
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने वसंत पंचमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वसंत बदलाव का सूचक है और बदलाव हमेशा अच्छे एवं बेहतर के लिए होना चाहिए। साध्वी जी ने शिक्षा और ज्ञान के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि शिक्षक हमें शिक्षा प्रदान करते हैं जो संसार को चलाने के लिए आवश्यक है, लेकिन ज्ञान गुरू से एवं ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना से ही मिलता है। माँ सरस्वती की विशेषतायें गिनाते हुए साध्वी नूतन प्रभा श्री जी ने बताया कि माँ सरस्वती हंस पर विराजमान हैं और हंस में यह खूबी होती है कि वह दूध पानी के मिश्रण में से सिर्फ दूध को ग्रहण करता है और पानी को छोड़ देता है अर्र्थात हंस हमें अच्छाईयों को ग्रहण करने का संदेश देता है।
माँ सरस्वती के हाथ में कमल है और कमल कीचड़ में खिलने के बाद भी उससे अलग रहता है। संसार रूपी कीचड़ से परे रहना हमें कमल से सीखना चाहिए। इस संबंध में साध्वी जी ने महाराजा जनक और भरत चक्रवती का उदाहरण देते हुए बताया कि राज्य का संचालन करते हुए भी उन्होंने सत्ता संपत्ति और ऐश्वर्य को ज्ञान के ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने बताया कि संसार के प्रति आसक्ति ही दुख का कारण बनती है। माँ सरस्वती के एक हाथ में वीणा हैं तो दूसरे हाथ में माला है और इससे संदेश मिलता है कि हमें अपने ईष्ठदेव का स्मरण करना कभी नहीं भूलना चाहिए।
प्रारंभ में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की भक्ति और तत्पश्चात माँ सरस्वती का पूजन और अनुष्ठान श्रद्धालुओं के कर कमलों से कराया। इस अवसर पर जैन श्रद्धालु श्वेत रंग के वस्त्र धारण कर आए थे और जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने श्वेत रंग को उज्जवलता और तेजस्विता का प्रतीक बताया। अंत में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बड़ी मांगलिक का पाठ किया। जिसका लाभ श्रद्धालुओं ने उठाया।