नियम,कायदे-कानून और डिमाडं में फिर फंसी जलावर्धन योजना

शिवपुरी। शिवपुरी के प्यासे कंठो के लिए इस चिलचालाती गर्मी में फिर एक और झटका देने वाली खबर आ रही है। बताया जा रहा है कि शिवपुरी की लाईफ लाईन समझी जाने वाली जलावर्धन योजना फिर फस गई है। 

लंबी जद्दोजहद के बाद सोमवार को योजना पर काम कर रही अहमदाबाद की दोशियान वाटर कंपनी के एमडी रक्षित दोशी शिवपुरी आए। उनके साथ नगरपालिका सीएमओ रणवीर कुमार व अन्य अफसरों ने शर्तें तय कीं और अनुबंध की तैयारी कर ली। 

लेकिन जब अफ सरों ने नगरीय निकाय विभाग के ईएनसी प्रभाकांत कटारे को फोन किया तो उन्होंने अनुबंध कराने से ही इनकार कर दिया। अंत में दोशी बैरंग लौट गए। 

दोशियान के मालिक श्री दोशी के साथ अफसरों की बैठक अपराह्न 3 बजे नगरपालिका द तर में शुरू हुई। जो कि शाम 8 बजे तक चली। सूत्रों का कहना है कि दोशी ने जलावर्धन योजना के शेष को पूरा करने के लिए जरूरी शर्त 3 करोड की बैंक गारंटी भी पेश की और अनुबंध के लिए रजामंदी दी। 

लेकिन जब नपा अफसरों ने ईएनसी नगरीय निकाय प्रभाकांत कटारे से पूछा तो उन्होंने ये कहते हुए दोशियान के साथ अनुबंध करने से मना कर दिया कि बैंक गारंटी की मंजूरी पहले मुझसे कराई जाए। कुल मिलाकर अभी यह स्पष्ट नही हुआ है कि आगे इस योजना पर काम दोशियान कंपनी करेंगी या कोई दुसरी कंपनी से नपा आगे टेंडर कराकर कराऐंगी। 

इन मुद्दो पर नही बनी सहमति
बताया गया है कि इस योजना से घरो तक की टोटियों में पहुचाने के लिए अभी 3 बाधाओ को नपा और कंपनी को पार करना होगा। 

बाधा नं.1
नेशनल पार्क एरिया में पाईप लाइन डालने की परमीशन सुप्रीम कोर्ट से न मिलने पर उस एरिया में पिलर पर स्टील पाईन डाले जाएगें। इन स्टील के पाईपो को डालने में अतिरिक्त रााशि खर्च होगी। और रााशि की डिमांड कंपनी कर रही है। अब आगे इस डिंमाड के चक्कर में काम रूक जाऐंगा। 

बाधा नं. 2 
इस प्रोजेक्ट को जब  बनाया गया था तब शहर के बसाहट के हिसाब से शहर में 161 किमी डिस्ट्रीब्यूशन लाईन घरो तक पानी पहुचाने के लिए यह पाईप लाईन बिछाने थी लेकिन आज शहर की बसाहट ज्यादा हो गई है इस हिसाब से 100 किमी की लाईन और बिछानी होगी। कंपनी इस 100 किमी लाईन को बिछाने के अतिरिक्त पैसे की डिमांड कर रही है। 

बाधा नं. 3 
सतनबाड़ा स्थित फिल्टर प्लांट से शिवपुरी शहर तक डाली जाने वाली मु य लाईन 17 किमी में से लगभग 7 किमी की दूरी से एनएचएआई व नेशनल पार्क की परमिशन जरूरी है। नेशनल पार्क में तो पिलर पर लाईन आ सकती है। 

लेकिन इस प्रोजेक्ट जब सन 2005 में बनाया गया था और इस पर काम शुरू किया गया था तब हाईबे एनएच के अंडर में था। तबं कंपनी ने 10 लाख रूपए क्षतिपूर्ति राशि भी जमा करा दी। इसके बाद काम रूक गया। लेकिन अब हाईबे एनएचएआई में चला गया,अब फिर सडक खोदने के लिए परमिशन एचएचएआई से परमिशन लेनी होगीं।