
मै शिवुपरी हूॅ, वर्तमान में श्रेय की राजनीति के चक्कर में सिंध जलार्धन योजना के भविष्य पर संकट के बादल मडराने लगे है। जैसा कि आपको संज्ञान होगा कि एक बटन दबाने के चक्कर में मुन्नालाल कुशवाह सहित अन्य 50 कांग्रेसियो पर आपराधिक मामला दर्ज हो गया। तो उधर बडी आन-बान-शान से बटन दबाया गया तो पानी कुछ किलोमीटर रेंग पाया।
मै शिवपुरी हूॅ, इस पूरे घटनाक्रम में नुकसान मेरा ही हुआ है, पानी नही आया, इस राजनीतिक घटनाक्रम में योजना का भविष्य दाव पर लग गया। मै किसे दोष दूॅ, अपने भाग्य को या अपने वर्तमान को। मै किसी को दोष नही देना चाहती। मैं तो उस इतिहास को दोष देना चाहती हूॅ जो अपने आप को दोहरा रहा है।
यहां मेरी हालत सीता की तरह हो गई है, जिसे वन गमन करते समय रावण हर ले गया। और अग्नि परिक्षा के फेर में मुझे राम ने फिर से वन में भेज दिया। कुल मिलाकर भाग्य ने कष्ट सीता के में लिखा, बटन कोई भी दबाता मुझे तो पानी की आस थी,लेकिन ऐसा नही हुआ।
मै शिवपुरी हूॅ, मुझे याद है कि राजनीति का अंहकार इस योजना पर सन 2013 में भी भारी पडा था। 2013 के विधान सभा के पूर्व प्रदेश के मुखिया अटल ज्योति योजना का शुंभारभ करने शिवपुरी आए तो उन्होने कहा था कि जल्द ही आपकी सिंध जलावर्धन योजना पूर्ण होगी और मैं इस चुनाव से पूर्व ही इस योजना का लोकार्पण करूंगा।
इसके बाद उसके बाद जब सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवपुरी आए और उन्होंने पत्रकारवार्ता में घोषणा की थी कि वह जल्द ही केंद्रीय मंत्री को शिवपुरी लाकर सिंध जलावर्धन योजना का लोकार्पण कराएंगे। उस समय श्री सिंधिया केंद्र में मंत्री थे। उनका कहना था कि चूंकि सिंध जलावर्धन योजना 2007 में मैंने मंजूर कराई है तो इसका लोकार्पण भी मैं करूंगा।
इस आपसी टकहराट के बाद यह योजना नियमो के फेर में उलझती चली गई। शहर के प्यासे कंठो ने आंदोलन किया तब की जाकर इस योजना में गति मिली। आज इस योजना को शुरू हुए 10 वर्ष का समय हो गया है। लेकिन यह पूर्ण नही हो सकी।
योजना के विलंब में इस प्रोजेक्ट की रेट दो गुना हो गई। इस कारण में मेरी प्यासी जनता को सिंध के पानी की दुगुनी कीमत चुकानी पड़ेगी। पहले जहां जल उपभोक्ताओं को 300 रूपए प्रति माह अदा करने पड़ते वहीं अब उन्हें 600 रूपए प्रतिमाह चुकाने होंगे।
मैं शिवपुरी हूॅ, मै किसी पर दोषारोपण नही करना चाहती हूॅ, मै तो अपने भाग्य को ही कोसती हूॅ। कि मेरी हालत उस हस्तिनापुर की द्रोपती जैसी हो गई है, जिसे पांडवो ने जुए पर लगा दिया,इसके बाद कौरवो ने चीर हरण कर दिया।
कुल मिलाकर कष्ट द्रोपती के भाग्य में ही आया। इसी प्रकार कोई भी लोकार्पण करता मुझे तो मेरे प्यासे कंठो के लिए पानी की आस थी। उत्तरदायित्व दोनो का ही बनता था। लेकिन इस अंहकार और श्रेय की राजनीति के चक्कर में आज तक पानी नही आया........................... .......
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