शिवपुरी। पर्यूषण पर्व में हम भगवान महावीर, भगवान पाश्र्वनाथ एवं भगवान नेमीनाथ का चरित्र दर्शन पढ़ते हैं इन सभी चरित्र दर्शनों में क्षमा का विशेष महत्व है। भगवान महावीर ने अपने सभी भवों में किसी न किसी को क्षमादान दिया इसी प्रकार भगवान पाश्र्वनाथ ने और नेमीनाथ ने भी क्षमा के महत्व को सर्वोपरि रखकर तपत्या की और वे तीर्थंकर बने, उक्त व्या यान आज शुभंकराश्रीजी म.सा. ने पूर्यषण पर्व के सातवें दिन दिये। उन्होंने कहा कि कल आठवे दिन पर्यूषण पर्व का अंतिम दिन है और इसे हम क्षमावाणी पर्व के रूप में मनाते हैं।
क्षमा वीरस्य भूषणम् की व्या या करते हुए नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकराश्रीजी म.सा. ने कहा कि जब भगवान नेमीनाथ और राजुल का विवाह की तैयारियां चल रहीं थीं बारात लेकर जब भगवान नेमीनाथ राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से विवाह करने पहुंचे तो वहां उन्होंने उन पशुओं को देखा जो कि बारातियों के भोजन हेतु मारे जाने वाले थे। यह देखकर उनका हृदय करुणा से व्याकुल हो उठा और उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया।
तभी वे विवाह का विचार छोड़कर तपस्या को चले गए थे। कहा जाता है कि 700 साल तक साधक जीवन जीने के बाद आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को भगवान श्री नेमिनाथ जी ने एक हजार साधुओं के साथ गिरनार पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किया था। नेमीनाथ के जाने के बाद राजुल का भी मन बदल गया और उन्होंने विवाह से इनकार करते हुए दीक्षा को अंगीकार किया। ऐसे ही कई दृष्टांत आज साध्वी जी ने प्रवचनों में सुनाये जिनमें क्षमा को विशेष महत्व दिया गया।
संवत्सरी पर्व पर एक-दूसरे से मांगें क्षमा
साध्वी शुभंकराश्रीजी म.सा. ने आज के प्रवचनों के साथ उन्होंने संवत्सरी पर्व का सही अर्थ क्षमा बताया। साध्वी जी ने कहा कि हम आपस में क्षमा तो मांग लेते हैं, परंतु जिनसे हमारी मित्रता होती है उन्हीं से मांगते हैं। आज के दिन हमें उन सभी से क्षमा मांगनी है जिनके साथ हमारे बोलचाल बंद हैं। गलतियां किसी से भी हुई यदि हम पहले आगे बढ़कर क्षमा मांगते हैं तो इस संवत्सरी पर्व की सार्थकता सिद्ध होगी। आज कई घरों में भाइयों का आपस में बोलचाल नहीं है ऐसा नहीं होना चाहिए। चूल्हे कितने ही हों परंतु भाई एक दूसरे से प्रेम संबंध बनाये रखें यही इस पर्व की महत्वतता है।