पढ़िए भाजपा के दावेदार देवेन्द्र जैन की जलती बुझती कहानी

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सतेन्द्र उपाध्याय/शिवपुरी। कोलारस विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की तरफ से टिकट के लिए खुद को सबसे मजबूत दावेदार बता रहे देवेन्द्र जैन की पॉलिटिकल लाइफ किसी फिल्म से कम नहीं है। अब तक की जिंदगी में ये 2 बार फुलपॉवर का सुख भोग चुके हैं तो 2 बार शर्मनाक हार का सामना भी कर चुके हैं। शिवपुरी नगरपालिका के चुनाव में तो निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहन सिंह सेंगर से ही हार गए थे। कोलारस में भी रामसिंह यादव ने 25000 वोटों से ​हराया था। जीत का कोई बड़ा रिकॉर्ड इनके खाते में दर्ज नहीं है परंतु पॉलिटिक्स में पॉवर के समय की कहानियां इतनी हैं कि तारक मेहता से बड़ा सीरियल बन जाए। 

यशोधरा राजे की कृपा से बने पहली बार विधायक
देवेन्द्र जैैन की सक्रिय राजनीतिक की शुरूआत सन 1993 से बताई जाती है। देवेन्द्र जैन शिवपुरी विधानसभा से सांवलदास गुप्ता के खिलाफ चुनाव लडकऱ पहली बार विधानसभा में पहुंचे थे। उस समय देवेन्द्र जैन यशोधरा राजे सिंधिया के नौ रत्नों में शामिल थे। देवेन्द्र जैन ने विपक्ष में बैठकर राजनैतिक गलियारों में कम समय में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई। शिवपुरी शहर में देवेन्द्र जैन भाजपा के इकलौते कद़दावर नेता के रूप में पहचाने जाने लगे थे। तभी शिवपुरी शहर में यशोधरा राजे ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 

यशोधरा विरोधी हुए तो नगरपालिका चुनाव भी हार गए
जब यशोधरा ने शिवपुरी से अपनी चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर की तो देवेन्द्र जैन ने उनसे बगावत कर दी। हांलाकि इस बगावत के चलते देवेन्द्र जैन टिकट तो हासिल नहीं कर पाए मगर घर बैठे यशोधरा राजे से पंगा ले बैठे। जिसका खामियाजा इन्होंने उस समय भी चुकाया जब शिवपुरी नगर पालिका चुनाव में र्निदलीय प्रत्याशी जगमोहन सिंह सेंगर से नगर पालिका चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। 

तीन साल की रणनीति के बाद भाजपा के जिलाध्यक्ष बन पाए
उसके बाद उन्होंने संगठन की शरण लेना उचित समझा और भाजपा में शिवपुरी जिलाध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी दिखाई। यहां भी इनकी दाल नहीं लगी और यहां जिलाध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में नरेन्द्र विरथरे से एक बोट से हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद तीन साल तक यह संगठन में लगातार अपनी पकड़ बनाते रहे। तीन साल बाद भाजपा का जिलाध्यक्ष पद हासिल कर ही लिया। 

कोलारस विधानसभा चुनाव ने बदली किस्मत
2009 मेे परसीमन के बाद कोलारस से भारतीय जनता पार्टी ने इन पर भरोसा जताया। हांलाकि बाहरी प्रत्याशी होने की बजह से इनका क्षेत्र में स्थानीय नेताओं में विरोध हुआ जो आज तक निरंतर जारी है। मगर जातिवाद का जटिल गणित एवं शिवराज लहर पर सवार होकर बमुश्किल 238 वोटों से रामसिंह यादव को हराकर विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हो पाए। 

जिले के सबसे ताकतवर नेता बन गए 
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पंचायत चुनाव में भी इन्होंने अपना लोहा मनबाया। जिस रामसिंह यादव को हराकर यह विधायक बने थे। उसी के गढ़ में पहुंचकर जहां यादव और रघुवंशी बाहुल्य क्षेत्र से वीरेन्द्र रघुवंशी को चुनाव हराकर जिला पंचायत का अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने भाई जितेन्द्र जैन गोटू को काबिज करा दिया। उसी वर्ष कॉपरेटिव बैंकों के चुनाव में भैया सहाब लोधी को नाटकीय ठंग से अध्यक्ष बनाने के बाद देवेन्द्र जैन एक बहुत बड़ी शाक्ति के रूप में उभरकर सामने आए। जिसका नतीजा यह हुआ कि अपने कोलारस विधानसभा क्षेत्र में तीन मण्डी चुनाव में अपने पसंद के अध्यक्ष बनाने में उन्हें कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। 

2013 में शर्मनाक हार मिली, 3 साल सदमे में रहे
अब इनकी इन खूबियों के बीच जो खामिया रही उन पर भी एक नजर डाले तो कार्याकर्ताओं ने इन पर हमेशा ही समाजवाद के आरोप लगाए। दूसरा कोलारस विधानसभा क्षेत्र में इन्होंने अपने शौक जुआ एवं शराब के चलते खूब सुर्खियां बटौरी। एक समय इन पर यह भी आरोप लगे कि जिला पंचायत का 80 प्रतिशत फंड कोलारस विधानसभा में खर्च किया। अब 80 प्रतिशत की फंडिग़ का नतीजा इन्हें दूसरी बार पार्टी द्वारा दिए टिकिट में चुकाना पड़ा। इस फंडिग के चलते कोलारस विधानसभा में नए रिकॉर्ड तो बनाए परंतु ग्रामीण राजनीति में सरपंच और सचिव को खुली छूट को उनके विरोधी पचा नहीं पाए जिसका गुबार विधानसभा चुनाव के नतीजों में बम की तरह फूटा और यह कोलारस से रामसिंह यादव से 25 हजार मतों से हार गए। उसके बाद यह हार को झेल नहीं पाए और पूरे तीन साल सदमें में रहे। 

अब इज्जत बचाने की जद्दोजहद
पिछले 1 साल से देवेन्द्र वापस कोलारस में सक्रिय हुए और 2018 की तैयारी कर रहे थे। अब कोलारस उपचुनाव आ रहे हैं। देवेन्द्र जैन को पूरा भरोसा है कि भाजपा के टिकट पर उनका ही नाम लिखा होगा। 2013 में मिली शर्मनाक हार के बाद अपनी प्रतिष्ठा बचाने का यही एक अवसर है। यदि इस बार टिकट हाथ से निकल गया तो 2018 में भी नहीं मिलेगा। देवेन्द्र जैन एक तरफ भाजपा के दिग्गजों को भरोसा दिला रहे हैं कि उनके दमदार कोई दूसरा नहीं हो सकता तो दूसरी ओर क्षेत्र में भी सक्रिय हो गए हैं लेकिन 2008 से 2013 तक की कहानियां कोलारस में आज भी दोहराई जा रहीं हैं। 2013 की हार के बाद जिन ग्रामीणों को देवेन्द्र जैन ने दुत्कार कर भगाया था, वो भी बदला लेने के लिए तैयार हो गए हैं। कुल मिलाकर देवेन्द्र जैन के लिए संघर्ष हर तरफ हैं परंतु उन्हे भरोसा है कि पत्तेवालों के पत्ते बेकार नहीं जाएंगे। नंदकुमार सिंह चौहान ने जैसा सहयोग संजय पाठक को किया, वैसा ही देवेन्द्र जैन को भी मिलेगा। 

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