शिवपुरी। ये ईमानदारी की राह पर चलने वालों के रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी है। एक शिक्षक को 21 साल तक केवल इसलिए पेंशन नहीं मिली, क्योंकि उसने विभाग में चलने वाली रिश्वत की परंपरा का पालन नहीं किया। उसने तमाम शिकायतें कीं, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। मप्र के 'गंगा की तरह पवित्र' मुख्यमंत्री ने भी नहीं। वो बिना पेंशन के ही मर गया।
अब मानवाधिकार आयोग ने मामला संज्ञान में लिया है, लेकिन सवाल यह है कि ऐसे संज्ञान का क्या, जबकि इंसान की जिंदगी तबाह हो गई। क्या है कोई ऐसा कानून जो मृतक को पूरा न्याय दिला पाएगा। हो सकता है आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो जाए, लेकिन क्या इसे पूरा न्याय कहेंगे। हकीकत यह है कि उसने ईमानदार होने की सजा जीवन भर भोगी। उसकी मौत का कारण भी उसकी ईमानदारी ही रही। अब किसी भी जांच और किसी भी सजा का कोई मोल नहीं है। न्याय तब होता जब उस समय रहते प्राप्त हो जाता।
जानकारी के अनुसार खानियाधाना के शिक्षक परशुराम शर्मा ने खनियाधाना के मुहारी संकुल अंतर्गत माध्यमिक विद्यायल अछरौनी में पदस्थ रहते सन 1994 में रिटायर्ड हुए थे। शिक्षक की नौकरी करते हुए इस शिक्षक ने शिक्षक की परिभाषा जीवन में उतारते हुए अपनी पेंशन प्रकरण बनवाने के लिए रिश्वत नही दी।
और उसके परिणाम स्वरूप शासकीय कर्मचारियों ने पूरे 21 साल तक चक्कर लगवाने के बाद भी उसका प्रकरण पेंशन नही बनाया गया। अपना पूरा जीवन विभाग को देने के बाद भी अपने हक की पेंशन के लगातार लेने के लिए 21 साल तक आस लगाई और उसकी इस आस में सांसे चली गई।
शिक्षक की आस की सांस जाने तक क संघर्ष को मीडिया ने उठाया तो यह मामला मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान में लिया है और कलेक्टर को पत्र लिख इस पूरे मामले की जानकारी को तलब किया है व आयोग एक टीम उसके निवास खनियाधाना भी जाऐगी।
बताया जा रहा है कि मानव अधिकार आयोग की टीम ने मृतक शिक्षक के पुत्र व मृतक शिक्षक की पत्नि को जांच के दौरान उपस्थित रखने के निर्देश जिला प्रशासन को दिए है। शिक्षा विभाग के डीईओ परमजीत सिंह गिल ने भी इस मामले का गंभीरता से लेते हुए अपने स्तर से इस मृतक शिक्षक की पेंशन प्रकरण फाईल को तलब किया है।