200 रूपए से कम की मजदूरी पर नहीं जाएंगे आदिवासी, महापंचायत में हुआ निर्णय

शिवपुरी। अब तक होते रहे अपने आर्थिक और सामाजिक शोषण से मुक्ति हेतु सहरिया आदिवासियों ने कमर कस ली है। एक जुट होकर पूरा सहरिया समाज अकिब न केवल अन्धविश्वास और कुरीतिओं से ही लड़ेगा बल्कि अब सामाजिक व आर्थिक समानता के लिए भी क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए भी संकल्पित हो रहा है। शिवपुरी से 16 किलोमीटर दूर जंगल में स्थित प्राचीन कंडवखेरा सिद्ध स्थल पर सहरिया क्रांति के 111 गांवों के सहरिया प्रधानों की महा पंचायत हुई जिसमें ऐतिहासिक निर्णय लिए गए और पूर्व में बलारपुर मंदिर पर हुई सहरिया पंचायत में तय किये गए बिंदुओं का पंचनामा जारी किया गया। इस महापंचायत की खासियत यह थी की अब तक समाज की चौपाल और बैठकों में केवल बुजुर्ग लोग ही हिस्सा लेते थे लेकिन सहरिया क्रांति के बाद इसमें युवाओं की भागीदारी अधिक देखने को मिली। 

सरल, निश्छल और आडंबरहीन नागरिक के रूप में आदिवासी रामायण महाभारत काल से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। प्रकृति से उनका तादात्मय संबंध रहा है। बिडंबना यह कि आज 21 वीं सदी में भी वे उससे भी बद्दतर हालातों में जीने को विवश रहे। कदम कदम पर शोषण, दमन और अत्याचार झेलना जैसे आदिवासी की नियति बन गया हो। शिवपुरी सरकारी दफ्तरों में अर्जियां हाथ में लिए अफसरों की उपेक्षा का शिकार  सहरिया आदिवासी नित्य नजर आते हैं। सामाजिक और आर्थिक उपेक्षा का दंश झेल रहे आदिवासियों को सहरिया क्रांति ने उम्मीद की किरण दिखाई और आश्चर्यजनक रूप से सहरिया समाज ने बदलाब की हुंकार भरना प्रारम्भ की। 

घनघोर जंगल में स्थित प्राचीन सिद्ध स्थल कंडवखेड़ा पर सहरिया क्रांति ने सहरिया समाज के प्रधानों की महा पंचायत का आयोजन किया। महापंचायत के प्रारम्भ में आदिवासियों की आराध्य शबरी माता की स्तुति और जयकार की गई जिसके बाद विभिन्न गांवों से आये सहरिया आदिवासी प्रधानों ने अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति की समीक्षा की। जिसमें सभी ने इसके लिए अज्ञान और व्यसनों के साथ अपनी भोली भली मानसिकता को जिम्मेदार माना। महा पंचायत में अपने विचार रखते हुए ऊधम आदिवासी ने कहा कि अब तक हम अज्ञानवश जो भी जुल्म और अमानुषिक अत्याचार झेलते चले आ रहे थे अब उनसे मुक्ति के लिए सहरिया क्रांति एक सामाजिक आंदोलन ने हमें नई दिशा और सोच दी है।
 
उन्होंने कहा  कि शराब और व्यसनों से मुक्ति के बाद समाज नई राह पर चल निकला है और सभी को सख्त से सख्त निर्णय लेकर नाश की जड़ नशे से दूरी बनानी है। ऊधम आदिवासी की इस बात का उपस्थित सभी लोगों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया और पंचनामे में दर्ज इस अनमोल वाक्य को मान्यता दी। सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन ने महापंचायत में उपस्थित आदिवासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों को विकास की मुख्य धारा में जुडऩे में  जो पांच व्यसन रोड़ा बनते थे उनसे सहरिया भाइयों ने अब दूरी बना ली है  और अब इस समाज को आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता।  

उन्होंने कहा कि बलारपुर माता मंदिर पर समाज की पंचायत में व्यसनमुक्ति के संकल्प के बाद जिले भर में सहरिया भाई शराब और जुआ से दूरी बनाने लगे हैं और स्वत: ही सहरिया क्रांति के साथ नव समाज का निर्माण हो रहा है। संजय बेचैन ने ऐसे सभी सहरिया बंधुओं का आभार माना जिन्होंने दिन रात इक करके शराब और व्यसनों से मुक्ति हेतु युवाओं और समाज को जाग्रत किया। 

सहरिया क्रांति की इस महा पंचायत में अपने विचार रखते हुए अनिल आदिवासी ने कहा कि गांवों में सहरिया समाज के साथ भेदभाव  कर उन्हें कुछ लोग अपमानित करते हैं और जब कोई उत्सव होता है तो अन्य समाज के लोगों को टाटपट्टी और टेबल कुर्सी पर बैठाकर खाना परोसा जाता है वहीं सहरिया आदिवासियों को नीचे जमीन पर बैठाकर जानवरों से भी बद्द्तर तरीके से कई लोग पंगत मैं बैठाते हैं। उन्होंने सभी से इस तरह की पंगत  में भोजन न  करने जाने की अपील की जिसे सभी ने स्वीकार किया और सर्व सम्मति से इस तरह के अपमान भोज का त्याग करने का निर्णय लिया। 

महापंचायत में कम मजदूरी मिलने का मुद्दा उठाते हुए विजय सिंह ने कहा कि आज जब सरकारी मजदूरी की दर लगभग पौने दो सौ रूपये पर पहुंच गई है वहीँ सहरिया समाज के मजदूरों को मात्र सौ सवा सौ रूपये में खेतों पर काम कराया जा रहा है एमहंगाई के इस दौर  में सहरिया मजदूर आगे नहीं बढ़ पा रहा है और दिनों दिन और भी अधिक अंधे कुआं में गिरता जा रहा है।  

विजय आदिवासी की इस बात पर विचार विमर्श हुआ और सभी ने तय किया की सभी सहरिया मजदूर 200 रूपये से कम में मजदूरी करने नहीं जायेंगे। कल्याण आदिवासी ने कहा कि कुछ लोग भ्रमित होकर अपने समाज के लोगों को जूतों की माला पहनाकर सुधारना चाहते हैं यह गलत है और मेरा सुझाव है कि जूतों की माला नहीं शराब पीने वाले को फूलों का हार सौंपकर उसे इस बात एहसास करायें कि उसके द्वारा किया गया नशा ही उसके नाश की जड़ है। उन्होंने सभी समाज बंधुओं से अपील की कि जो नशा करके उत्पात मचाए या शांति भंग करे उसे कानून की मदद से सुधारने का प्रयास किया जाए। कल्याण आदिवासी की इस बात का सभी ने पुरजोर समर्थन किया।

सहरिया क्रांति की इस चौपाल में बच्चों को शिक्षित करने, मैले गंदे कपड़े पहनकर न रहने ए राशनकार्ड और जमीन गिरवी न रखने, मृत्युभोज का त्याग करने ए किसी भी स्थिति में कानून हाथ में ना लेने आदि कई निर्णय लेकर पंचनामा जारी किया गया। 
 महा पंचायत का पंचनामा 
1. समस्त समाज के लोग अपने बच्चों को साफ सफाई के साथ विद्यालय भेजेंगे।
2. जितने भी पंचगण आये हैं सभी ने दारु, शराब या गांजा आदि समस्त तरह के नशे को त्यागने एवं जुआ          ताश आदि व्यसनों से दूर रहने के संकल्प का पालन 
3. पति के होते अवैध तरह से किसी अन्य समाज में जाने वाली महिला को निंदा पत्र 
4. आदिवासियों से छुआछूत का व्यवहार करने वालों से वैसा ही छुआछूत का बर्ताव किया जायेगा। 
5  साफ  सफाई और स्वछता के साथ ही रिश्तेदारी में या अन्यत्र जाया जायेगा। 
6 कोई भी सहरिया समाज का बंधू 200 रूपये से कम में मजदूरी करने नहीं जायेगा 
7 राशनकार्ड  या जमीन गिरवी रखने रखने वाले को निंदा पत्र 
8 अपमान भोज का बहिष्कार 
यह सभी फैसले सहरिया पंचों द्वारा सर्व सम्मति से लिए गए हैं जो सभी समाज के लिए मान्य करना है।