पुष्य पिट गया, अब धरतेरस से भी नहीं रही उम्मीद

शिवपुरी। लगातार 3 वर्षो से सूखे की मार को झेल रही शिवुपरी की दिवाली फीकी होती नजर आ रही है। शहर की सडको ने पेंट के कारोबार को तो झटका दिया है। पुष्य नक्षत्र भी व्यापार की दृष्टि से पिट गया। इससे देखकर लगता है कि इस बार बाजार में धनतेरस पर धन नही बरसेगा। 

धनतेरस से पूर्व जहां बर्तन व्यापारियों में उत्साह की जो लहर देखी जाती थी वह इस वर्ष देखने को नहीं मिल रही है। बर्तन व्यापार से जुड़े व्यापारियों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियायें देते हुए कहा है कि इस बार जो स्थिति है वह पिछले समय में नहीं थी। आज की स्थिति देखते हुए तो लगता है कि पिछले वर्ष जहां 40 लाख रूपए का धनतेरस के दिन व्यापार हुआ था वह महज इस वर्ष 15 से 20 लाख रूपए के बीच सिमट कर रह जाएगा। शहर में धनतेरस के दिन 12 व्यापारी बर्तन की दुकान लगाकर इस व्यवसाय को करते हैं।

बर्तन व्यवसाय से जुड़े बंशीधर बद्री प्रसाद अग्रवाल के धर्मेन्द्र गोयल, पंडित जी बर्तन हाउस के मुकेश वशिष्ठ, गर्ग स्टील के संचालक शैलेन्द्र गर्ग, लल्लीराम लक्ष्मण सिंह, गोपाल स्टील, ज्योति स्टील, बालाजी मेटल, जितेन्द्र मेटल, चौबे मेटल सहित अन्य व्यापारी बर्तन व्यवसाय को वर्षों से संचालित कर रहे हैं, लेकिन इस वर्ष इन व्यापारियों के समक्ष पुष्य नक्षत्र जैसे शुभ मुर्हुत पर भी उनका व्यापार नहीं चला। 

जिससे वह निराश अवश्य है, लेकिन आज भी उन्हें उम्मीद है कि पुष्य नक्षत्र पर जो उम्मीद थी वह पूरी नहीं हो सकी, लेकिन आने वाली धनतेरस उनकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी। धर्मेन्द्र गोयल का कहना है कि पिछले वर्ष धनतेरस के दिन बर्तन व्यवसाय 40 लाख रूपए से अधिक का हुआ था। लेकिन इस वर्ष उन्हें ऐसी भी उम्मीद नहीं है कि व्यापार 40 लाख तक पहुंचेगा।

शैलेन्द्र गोयल कहते हैं कि उनकी दुकान की स्थिति यह है कि पुष्य नक्षत्र पर महज 2500 रूपए की दुकानदारी हुर्ई थी। जबकि पिछले वर्ष इस नक्षत्र में 30 से 35 हजार रूपए का गल्ला उठाया था, जिससे स्थिति यह नजर आ रही है कि धनतेरस भी हमारे लिए कुछ अच्छा लेकर नहीं आर्ई है। 

मुकेश वशिष्ठ मानते हैं कि धनतेरस और दीपावली फीका होने का कारण किसानों की बर्बादी है। शिवपुरी शहर देहात से जुड़ा है। जहां सिर्फ किसान ही व्यापारियों के लिए भगवान है, लेकिन इस बार भगवान ही बर्बादी की कगार पर खड़े हैं तो व्यापारी कैसे खुश रह सकेंगे। 

पहले एक समय था जब नवरात्रि प्रारंभ होते ही उनके व्यापार में अचानक से बढ़ोत्तरी हो जाती थी। वो समय ऐसा था जब दीपावली तक के 20 दिन उन्हें पूरे साल भर के व्यापार का मुनाफा दे जाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से स्थिति यह है कि बाजार सिर्फ दीपावली से दो तीन दिन पूर्र्व ही चलते हैं। जिससे उनका लाभ संकुचित हो जाता है। 
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