क्या इसे ही संगठन कहते हैं ? मुझे संगठन मत सिखाओ भाई

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हरिहर शर्मा। एक मित्र ने जानकारी दी कि आपके प्रायश्चित उपवास से संगठन बहुत नाराज है। अब आपका भविष्य समाप्त। बचपन में अम्मा ने दो कहानियां सुनाईं थीं, एक दुनिया की सबसे लम्बी कहानी, और दूसरी सबसे छोटी कहानी! देखा जाए तो दोनों ही कहानियां का फलसफा एक ही है! सबसे लम्बी कहानी – एक कमरे में गेंहूं भरे थे! कमरे में एक रोशनदान भी था! उससे एक चिड़िया अन्दर आई, उसने गेंहूं का एक दाना उठाया और उड़ गई–फुर्र! चिड़िया रोशनदान से फिर अन्दर आई, एक गेंहू का दाना उठाया और उड़ गई–फुर्र! चिड़िया तब तक आती रहेगी, जब तक कमरे में एक भी गेंहू का दाना शेष है! हर बार आयेगी और उड़ जाती रहेगी फुर्र! है न सबसे लम्बी कहानी ?

अब सबसे छोटी कहानी – 
एक था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गए ख़तम कहानी! 

दोनों कहानियों में एक समानता है कि वे हमारे जीवन को ही प्रतिबिंबित करती हैं! सोचता हूँ कि जीवन आखिर है क्या ? पैदा हुए, शादी हुई, बच्चे किये ओ मर गए! फिर चिड़िया की तरह अगले जन्म में वापस आये, फिर वही पुनरावृत्ति! फिर पैदा हुए, शादी हुई, बच्चे किये ओ मर गए! अनंत काल तक चलने वाली पुनरावृत्ति! हो सकता है कि कभी मनुष्य रूप में आई चिड़िया, तो कभी किसी और प्राणी के रूप में! चिड़िया आती रहेगी और उड़ती रहेगी, फुर्र! 

फिर किसकी मजाल कि मेरा भविष्य समाप्त करे ?  और फिर मेरी शक्ति है मेरी मित्र मंडली, वही है मेरा संगठन। जो एक बार मित्र बना, वह सदा के लिए बना। दम है तो उनमें से एक को भी मेरे खिलाफ करके बताओ।

आज का संगठन वाह वाह क्या बात है ?

1974 की बात है मैं विद्यार्थी परिषद् का संगठन मंत्री था। जयप्रकाश जी का आन्दोलन शुरू हुआ। परिषद् ने कोलेज बंद करवाया। समस्त छात्र क्लास छोड़कर बाहर आ गए। केवल एक विद्यार्थी अकेले कक्षा में बैठे रहे। जानते हैं उनका नाम क्या है ? श्री हरिवल्लभ शुक्ला। जो बाद में कांग्रेस से भी विधायक बने और भाजपा से भी संसदीय चुनाव लडे और आज फिर कांग्रेस में ही दंड पेल रहे हैं। मुझे ये आज के अधकचरे नेता संगठन का पाठ पढ़ाएंगे ?

अब दूसरी कहानी –
विद्यार्थी परिषद् के नगर उपाध्यक्ष शिवकुमार गुप्ता के साथ अशोक सिंह भदौरिया नामक एक कोलेज छात्र ने मारपीट कर दी। अशोक भदौरिया गणेश गौतम का मित्र था तथा उसके पिताजी एसडीओपी पुलिस भी थे। उसके बाद कोलेज में भी विवाद हुआ और गणेश गौतम व एक स्थानीय दादा महेश पापी ने साईकिल की चैन व लोहे की रोड से कार्यकर्ताओं को पीटना शुरू कर दिया। मैंने महेश पापी को रोकने की कोशिश की और बदले में दो चैन अपनी पीठ पर भी झेली। मुझ पर उसने प्रहार तो कर दिया, किन्तु अपनी गलती मानकर वे सब तुरंत वहां से रवाना भी हो गए।

आज अशोक भदौरिया भिंड भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी हैं। साथ ही गणेश गौतम कांग्रेस के भी विधायक रहे और भाजपा की ओर से भी विधायक का चुनाव लडे।

क्या इसे ही संगठन कहते हैं ? मुझे संगठन मत सिखाओ भाई और खिजाओ तो बिलकुल मत। मैं स्वभाव से विद्रोही हूँ। जब इंदिरा जी की जेल नहीं झुका सकी तो आपके अनुशासन का डंडा भी बूमरेंग साबित होगा, सावधान! मेरे विषय में पीठ पीछे बात मत करो, हिम्मत है तो सामने आकर सवाल जबाब करो। चाहे जितने बड़े खलीफा हो।
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