शिवपुरी। महावीर जिनालय में आयोजित विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध संत अभयसागर जी महाराज ने बताया कि संथारा या संलेखना जीवन को सार्थक बनाने का एक माध्यम है। इस पद्वति को अपनाकर साधक या तो उसी जन्म में या अगले आठ-दस जन्म में जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। धर्मसभा में साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने इस धारणा को मिथ्या ठहराया कि संथारा आत्महत्या के सदृश्य है।
उन्होंने कहा कि आत्महत्या मजबूरी है जबकि संथारा साधक की मजबूती का प्रतीक है। संत पूज्य सागर जी ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि जैन धर्म में तो आत्महत्या का विचार करने वालों तक को सजा का प्रावधान है और ऐसे व्यक्ति को प्रायश्चित करना होता है।
संत प्रभात सागर जी ने साफ-साफ कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय का संथारा के विरोध में फैसला इसलिए आया, क्योंकि हम अपना पक्ष सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाए।
धर्मसभा में जैन संतों और साध्वियों ने उच्च न्यायालय के फैसले में भी सकारात्मकता के दर्शन किए। साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने यहां तक कहा कि संथारा पर नकारात्मक फैसले के बाद भी यह हमारे लिए आनंद का अवसर है, क्योंकि इसी बहाने ही सही दिग बर और श्वेता बर समाज के लोग अपने-अपने मतभेद भूलकर एकजुट हो गए हैं।
उन्होंने उदाहरण देेते हुए कहा कि जिस तरह से सूर्य के प्रकाश की किरणों को एक गिलास में केन्द्रित कर लिया जाता और फिर उसकी ऊर्जा से कागज में आग लग जाती है उसी तरह से जैन समाज की एकजुटता से राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले में आग लग जाएगी। साध्वी जी ने कहा कि संथारा को आत्महत्या कैसे कहा जा सकता है।
हम तो जब भी प्रभु से प्रार्थना करते हैं तो उनसे यही चाहते हैं कि हमें समाधि मरण प्राप्त हो। अनाहारी की कामना करते हैं। संथारा के माध्यम से साधक अपने आपको परमात्मा में समर्पित करता है। संथारा न केवल हमारी आत्म साधना की पद्वति है, बल्कि हमारी मौलिकता भी है।
संत पूज्य सागर जी महाराज ने कहा कि जैन संस्कृति में तो साधक जब दीक्षा लेता है तो कषाय संलेखना की प्रतिज्ञा करता है। कषाय संलेखना में काम, क्रोध, मोह, लोभ, राग, द्वेष, कलह आदि कषायों का नाश किया जाता है और इनका नाश होने के बाद जीवन के अंतिम चरण में काया संलेखना की जाती है ताकि मौत का साक्षात्कार कर आत्म कल्याण कर सकें।
संत अभय सागर जी ने कहा कि जीवन के साथ-साथ मरण निश्चित है और इस मरण को ठीक ढंग से उपयोग कर शाश्वत जीवन प्राप्त करने का नाम संथारा या संलेखना है।
जीवन मरण के बंधनों से मुक्ति के लिए संथारा किया जाता है। प्रारंभ में श्वेता बर जैन समाज के अध्यक्ष दशरथमल सांखला, कार्यवाहक अध्यक्ष तेजमल सांखला, प्रदीप काष्ठया, विजय पारख, अशोक कोचेटा, अभय कोचेटा आदि ने जैन संतों को श्रीफल भेंट किया वहीं साध्वी जी के चरणों में नमन् कर उनसे आशीर्वाद लिया। धर्मसभा का संचालन संजीव बांझल ने किया।
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