
- सन् 1899 से पहले तक शिवपुरी एक जंगली गांव हुआ करता था।
- पहाड़ी पर मौजूद इस घने जंगल के बीच एक शहर की की कल्पना माधौ महाराज ने की।
- 1899 से लगातार 1915 तक यहां युद्धस्तर पर निर्माण कार्य हुए।
- कलेक्ट्रेट और महल जैसी भव्य इमारतें, चमचमातीं सड़कें, सांख्या सागर, जाधौ सागर और चांदपाठा जैसे तीन बड़े जलाशय, रेल लाइन सहित शिवपुरी में वो तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं जो उन दिनों भारत के किसी शहर में नहीं थीं।
- 1915 तक देश के दूसरे शहरों में बैलगाड़ियां चला करतीं थीं, जबकि शिवपुरी में रेलगाड़ी और ट्रामा बस का संचालन होता था।
- 25 हजार की आबादी के लिए 50 सालों तक तमाम सुविधाएं जोड़ दी गईं थीं।
- शिवपुरी को जिला मुख्यालय का दर्जा दिया गया।
- शिवपुरी को ग्वालियर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया।
और यह सबकुछ जिस राजा ने किया, उसी माधौराव सिंधिया को शिवपुरी शहर ने भुला दिया।
कैसे हुई थी माधौ महाराज की मृत्यु
ग्वालियर स्टेट के सबसे कार्यकुशल शासक के रूप में माधौराव सिंधिया को जाना जाता है।
माधौ महाराज ने अपने देश के विकास में फ्रांस सरकार से काफी योगदान लिया था। शायद यह भारत में पहला विदेशी निवेश था।
पहले वर्ल्ड वॉर के बाद माधौ महाराज फ्रांस की राजधानी पेरिस गए थे। उसी दौरान 5 जून 1925 को उनकी मृत्यु वहां हो गई।
रेल के इंजन में हुआ था दाह संस्कार
माधौ महाराज की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार की समस्या सामने आई। फ्रांस में दाह संस्कार की परंपरा नहीं थी औऱ वहां ऐसा करने की मनाही भी थी।
उस समय फ्लाइट की बजाय विदेश लोग समुद्र के रास्ते शिप से जाते थे और सफर में हफ्तों का समय लगता था। ऐसे में शव को इंडिया लाना मुश्किल काम था।
इसलिए तय किया गया कि ट्रेन के स्टीम इंजन में माधौ महाराज का दाह संस्कार किया जाए और अवशेष ग्वालियर लाए जाएं।
इसके लिए पेरिस के एक कब्रिस्तान Père Lachaise Cemetery में एक स्टीम इंजन में माधौ महाराज का अंतिम संस्कार किया गया और अवशेष ग्वालियर लाए गए।