सिंधिया की शिकायत को ट्रॉफी मान लहराते घूम रहे डीपीसी शिरोमणि दुबे!

ललित मुदगल/शिवपुरी। भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के आरोप में घिरे डीपीसी शिरोमणि दुबे के मामले में चुनाव आयोग ने तत्काल ट्रांसफर की सिफारिश की थी जिसके कारण शिवपुरी डीपीसी शिरोमणि दुबे को भोपाल भेज दिया गया था लेकिन कोलारस चुनाव के बाद डीपीसी फिर शिवपुरी में अपनी कुर्सी पर काबिज होने में सफल हो गए। डीपीसी दुबे की शिकायत सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की थी। सांसद सिंधिया की इस शिकायत को डीपीसी शिरोमणि दुबे ट्रॉफी मानकर सर पर घूम रहे हैं और कलेक्ट्रेट के गलियारों में बोलवचन फैंक रहे है। 

चुनाव आयोग के आदेश पर चुपचाप निकल लिए थे
जैसा कि विदित है कि कोलारस चुनाव के समय शिवपुरी डीपीसी शिरोमणि दुबे भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगा और इन्हे तत्काल भोपाल भेज दिया गया। इनकी तमाम शक्तियां धरी की धरी रह गईं थी। शिवपुरी की कुर्सी से मोह रखने वाले डीपीसी शिरोमणि दुबे ने कोलारस चुनाव के बाद अपना ट्रांसफर पुन: भोपाल से शिवपुरी करा लिया। अब सुना है कि डीपीसी शिरोमणि दुबे अपने ऑफिस में ओर कलेक्ट्रेट की गलियारों मेे बोलवचन मार रहे है कि देखो तुम्हारे सांसद भी मुझसे हार गए में अपना ट्रांसफर शिवपुरी फिर करवा लिया है। 

शिवपुरी में किसी मालेवयर जैसे डाउनलोड हो गए हैं, बार बार ओपन हो जाते हैं
इस मामले में अपने राम का कहना है कि छापस रोग से ग्रसित डीपीसी शिरोमणि दुबे 8 साल पहले किसी मालेवयर की तरह शिवपुरी की कुर्सी पर डाउनलोड हो गए थे, नैतिकता और नियमों का बलात उल्लंघन कर खुद को शक्तिशाली समझ रहे हैं। किसी भी विभाग के मुखिया की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति यदि नियमों को तोड़ना अपनी वीरता समझता है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता। 

आए दिन अपने ही विभाग को बदनाम करते रहते हैं
पिछले 8 साल से शिवपुरी डीपीसी की कुर्सी पर प्लांट है। डीपीसी अपना पर्सनल पीआरओ लेकर चलते हैं ओर इनका हर दौरा समाचार पत्रों की सुर्खिया बनता है। इनके दौरे से शिक्षा विभाग को बदनाम करने वाली ही खबर ही निकलती है। सामान्यत: यदि किसी विभाग के मुखिया को अपने विभाग में कोई कमी मिलती भी है तो वो उसे चुपचाप दुरुस्त करता है परंतु दुबे अपने विभाग की गलतियों को दुरुस्त करने के बजाए उजागर करने में आनंद उठाते हैं। 

डीपीसी की खबर ने डीपीसी की पोल खोल दी
डीपीसी के पिछले दौरे के बाद शिक्षा विभाग की इज्जत लूटती एक खबर छपवाई गई। इस खबर ने डीपीसी की 8 साल की नौकरी पर सवाल खड़े कर दिए है। इस खबर में बताया गया कि डीपीसी शिरोमणि दुबे ने जिले के भौती कस्बे के प्राथमिक विद्यालय टपरिया में शेरगढ में डीपीसी शिरोमणि दुबे के औचक निरिक्षण कर शिक्षकों की योग्यता का आंकलन किया। हालात यह थे कि एक शिक्षक एक समान्य सा भाग नही कर पाया और शिक्षक गणित के अंको को शब्दो में नही लिख पाया। 

प्राइमरी के सवालों का जवाब नहीं दे पाए शिक्षक
शेरगढ के इस स्कुल का डीपीसी ने जब बच्चो का शैक्षाणिक स्तर चेक किया तो बहुत नीचे पाया। फिर डीपीसी ने शिक्षक का पढाने का स्तर चैक किया तो शिक्षक बालक दास एक सामन्य सा भाग नही दे सका। फिर डीपीसी ने इसी स्कूल के एक अन्य शिक्षक संजय सिंह परमार को गणित के अंको को शब्दो में लिखने को कहा तो वह अंको को हिन्दी के शब्दों में नही लिख सका। डीपीसी ने कहा कि इस मामले में अयोग्य शिक्षकों को विभाग में रहने से छात्रों का नुकसान होता है इसलिए कमजोर शैक्षाणिक स्तर वाले शिक्षको के विरूद्व सेवा समाप्ति के प्रस्ताव भेज जाऐगें। 

शिक्षकों को प्रशिक्षित करना ही तो डीपीसी का काम है
ज्ञात हो कि शासन ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरूआत इस कारण की थी, कि शिक्षको और बच्चो का शैक्षाणिक स्तर उच्च हो। शासन ने जिला स्तर पर ऐकेडमिक पद डीपीसी प्रकट किया। जिन शिक्षकों का शैक्षाणिक स्तर कमजोर है ऐसे शिक्षकों चयनित कर डाईट के माध्यम से प्रशिक्षण करना सर्व शिक्षा अभियान के डीपीसी का काम है। 

8 साल में शिक्षकों को कुछ भी नहीं सिखा पाए
सवाल यह नहीं है कि डीपीसी अंगद का पांव है और सिंधिया भी नहीं हिला पाए। सवाल यह है कि डीपीसी पिछले 8 साल में शिक्षकों को प्राइमरी के सवालों के जवाब भी नहीं सिखा पाए। यदि शिवपुरी में शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है, यदि शिवपुरी में शिक्षकों की गुणवत्ता उचित नहीं है तो इसके लिए डीपीसी ही जिम्मेदार है क्योंकि डीपीसी एक एडेकमिक पद है। उसकी जिम्मेदारी है कि वो शिक्षकों को सिखाए, समझाए और योग्य बनाए। डीपीसी के निरीक्षण प्रक्रियाओं में यह प्रमाणित हो गया है कि शिवपुरी में डीपीसी पूरी तरह से फेल है। क्यों ना नैतिकता के नाते शिरोमणि दुबे खुद की सेवा समाप्ति की अनुशंसा करें।