शुभारम् नही सीधे समापन: ऐसा तो नही था हमारा गणेश उत्सव

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ललित मुदगल @पब्लिक नोटिस/शिवपुरी। वैसे गणेश चतुर्थी का त्यौहार पूरे देश में ही धूमधाम से मनाया जाता है परन्तु शिवपुरी के गणेश उत्सव ने भी अपनी एक पहचान बनाई है लेकिन अफसोस दस दिन तक चलने वाला यह त्यौहार बस एक दिन में सिमट गया है।

विदित हो कि शिवपुरी मेें गणेश उत्सव शुरू करने के परपंरा आजादी से पूर्व सिंधिया राजवंश की महारानी जीजाबाई ने शुरू की थी और शहर ने इस परपंरा को आज तक जीवित रखा है। इसे शिवपुरी का गणेश उत्सव कहा जाता था, लेकिन एक समिति ने इसका नाम बदलकर श्री गणेश सांस्कृतिक समारोह कर दिया।

शिवपुरी में गणेश उत्सव पूरे 10 दिन तक चलता था। अचल झांकियों से इस उत्सव का शुभांरम माना जाता था और अत: में अन्नत चौदहस की रात मंदिरो और घरो में विराजे श्रीगजानंन भगवान को विसर्जित कर बड़े ही धूमधाम से कर इस उत्सव का समापन किया जाता था।

समय के साथ 'अंनत चौदहस' के रोज होने वाले समापन समारोह ने तो भव्य रूप ले लिया गणेश जी के विमान के साथ-साथ चल झांकियो का चलन भी इस दिन शुरू हो गया जो आज भी निर्वाध रूप से जारी है परन्तु वर्तमान की बात कि जाए तो यह कह सकते है इस उत्सव का शुंभारभ नही होता बल्कि सीधे समापन कर दिया जाता है।

शहर में 10 दिन तक लगने वाली अंचल झांकिया इस उत्सव की जान होती थीं। इन झांकियो को देखने शहर की नही गावों से भी प्रतिदिन हजारों लोग आते थे। आज से दस वर्ष पूर्व शहर में अनेको मंदिरो की समितियों द्वारा अचल झांकिया लगाई जाती थी।

पीछे देखा जाए तो अंनत चौहद्स की रात जितनी भीड-भाड और आंनद और उत्सव का महौल रहता था। यह महौल अचल झाकियों के लगने से पूरे 10 दिन तक शहर में रहता था।

वैसे तो गणेश सास्कृतिक समारोह समिति शिवपुरी इस इस उत्सव में लगने वाली चल अचल और सुंदर गणेश जी प्रतिमा, आर्कषक विमान की प्रतोयगिता का आयोजन करती है। और यह समिति सन 1985 से सक्रिय है।

यह समिति का अघोषित रूप से दावा है कि इस आयोजन को भव्य और आर्कषक बनाने में समिति का योगदान है। समिति भी इस आयोजन के जरिए साल में एक बार रिचार्ज हो जाती है।

परन्तु समिति से यह सवाल अभी भी खडा है शहर में लगने वाली अचल झांकियो जो इस त्यौहार की जान होती थी वे गायब क्यो हो गई ? क्या समिति ने इन अचल झांकियो को लगाने वाली समितियो से कभी संपर्क किया।

समिति को यह बता दिया जाना उचित होगा कि इस समिति के परिदृश्य में आने से पूर्व भी गणेश उत्सव पर शहर में झांकियो का चलन था। इन झांकियो से यह समिति जिंदा है ना कि समिति से झांकिया।

क्या कारण रहे कि शहर में लगने वाली अंचल झाकिया बंद हो गई और समिति सोती रही। क्या समिति का यह नैतिक दायित्व नही बनाता कि वह इन अचल झांकियो को लगाने वाली समितियों से मिले और पता करे कि आखिर 10 दिन तक चलने वाला यह उत्सव 3 दिन के आयोजन में सिमटकर क्यों रह गया।

15 साल पहले का गणेश उत्सव और आजकल होने वाले सांस्कृतिक समारोह की तुलना करें तो लगता है कि 10 दिन का उत्सव 3 दिन के समारोह में सिमटकर रह गया। समिति ने आयोजन का विस्तार किया या अतिक्रमण।
सवाल सीधा खड़ा है। 
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