उत्तम कार्यों में दिया गया दान बट वृक्ष के बीज के समान: अभय सागर

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शिवपुरी। उत्तम कार्यों में दिया गया दान कभी निश्फल नहीं जाता। वह दान उस बट वृक्ष के बीज के समान होता है जो समय आने पर एक विशाल वृक्ष का रूप ले लेता है, उसी प्रकार आपका किया गया थोड़ा सा दान लोक और परलोक में अनंतगुना फ ल को देने वाला होता है।

उक्त उद्गार स्थानीय महावीर जिनालय में उत्तम मार्दव दसलक्षण धर्म के अवसर पर वहाँ चार्तुमास कर रहे पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य पूज्य मुनि श्री अभय सागर जी महाराज, पूज्य मुनिश्री प्रभातसागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज ने दिये।

पूज्य मुनि श्री प्रभात सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि- त्याग का हमारे जीवन में बड़ा महत्व होता है। मुनि महाराज अपना एक घर-परिवार का त्याग करते हैं तो सारा संसार उनका घर हो जाता है।

एक दान होता है और एक त्याग होता है। त्याग जब होता है तो सर्वस्व का ही होता है, और दान किंचित या कुछ भाग का ही होता है। इसके अलावा बुरी बस्त्ुाओं का सर्वथा त्याग कराया जाता है जबकि दान उत्तमोत्तम बस्तुओं का ही किया जाता है।

दान जब किया जाये तो इस बात का याल रखना चाहिये कि योग्य स्थान पर अथवा योग्य पात्र को ही दान दिया जाये। गलत स्थानों पर अथवा याति, लाभ, पूजा के उद्देश्य से दिया गया आपका दान किसी कार्य का नहीं है।

इसी प्रकार पहले हमारे अंदर जो बुराइयाँ है, सप्त व्यसन आदि का त्याग किया जाना चाहिये। और दान या त्याग की गई बस्तु का कभी उपयोग नहीं करना चाहिये, नही ंतो निर्माल्य उपयोग करने का दोष लगता है।

प्रारंभ में पूज्य मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज ने प्रवचनों में कहा कि- आचार्य श्री कहते हैं साधू संगति की यही तो सार्थकता है, कि साधू संगति करने वाला तुरंत संत संयत बने यह आवश्यक नहीं, परंतु संतोषी अवश्य बनता है।

जैसे-जैसे हम धर्म करते जाते हैं संतोष हमारे जीवन में आता चला जाता है। आज उत्तम त्याग धर्म के अवसर पर कुछ दान करें अथवा न करें परंतु अपने अंदर की बुराइयों का त्याग अवश्य ही करें।

जो व्यक्ति मद्य, माँस, मधु, परस्त्री सेवन, जुआँ खेलना, षिकार करना, वेष्या सेवन करना और चारी आदि सप्त व्यसन सेवन करता है वह नियम से मरकर नरक ही जात है इसी प्रकार मायाचारी व्यक्ति को तिर्यन्च योनि में जन्म लेना पड़ता है।

अत: इन सबका त्याग कर हम श्रावक के छ: आवश्यकों को धारण करें और संतोष को अपने जीवन में लाये ंतो अवष्य ही हमारा किया गया पुण्य आत्मा के उत्थान में कारण बनेगा। और भले कार्यों के लिये दिया गया आपका थोड़ा भी दान भविष्य में विषाल बट वृक्ष का रूप लेकर आपको सातिशय पुण्य को बड़ाने में कारण बनेगा।
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