर की घटना दर्ज नही हैं, लेकिन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण और प्रमाण आज भी गोपालपुर की गढ़ी में स्पष्ट सबूत बनकर गोपालपुर जागीर का आजादी की लडाई में अपना सबकुछ लूटा देने का प्रमाण आज भी जिंदा हैं।

शिवपुरी दिग्दर्शन किताब में गोपालपपुर जागीर के जागीरदार राव रघुनाथ सिंह वशिष्ठ की एक शौर्य गाथा सिर्फ चंद शब्दो में उल्लेख की गई हैं, इस किताब में ग्वालियर गजेटियर, हिस्ट्री आॅफ दी इंडियन म्यूटिनी तथा राष्ट्रीय अभिलेखागार भोपाल में रखे दास्तावेज से उल्लेख किया है कि सन 57 के महासंग्राम के समय के समय झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा महान अमर बलिदानी तात्या टोपे ने राव रघुनाथ सिंह वशिष्ठ की गढी में आश्रय लिया था।

रानी लक्ष्मीबाई ने यहां रूककर ग्वालियर पर कब्जा करने की सफल रणनीति तात्या टोपे ने बनाई थी। आजादी के लिए गोपालपुर जागीर ने अपने खजाने के लिए पूरे दरवाजे खोल दिए थे। गोपालपुर गांव अभी भी घने जंगलो में बसता हैं। उस समय गोपालपुर गांव एक घनघोर जंगलो में होगा। जहां इस गांव के निवासी के बिना इस गांव में पहुचना असभंव था। 

इस किताब में यह भी उल्लेख है कि रानी और तात्या की मदद के जुर्म में जागीरदार राव रघुनाथ सिंह की तीनों जागीर क्रमंश,गोपालपुर,खांदी और गौंदोली पुरा को तत्कालीन शासक ने जब्त कर लिया था। इतिहास के पन्नो में सिर्फ इतना ही अंकित है,लेकिन गोपालपुर की गढी की दीवारे चीख—चीख कर दूसरा इतिहास बताती हैं।

स्थानीय निवासी ओर राव रघुनाथ सिंह के वंशज बताते है कि जब देश में  सन 57 की क्रांति अपने चरम पर थी,तब गोपालपुर जांगीर उस समय की बडी जांगीर हुआ करती थी,इस जागीर के जागीरदार राव रधुनाथ से आजादी की लडाई में संसाधनो की मदद के लिए रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे वहां पहुंचे थे। 

कई दिन गोंपालपुर की गढी में रहे और आजादी की लडाई के लिए योजना बनाई किन्तु किसी तरह  अंग्रेज शासन को इस योजना की भनक लग गई,तो अंग्रेज सेना की एक टूकडी ने इस गढी पर आक्रमण किया,लेकिन राव रघुनाथ की सेना ने इस आक्रमण को विफल कर दिया। 

अग्रेंज इस गढी में प्रवेश करने का प्रयास किया,लेकिन राव रघुनाथ सिंह ने ऐसा होने नही दिया। अग्रेंजो ने अपनी तोपे के मुहं खोल दिए,और पत्थर से बनी यह लोहे सी दिवारो ने अपनी छाती पर इन हथगोलो को झेल लिया,लेकिन यह हथगोले फटे नही। 

रानी ओर तात्या गढी में बनी एक गुप्त सुरंग से सुरिक्षत बहार निकलने में सफल रहे,अग्रेंजो के आक्रमण के सबूत आज भी इस गढी की दिवालो में साफ आज भी देखे जाते हैं।इस गढी की दीवालो में आज भी अग्रेंजो की तोपो से निकले हथगोले आज भी इस गढी की दिवालो में धंसे हैं। 

कितवंती है कि अग्रेजो के गोले उनकी तोपो से निकले और गढी की दीवालो में जा धसे,लेकिन फटे नही यह एक रहस्य हैं। अग्रेजो का कोई भी हथियार इस गढी को नुकसान नही पहुंचा सका। उक्त घटना कही भी इतिहास क पन्नो में दर्ज नही है लेकिन सबूत आज भी जिंदा है जिसे शिवुपरी समाचार डॉट कॉम के अपने कैमरे में कैद किया हैं।

उक्त गढी आज जर्जर हालत में हैं,बताया गया है कि हवेली आज भारत सरकार के अधीन हैं,यह हवेली भारत सरकार को रावरघुनाथ सिंह के वंशज स्व:श्री करनसिंह वशिष्ठ ने सन 80 में भारत सरकार को दे दी थी,लेकिन सरकार इस गढी को दान लेने के बाद भूल गई। 

राव रघुनाथ सिंह वशिष्ठ नवल सिंह खांडेराव के वशंज थे। नवल सिंह खंडेराव पर एक ग्रंथ खाडेराव रासो प्रकाशित हैं। खाडेराव नरवर के राजा अनुप सिंह ने गोद लिए थे। वे एक भटनावर गांव के ब्राहम्ण बालक थे, और नरवर राज्य के आज तक के सबसे वीर सेनापति थे। नरवर में आज भी खाडेराव हवेली उनकी वीरता का परिचय देती हैं राव रघुनाथ सिहं वशिष्ठ के वंशज आज भी गोपलपुर स्थिल हवेली और शिवपुरी नगर में निवास करते हैं।