धूमधाम से हुआ जैन साध्वीगण का चातुर्मास प्रवेश

शिवपुरी। छत्तीसगढ़ शिरोमणी श्री मनोहर श्रीजी मसा की सुशिष्या पूज्य शुभंकरा श्रीजी, धर्मोदया श्रीजी एवं सिद्धोदया जी मसा का मंगल चातुर्मास प्रवेश आज धूमधाम से संपन्न हुआ। मंगल प्रवेश जुलूस में श्वेता बर जैन समाज के सभी स्त्री, पुरूष एवं बच्चों ने हिस्सा लिया।

जुलूस मुकेश भाण्डावत के निवास से शुरू होकर कोतवाली, सदर बाजार, कोर्ट रोड होते हुए मंदिर पहुंचा जहां धर्मसभा में परिवर्तित हुआ। जुलूस में बालिका मण्डल द्वारा गरवां डांडिया नृत्य किया गया एवं महिला मण्डल द्वारा कलश यात्रा निकाली गई।

श्वेता बर जैन समाज की साध्वियों के इस प्रवेश जुलूस को भव्य स्वरूप प्रदान किया गया जिसमें बैंड बाजों और ढोल पताशों में समाज के युवाओं ने नृत्य किया। बाल मण्डल की बालिकाओं द्वारा स्थान-स्थान पर गरवा नृत्य किया।

जुलूस की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि महिलाओं ने पीली एवं लाल साड़ी, पुरुषों ने सफेद कपड़े पहन कर एकता का परिचय दिया। जुलूस में रथ पर भगवान पाश्र्वनाथ जो कि साध्वी मण्डल अपने साथ लाये थे और जिसे नमोकारी चमत्कारी मूर्ति बताते हैं, को तेजमल सांखला के परिजनों द्वारा बोली लेकर मंदिर तक पहुंचाया।

पंक्तिबद्ध सिर पर कलश लेकर चल रही महिलाओं से जुलूस की छठा देखते ही बनती थी। प्रवेश जुलूस कोतवाली, सदर बाजार, कोर्ट रोड होते हुए जैन मंदिर पहुंचा जहां एक धर्मसभा में परिवर्तित हुआ। प्रवेश के लिये पधारी साध्वियों का स्वागत उद्बोधन सचिव धर्मेन्द्र गूगलिया द्वारा किया गया।

तत्पश्चात लब्धी सांखला, दिपिशा सकलेचा, मुस्कान सांखला, तुलसी, प्रेरणा भंसाली द्वारा मंगला चरण स्तूती पर नृत्य किया। मोना कोचेटा, सलोनी कोचेटा, सोनम भाण्डावत, अल्पा सांखला, अंजु जैन द्वारा स्वागत गीत गाया गया। कार्यक्रम का संचालन विजय पारिख ने किया।

बाहर से पधारे अतिथियों का हुआ स मान
इस मंगल प्रवेश के अवसर पर ग्वालियर, आगरा, जयपुर, दुर्ग और कई दूर दराज के स्थानों से साध्वी जी के भक्तों ने हिस्सा लिया। इन पधारे अतिथियों का स मान शॉल श्रीफल एवं माला द्वारा अध्यक्ष दशरथमल सांखला, कार्यकारिणी अध्यक्ष तेजमल सांखला एवं योगेश भंसाली द्वारा किया गया।

कोचेटा परिवार ने ओढ़ाई कांवली
छत्तीसगढ़ शिरोमणी महशरा पद विभूषित श्री मनोहर श्रीजी मसा की परम शिष्यायें पूज्याश्री शुंभकरा श्रीजी, पूज्य श्री धर्मोदया श्रीजी एवं पूज्य श्री सिद्धोदया श्रीजी को प्रवेश के बाद प्रथम कांवली बैैराने का लाभ बोली लेकर शिखरचंद, अरुण, अभय कोचेटा द्वारा लिया गया। जिन्होंने सपरिवार साध्विगणों को कांवली बैराई।