शिवपुरी। वर्षों से सिंध नदी के पानी की मांग कर रही जनता का प्रतिनिधित्व भले ही पब्लिक पार्लियामेंट ने किया और उसे अंजाम पर भी पहुंचाया लेकिन उन्हें उन लोगों का भी भरपूर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग और समर्थन मिला जो जयविलास पैलेस और रानी महल की ईंट से ईंट बजाने की हसरत पाले हुए थे।
उनके लिए सिंध नदी के पानी से अधिक सिंधिया घराने का पराभव था। इसलिए कल जब मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में छह माह में सिंध नदी का पानी शिवपुरी लाने की घोषणा की तो जनता ने भले ही इसका स्वागत किया लेकिन उस तबके में निराशा छाई है जो महल को नेस्तनाबूत करने का सपना पाले हुए थे।
खासबात यह है कि इस सेना में कांग्रेसी थे वहीं भाजपाई भी। इसके अतिरिक्त महल को लोकतंत्र के लिए घातक मानने वाले नागरिकों का एक बड़ा वर्ग भी शामिल थे। इसीलिए मु यमंत्री की घोषणा पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। कल यह भी प्रचारित किया गया कि बैठक में दोशियान कंपनी के मालिक नहीं आये और सिंध नदी का पानी नहीं आना, नहीं आना, और नहीं आना।
बाद में जब स्पष्ट हो गया कि बैठक में दोशियान कंपनी के संचालक रक्षित दोशी आये थे तो फिर यह शिगूफा छोड़ा गया कि दोशियान कंपनी ब्लैकलिस्टेड है वह कभी भी काम छोड़कर जा सकती है। इसी अफवाह के कारण पब्लिक पार्लियामेंट के सदस्यगण भी हिचके हुए हैं कहीं फिर से जनता के साथ धोखा न हो जाये।
जितनी पुरानी सिंध नदी के पानी की मांग है उससे भी कहीं अधिक वर्षों से महल को निशाने पर लिये जाने की राजनीति चलती रही है। क्षेत्र की राजनीति में सिंधिया घराने की पकड़ होने के कारण कांग्रेस और भाजपा में एक बड़ा वर्ग हमेशा उन्हें हासिए पर लाने का प्रयास करता रहा है।
स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया जब जीवित थीं तब उन्हें राजनीति में महल विरोधियों की चुनौती मिलती रहती थी। सन 89 के चुनाव में तो सारे महल विरोधी सक्रिय हो गये थे और उन्होंने शिवपुरी विधानसभा चुनाव में स्व. विनोद गर्ग टोडू को टिकिट दिलवा दिया था।
लेकिन राजमाता ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बाद में सुशील बहादुर अष्ठाना को भाजपा का प्रत्याशी घोषित करवा दिया था इसके बाद श्री अष्ठाना को पराजित करने में महल विरोधी सक्रिय हो गये थे लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई इससे महल विरोधियों की मुहिम असफल हो गई।
स्व. माधवराव सिंधिया के कांग्रेस राजनीति में आने के बाद उनसे पूर्व के कांग्रेस के कार्यकर्ता अपना जनाधार खो चुके थे जिनमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदि भी शामिल थे। सिंधिया घराने को सामंतवादी कहकर निशाने पर उस समय भी लिया जाता था और आज भी लिया जाता है लेकिन महल का कुछ नहीं बिगड़ता था इसका कारण यह था कि उनकी जनता पर मजबूत पकड़ थी।
सवाल यह है कि आखिर यह पकड़ क्यों थी? उनके अतिरिक्त अन्य जमीनी नेतृत्व इलाके में विकसित क्यों नहीं हो पाया? इसका जबाव शायद यह है कि दो कारणों से महल को पसंद किया जाता रहा है। एक तो उन पर भ्रष्टाचार की कोई छाप नहीं है और दूसरे उनके नेतृत्व में गुण्डागर्दी और असामाजिकता पनपने की कोई आशंका नहीं है। वह कंकर को भी शंकर बनाने में उन्हें महारथ हासिल है।
जहां तक उनके विरोध के कारणों का सवाल है तो कहा जाता है कि महल विकास पर ध्यान नहीं देता और आजादी के 58 साल बाद भी शिवपुरी उन्नति के पद पर नहीं बल्कि अवनति के पथ पर अग्रसर है।
बेरोजगारी यहां की प्रमुख समस्या है। कोई उद्योग धंधा नहीं है तथा शिवपुरी का प्राकृतिक स्वरूप भी विकृत हुआ है। इसके साथ ही वर्तमान में जयविलास पैलेस और रानी महल के बीच दूरियां बढऩे से भी महल विरोधी सशक्त और सक्रिय हुए हैं। पानी की समस्या को लेकर जब पूरा शहर उठ खड़ा हुआ।
शिवपुरी के जनप्रतिनिधियों खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया के विरूद्ध माहौल खराब हुआ तो महल विरोधियों ने इस मौके को भुनाना उचित समझा और जलसत्याग्रह को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष तरीके से उन्होंने समर्थन देना शुरू कर दिया जिससे जल आंदोलन अधिक सशक्त रूप में उभरकर सामने आया।