एक ही परिवार के पांच सदस्यों ने छोड़ा घर, निकले वैराग्य के मार्ग पर

कोलारस। परम पूज्य भावलिंगी संत राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य गुरूदेव श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज द्वारा 1 जनवरी 2017 को देवेन्द्रनगर (पन्ना) म.प्र. में कोलारस विधानसभा क्षेत्र के एक जैसवाल परिवार के स पूर्ण पाँच सदस्य जो जनपद पंचायत क्षेत्र के ग्राम खरैह के रहने वाले थे कुछ वर्षों से यह परिवार कोलारस नगर पंचायत क्षेत्र में निवास कर रहा था जो प्रतिदिन कोलारस चन्द्रप्रभ दिग बर जैन मंदिर पर स पूर्ण परिवार दर्षन करने एवं चन्द्रप्रभ मंदिर पर मुनि श्री के प्रवचन एवं धार्मिक कार्यक्रमों में विषेष रूचि रखने लगा था। 

उन्हें आचार्य श्री 108 विमर्षसागर जी महाराज का आशीर्वाद मिला और वह अपने आत्म कल्याण के लिए ग्रहस्थ जीवन को छोडक़र मोह त्यागने का संकल्प लिया। जिनमें एक ही परिवार के ब्र.अरविन्द भैया, ब्र. विजयकुमारी दीदी, ब्र. सागर भैया, ब्र. गुन्जन दीदी, ब्र. रिया दीदी एवं कोटा (राज.) के ब्र. मुकेश भैया का आज जैन समाज की धार्मिक रीति-रिवाज अनुसार गोदभराई एवं बिनौली कार्यक्रम जैन एवं स पूर्ण समाज कोलारस द्वारा बैण्ड बाजे एवं धूम-धाम के साथ में बग्गी में बिठाकर चल समारोह यात्रा चन्द्रप्रभ दिग बर जैन मंदिर से सदर बाजार होते हुए पाश्र्वनाथ उद्यान ए.बी. रोड पर स मान के साथ पहुंचाया गया।

समस्त दीक्षार्थीयों ने समाज से एवं सगे-संबंधियों से जैन समाज के शास्त्र के अनुसार क्षमा-याचना मांगी। चल समारोह के साथ समाज के सभी वर्गों के लोग बुजुर्ग, महिला, युवा एवं बच्चे सभी शामिल थे।

ब्रह्मचारी का अर्थ
ओ.पी. भार्गव ने बताया कि जैन समाज के शांति दर्शन के अनुसार ब्रह्म कहते हैं सच्चिदानन्द भगवान आत्मा को उसमें चरण अर्थात रमण करना, आचरण करना, अर्थात निज शांति में स्थिर होने का नाम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचारी लोक में यद्यपि ब्रह्मचारी की व्या या केवल स्त्री त्याग पर से ही की जाती है पर वास्तव में ऐसा नहीं है यहां स्त्री शब्द स पूर्ण भोग सामग्री से है क्योंकि वह लक्ष्मी के नाम से पुकारी जाती है अत: लक्ष्मी में रमणता का नाम व्यभिचार है और लक्ष्मी में त्याग का नाम ब्रह्मचर्य है। 

इसमें दो दृष्टियों से विचार करना चाहिए एक ग्रहण की दृष्टि से दूसरा त्याग की दृष्टि से। ग्रहण की दृष्टि से नि:स्वभाव में रमणीयता अर्थात परनिर्पेक्ष ज्ञान में निज शांति स्वभाव आचरण त्याग की दृष्टि से पर पदार्थ का पर-परिणतिका पर के ज्ञान में रमणता का आचरण त्याग। अत: पूर्ण ब्रह्म के लक्ष्य पर पहुंचने के लिए हीनाधिक रूप से लक्ष्मी का त्याग करने वाला अर्थात त्याग के मार्ग पर चलने वाला ब्रह्मचारी है।
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