धर्म से सांसारिक वैभव प्राप्त करने का कोई संबंध नहीं: जैन संत

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शिवपुरी। धर्म का रास्ता उन लोगों के लिए कतई नहीं है जो इसके जरिए सांसारिक सुख, वैभव और यश की कामना रखते हैं। धर्म आत्मा से जुड़ाव और आत्मा के शुद्धिकरण का माध्यम है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन संत राममुनि ने आज पोषद भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। संत राममुनि और विकास मुनि इंदौर में चातुर्मास संपन्न होने के बाद पदविहार करते हुए अगले चातुर्मास हेतु आगरा जा रहे हैं। इसी क्रम में वह शिवपुरी में रूककर धर्मोपदेश दे रहे हैं। 

धर्मसभा में संत राममुनि ने बहुत स्पष्टता से धर्म और पुण्य के अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि हम पुण्य के कार्य करेंगे तो उससे हमारा सांसारिक जीवन सुखमय बीतेगा। पुण्य के कार्य क्या होते हैं इसे बताते हुए राममुनि ने कहा कि भूखे को भोजन कराना, प्यासे को पानी पिलाना, पशु-पक्षियों को दाना पानी डालना, गाय को रोटी खिलाना, दूसरों के प्रति अच्छी भावना रखना सहित अनेक कार्य पुण्य के होते है। पुण्य के कार्य में धन खर्च करना होता है, लेकिन मन, वचन, काया और नमस्कार पुण्य ऐसे होते हैं जिसमें धन भी खर्च नहीं करना पड़ता। 

लेकिन धर्म पुण्य से भी आगे का कदम है जैसे हम एक मंदिर में प्रवेश करते हैं तो मंदिर के प्रवेश द्वार को पुण्य कहा जा सकता है, लेकिन मूर्ति तक पहुंचना और उस मूर्ति के जरिए अपने अंदर में प्रवेश करना धर्म है। उन्होंने कहा कि धर्म के लिए अनिवार्य शर्त यह है कि इसके प्रति हमारे अंतश में गहन श्रद्धा होना आवश्यक है, लेकिन चूंकि धर्म को संसार से जोड़ लिया गया है। 

धर्म से जुडऩे के बाद भी संसार में रूकावटें आती हैं तो जिम्मेदार धर्म को मान लिया जाता है और इससे हमारी श्रद्धा डावाडोल हो जाती है। इसलिए जिन्हें अपना संसार सुखमय बनाना है वह पुण्य के कार्य तक सीमित रहें और मुक्ति चाहने वाले, आत्मा से जुड़ाव रखने वाले, आत्मा को परिमार्जित करने वाले ही धर्म की राह पर अग्रसर हों। 

देव गुरू और धर्म के प्रति श्रद्धा हो असंदिग्ध
जैन संत राममुनि ने अपने संबोधन में कहा कि देव गुरू और धर्म के प्रति श्रद्धा असंदिग्ध होना चाहिए। कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति हो, लेकिन इनके प्रति विश्वास हर स्थिति में रखना चाहिए। जहां शंका होती है वहां धर्म से विमुखता पैदा होती है। 
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