
मामला शिवपुरी के प्राचीन गोरखनाथ मंदिर के जीर्णोंद्धार का है। यशोधरा राजे खुद धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री हैं। बावजूद इसके एक मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य की गुणवत्ता की सही जानकारी उनके पास तक नहीं पहुंच पाई। शिवपुरी में उनके हजारों समर्थक हैं, बावजूद इसके वो सरकारी रिपोर्ट पर निर्भर रहीं और घटिया निर्माण कार्य का लोकार्पण कार्यक्रम तय हो गया। जब वो प्राचीन गोरखनाथ मंदिर के जीर्णोंद्धार कार्य एवं धर्मशाला निर्माण का लोकार्पण करने पहुंची तब उन्हे असलियत दिखाई दी। जिससे वो तिलमिला उठीं। उन्होंने लोकार्पण करने से इंकार कर दिया। बाद में कलेक्टर तरुण राठी के आग्रह पर उन्होंने पूजन किया। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इससे पहले भी वो इसी मामले में नाराजगी जाहिर कर चुकीं थीं। बावजूद इसके यहां घटिया कार्मों को ठीक नहीं किया गया।
ये तो अच्छी बात है, लोकप्रियता बढ़ती है
मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के पास चाटुकारों की फौज है। लोग उनके हर कदम पर तारीफों के कसीदे गढ़ते हैं। शायद ऐसे ही लोगों ने यशोधरा राजे सिंधिया को भ्रमित कर रखा है कि इस तरह लोकार्पण कार्यक्रम तय हो जाने के बाद नाराजगी प्रकट करने से जनता में अच्छा संदेश जाता है। उनकी लोकप्रियता बढ़ती है। वाह वाही होती है। संभव है अवसरवादियों का कोई गिरोह उनके ऐसे कदम पर तालियां भी पीटता हो। जय जयकारे लगाता हो।
ये यशोधरा का फेलियर है
दरअसल, यह यशोधरा राजे सिंधिया का सबसे बड़ा फेलियर है। मामला एक प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का है। यशोधरा राजे स्वयं धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री हैं। मामला शिवपुरी विधानसभा का है और यशोधरा राजे यहीं से विधायक भी हैं। सवाल यह उठता है कि जब वो अपनी विधानसभा में किसी निर्माण या जीर्णोद्धार का शुभारंभ करतीं हैं तो प्रारंभ से लेकर अंत तक उसका फालोअप क्यों नहीं होता। उनका अपना नेटवर्क क्या कर रहा होता है। क्यों किसी भी लोकर्पण कार्यक्रम के तय होने से पहले यशोधरा राजे यह सुनिश्चित नहीं करवा लेतीं कि जो काम हुआ है वो संतोषजनक है या नहीं। इस तरह लोकर्पण कार्यक्रम तय हो जाने के बाद अचानक यू टर्न लेना, ठीक वैसा ही है जैसे दरवाजे पर घोड़ी आ जाने के बाद दूल्हा ब्याह से इंकार कर दे। कितना दुखद है कि शिवपुरी के साथ 300 साल पुराना रिश्ता रखने वाले सिंधिया परिवार की वरिष्ठ महिला राजनेता को आज भी कदम कदम पर वो सारी छानबीन और जांच पड़ताल करनी पड़ती है जो देश के किसी भी दूसरे सफल नेता की टीम किया करती है। यशोधरा राजे को चाहिए कि वो अपनी टीम में एक ऐसे प्रकोष्ठ का गठन भी करें जिसके पास उचित और अनुचित की सही समझ हो और जो उनके सामने कड़वी बातें कर सके।