पढ़िए सिकरवार सर के 4 संकल्प: जिनका जीवन ग्रंथ बन गया

शिवपुरी। आज प्रख्यात शिक्षाविद़ स्व.श्री सीपी सिकरवार सर का जन्मदिन है, सर ने अपना पूरा शिक्षा दान को समर्पित कर दिया था।

अपनी पुस्तक मेरी कहानी मे उल्लेख किया है कि मैने अपनी नौकरी पीजी कॉलेज में ज्वाईन की उस दिन शाम को मैने संकल्प लिया कि...

पहला संकल्प
मैं कर्तव्य निष्ठा के क्षेत्र में प्रोफेसर के रूप में इतिहास बनाऊगां। में अपनी शासकीय सेवा में एक भी दिन एक भी पीरियड नहीं छोडूगां। कोई भी स्थिति हो मै हमेशा अपनी कक्षा में पढ़ाने के लिए उपस्थित रहूॅगां।

दूसरा संकल्प
मै वेतन के अलावा कोई धन नहीं लूंगा अर्थात मैं कभी ट्यूशन नहीं करूंगा। सभी विद्यार्थियो को नि:शुल्क मार्ग दर्शन दूंगा।

तीसरा संकल्प
मै अधिकतम विद्यार्थियो एंव इंसानो के अधिकतम हित के लिये कार्य करूगां। मैं गरीब तथा जरूरत मंद विद्यार्थियों एंव इंसानो की अधिक से अधिक सहयता करूंगा।

चौथा संकल्प
मै अच्छाई के माध्यम से बुराई पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करूंगा। मैं किसी भी विद्यार्थी और किसी भी इंसान से अपशब्द नहीं कहूगां।

सर ने अपना पूरा जीवन शिक्षा दान में ही लगा दिया, उन्होने अपने जीवन में केवल 2 जोडी कपडे ही रखे और पूरा जीवन एक साईकिल पर ही गुजार दिया। उन्होने अपना पूरे जीवन की अपनी सैलरी गरीब बच्चों ने ऊपर उनकी फीस और पाठ्य सामग्री पर ही खर्च कर दी।

भाई की शादी में नहीं गए
सर के बारे में कहा जाता है कि उन्होने अपना संपूर्ण जीवन अपने आदर्शो और शिक्षा दान और मानव हितों पर ही खर्च कर दिया। शिक्षा दान और मानव हित में सर का एक उदाहरण अनुकरणीय है सर के छोटे भाई की शादी तय हुई और सर के पिताजी ने उन्हे बताया कि इस दिन को शादी है।

सर ने अपने पिताजी से कहा में केवल रविवार को ही शादी में आ सकता हूं बाकी किसी भी दिन नही। रविवार को शादी का मुहुर्त बना नही और सर शादी में गए नही।  सर ने प्रतिज्ञा कि थी कि मैं किसी भी स्थिती में हमेशा अपनी कक्षा में पढ़ाने के लिए उपस्थित रहूॅगां।

वे अपनी इस प्रतिज्ञा पर अटल रहे और वे अपनी भाई की शादी नही गए। सर ने अपना पूरा जीवन ऐसे जिया कि वह ग्रंथ बन गया। सर के छात्रों के लिए शिक्षा से हटकर विचार किसी भी ग्रंथ से कम नही थे।