शिवपुरी। विकलांगों और पीडि़त मानवता की सेवा में कार्यरत मंगलम संस्था की पवित्रता का इससे बढक़र उदाहरण और क्या होगा कि इसकी सामाजिक धारा में स्नान करने से राजनेता भी वंचित नहीं हुए। लेकिन इसके बाद भी संस्था में कभी राजनीति का प्रवेश नहीं होने पाया।
यहीं नहीं इस संस्था ने राजनैतिज्ञों को संस्कार देने का पुनीत कार्य भी किया। मंगलम से बाहर संस्था के सदस्य राजनेता भले ही अलग-अलग प्लेट फार्म पर कार्य करते रहे, लेकिन मंगलम में उनकी एक जुटता और समर्पण से ही यह संस्था आज इस मजबूत मुकाम पर पहुंची है।
वहीं अन्य स्वैच्छिक संगठनों (एनजीओ) के लिए यह संस्था प्रेरणास्त्रोत है। उक्त मंगलम की विकास गाथा संचालक मंडल की प्रथम बैठक में नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष डॉ. गोविन्द सिंह ने सुनाई। उन्होंने साफ कहा कि मंगलम में पदाधिकारी बनना पदों की ताजपोशी नहीं बल्कि उत्तर दायित्व है और पदाधिकारी आलोचना के शिकार भी बनेंगे। क्योंकि समाज को उनसे बहुत अपेक्षा है।
डॉ. गोविन्द सिंह ने बताया कि यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं संस्था के स्थापना वर्ष 1981 से इससे जुड़ा हुआ हूं। उन्होंने याद करते हुए बताया कि सन् 1981 में शिवपुरी में कलेक्टर डीसी माथुर हुआ करते थे। उनके बड़े भाई कृपानारायण लखनऊ में विकलांगों की सेवा के लिए मंगलम संस्था चलाते थे।
यहीं शिवपुरी मंगलम के निर्माण की पृष्ठ भूमि बनी। उस समय शिवपुरी में डॉ. डीसी चौधरी जैसा संवेदनशील व्यक्तित्व था। जिन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा, क्षमता और समर्पण का इस्तेमाल इस संस्था के विकास में किया। यह भी अच्छी बात है कि डॉ. चौधरी के इस सामाजिक कृत्य के उत्तराधिकारी स्व. भगवानदास लढ़ा, स्व. सांवलदास गुप्ता, गणेशीलाल जैन, राजेन्द्र गंगवाल एडवोकेट और राजेन्द्र मजेजी बने।
ये इतने प्यारे लोग हैं जिनके लिए समाजसेवा हर व्यवसायिक कृत्य से हमेशा ऊपर रही है। अपने धंधों, व्यवसायों, महत्वाकांक्षाओं को उन्होंने मंगलम के गेट के बाहर रखा है और पीडि़त मानवता की सेवा को लक्ष्य बनाया है। डॉ. गोविन्द सिंह ने कहा कि शिवपुरी में मंगलम को यदि छोड़ दिया जाए तो अनेक एनजीओ लेकिन ये संस्थायें जो कहती है वह कभी करती नहीं है, परन्तु मंगलम अपने लक्ष्य से कभी बिमुख नहीं हुई।
मंगलम के केन्द्र में कृत्रिम अंग निर्माण काम शुरू हुआ। उस जमाने में जयपुर फुट की बहुत चर्चा थी। डॉ. सेठी ने जयपुर फुट की कल्पना को साकार रूप दिया था, लेकिन शिवपुरी में मंगलम के कारीगर कैसे इस विधा को सीख पाऐं यह एक बड़ी समस्या थी, लेकिन कोशिशें जारी रहीं। मंगलम के पदाधिकारियों ने विचार किया कि जयपुर फुट डॉ. सेठी तो बनाते नहीं होगे।
उनके निर्देशन में कारीगर काम करते होंगे और फिर खोजबीन शुरू हुई जिसके सार्थक परिणाम निकले और चुग्गा भाई कारीगर ने शिवपुरी मंगलम के कारीगरों और टेक्नीसियनों को जयपुर फुट बनाना सिखाया। डॉ. गोविन्द सिंह ने कहा कि जहां पदों की मारामारी चलती है और दायित्व पूर्ण न कर पाने पर भी पदों से चिपके रहने की मानसिकता रहती है। लेकिन राजेन्द्र गंगवाल एडवोकेट इस मायने में अपवाद रहे।
उनकी व्यवसायिक व्यस्तता इतनी अधिक थी कि उन्होंने स्वयं सचिव का दायित्व छोडऩे का फैसला किया और यह मंगलम का भाग्य था कि उनके स्थान पर राजेन्द्र मजेजी जैसा हीरा मंगलम को मिला। यह शस दुनियादारी से अलग था। क्षमताबान इतना अधिक कि आज चाहता तो राजनीति के शिखर पर होता।
डॉ. लोहिया की विचारधारा से प्रेरित राजेन्द्र मजेजी वह स िसयत है। जिनके चरण वंदन शरद यादव जैसे मझे हुए राजनैतिज्ञ करते हैं। साहित्यक अंदाज में लेकिन जोगी रम गया अपने गांव में और राजेन्द्र मजेजी आज मंगलम की पहचान बन चुके हैं। उन्होंने खुशी जाहिर की कि इस बार मंगलम के चुनाव में अच्छे से अच्छे लोग चुनकर आए हैं। सामाजिक संस्था के लिए चुनाव नुकसान दायक हो सकते हैं, लेकिन चुनाव का यह भी एक अच्छा पक्ष है।
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