शिवपुरी। जयपुर उच्च न्यायालय द्वारा जैन धर्म की धार्मिक प्रथा संथारे पर रोक लगाने और उसे आत्महत्या निरूपित करने के विरोध में जैन समाज 24 अगस्त को हड़ताल पर रहेगी। उस दिन सारे भारत की तरह शिवपुरी में भी जैन बंधु कोई काम नहीं करेंगे।
दुकानें और प्रतिष्ठान उनके बंद रहेंगे। नौकरी पेशा जैन बंधु छुट्टी लेकर बंद को समर्थन करेंगे यहां तक कि स्कूलों में पढऩे वाले विद्यार्थी भी अवकाश लेकर बंद में शामिल होंगे। शिवपुरी में बंद का खासा असर पडऩे की संभावना है। शहर की अनेक संस्थाओं ने जैन समाज के बंद को समर्थन दिया है।
इससे प्रतीत होता है कि संभव है कि 24 अगस्त को पूरा शिवपुरी बंद रहेगा। बंद को लेकर दिग बर, श्वेता बर, मंदिरवासी, स्थानकवासी, तेरहपंथी सहित समूचा जैन समाज एकजुट है और शिवपुरी में चातुर्मास कर रहे जैन साधु और साध्वी भी बंद को असरकारक बनाने में प्रयास कर रहे हैं।
शिवपुरी में दिग बर संत अभय सागर जी महाराज आदि ठाणा तीन चातुर्मास कर रहे हैं वहीं श्वेता बर समाज में साध्वी शुभंकरश्रीजी, साध्वी धर्मोदया श्रीजी और साध्वी दयोदयाश्रीजी का चातुर्मास चल रहा है।
संथारे के खिलाफ में उपरोक्त जैन साधु व साध्वी स्पष्ट रूप से सामने आये हैं। 24 अगस्त को संथारे के समर्थन में सफल बंद कराने के लिए पूरा समाज एकजुट हो गया है।
संथारे के समर्थन में शिवपुरी बंद को लायंस क्लब शिवपुरी सेंट्रल, लायंस क्लब साउथ, रोटरी क्लब, महावीर इंटरनेशनल, जैन मिलन, पुलक चेतना मंच, वात्सल्य समूह, रोटरी राइजर, भारत विकास परिषद, चै बर ऑफ कॉमर्स, रेडीमेड हौजरी संघ, कपड़ा व्यापार संघ, सर्राफा एसोसिएशन, दलाल एसोसिएशन, बैंक एसोसिएशन, अग्रवाल समाज, खण्डेलवाल समाज, प्राइवेट मेडीकल प्रेक्टिसनर एसोसिएशन, आर्य समाज, पेट्रोल पंप एसोसिएशन सहित अनेक संस्थाओं ने समर्थन दिया है।
जैन संत और साध्वियों के अनुसार आत्महत्या नहीं है संथारा
शिवपुरी में चातुर्मास कर रहे जैन संत अभय सागर जी और जैन साध्वी शुभंकराश्रीजी आदि के अनुसार संथारा आत्महत्या नहीं है, बल्कि यह जैन धर्म की आत्मकल्याण की एक उत्कृष्ट विधि है जिसमें पूरे मनोयोग से मन, चित्त और आत्मा को एकाग्र कर उस स्थिति में संसार को पूर्ण होशहवास के साथ अलविदा किया जाता है जब शरीर मानवीय कार्य करने में असशक्त होता है।
उनके अनुसार इसलिए इसे आत्महत्या कैसे कहा जा सकता है। आत्महत्या तो दुख, तनाव, विषाद और अवसाद में की जाती है। संथारा करने वाला न जीवन और न ही मौत की आकांक्षा से ग्रस्त रहता है, लेकिन आत्महत्या करने वाला सिर्फ और सिर्फ मौत की आकांक्षा के वशीभूत होकर कदम उठाता है।
ऐसी स्थिति में संथारे को आत्महत्या के समकक्ष खड़ा कर देना नितांत अवैज्ञानिक और जैन सिद्धांतों के प्रति अज्ञानता का द्योतक है।
