
अनिल उत्साही ने अपनी प्रेस रिलीज में बताया कि अभी कुछ दिन पूर्व डीपीसी ने एक यात्री बस को रोककर उसमें से शिक्षको और महिला शिक्षको की सडक़ पर परेड करा दी। एक चलती बस को रोकना और उसमें बैठे यात्रियो में से शिक्षको को बहार सडक पर खडे कर पूछताछ करने की तो डीपीसी की संवैधानिक पवार नही है।
इतना ही नही बस मालिक से विवाद हुआ तो उसे आरएसएस की धमकी दी गई। जब यह मामला मीडिया ने उछाला तो महिला आयोग ने संज्ञान में लिया। और महिला आयोग की अध्यक्ष लता वानखेडे की पूछताछ में डीपीसी ने बार-बार अपने आप को आरएसएस का कार्यकर्ता बताया और अघोषित रूप से अपनी सफाई के शब्दो में राज्य आयोग की अध्यक्ष को धमकाने जैसे थे।
आयोग की अध्यक्ष भी आरएसएस से डर गई और सिर्फ एक प्रेस रिलीज करके चली गई कि डीपीसी को अधिकार नही है बस को रोकने के। कोई कार्रवाई नही की गई। बार-बार डीपीसी अपने आप को आरएसएस का कार्यकर्ता बताते है। इससे पूर्व वे शिक्षको को सिमी जैसे आतंकवादी सगंठन का कार्यकर्ता जैसे शब्दो से निरूपित कर चुके है।
शिवपुरी प्रशासन ने अभी तक डीपीसी शिरोमणि दुबे पर कोई कार्रवाई नही की है। वह किसकी नौकरी करते है मप्र शासन की या आरएसएस की। इस प्रेस रिलीज में उत्साही ने कहा कि सडक पर महिला शिक्षको की परेड करना डीपीसी को संवैधानिक अधिकार मप्र शासन ने तो डीपीसी को नही दिए है। आरएसएस ने दिए हो तो मुझे मालूम नही..............अगर वह आरएसएस की नौकरी कर रहे है तो उनको अपना वेतन मप्र शासन से नही आरएसएस से लेना चाहिए।
अनिल उत्साही ने इस प्रेस रिलीज के माध्यम से कलेक्टर शिवपुरी से मांग की है कि वे पूरे प्रकरण की जांच करावे और दोषी डीपीसी के खिलाफ कार्रवाही कर यह संदेश जिला वासियों को दे की, संविधान से बडा कोई भी नही होता है।