शिवपुरी की राजनीति में संभावनाएं तलाश रहे थे गुलाब सिंह किरार

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प्रमोद भार्गव/शिवपुरी। व्यापमं का सरगना गुलाब सिंह किरार और उसका परिवार शिवपुरी की राजनीति में दखल चाहते थे। इस मकसद से इस परिवार के परिजनों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में घुसपैठ करने की पुरजोर कोशिश की थी लेकिन केवल धन और किरार जाति की बहुलता, इनके सत्ता हथियाने के आधार थे, इसलिए यहां की राजनीति में परिवर्तन की भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधराराजे सिंधिया ने इस किरार परिवार को कभी महत्व नहीं दिया।

अब व्यापमं घोटाले में प्रवेश के अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य गुलाब सिंह किरार और उनके चिकित्सक बेटे डॉ शक्ति सिंह के नाम, नामजद हो जाने से यह साफ हो गया है कि इस परिवार के लोग सियासी ताकत बढ़ाकर महज अपने आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे।

बरसाती मेढ़कों की तरह ऐन चुनाव के पहले सक्रिय हो जाने वाले डॉ गुलाब सिंह किरार परिवार के तीन-तीन सदस्य शिवपुरी की राजनीति में हस्तक्षेप चाहते थे। २००८ और २०१३ के विधानसभा चुनाव में सोची-समझी रणनीति के तहत ये लोग जिले की पोहरी विधानसभा सीट से टिकट चाहते थे। पोहरी क्षेत्र में किरार और ब्राह्मण मतदाता सबसे ज्यादा होने के कारण निर्णायक स्थिति में रहते हैं। इसलिए यहां से सामान्य सीट होने पर किरार और ब्राह्मण उम्मीदवार ही विधायक के रूप में चुने जाते रहे हैं।

वैसे यह परिवार भिंड जिले का निवासी है और ग्वालियर में रहकर चिकित्सा एवं रेलवे में ठेकेदारी के जरिए अपनी आजीविका चला रहा है। गुलाब सिंह खुद एमबीबीएस हैं। लेकिन उनको ठीक से जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने जोड़तोड़ बिठाकर १० साल में यह डिग्री हासिल की। बाद में उन्’होंने अपने बेटे शक्ति सिंह को पिछले दरवाजे से डॉक्टर बनवा दिया। यही नहीं २०१० में आयोजित हुई प्री-पीजी परीक्षा में उसका चयन गलत तरीके से करा दिया। वनरक्षकों की भर्ती में गुलाब सिंह ने दलाली का काम किया। अब पिता-पुत्र सीबीआई के शिकंजे में हैं। सीबीआई द्वारा दर्ज कराई प्राथमिकी में दोनों के नाम हैं। फिलहाल राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त गुलाब सिंह व उनके पुत्र फरारी में हैं।

गुलाब सिंह ने २००८ और २०१३ में भारतीय जनता पार्टी से पोहरी सीट से टिकट माँगा था। राजनीति में प्रभुत्व कायम करने की दृष्टि से गुलाब सिंह पहले अखिल भारतीय किरार समाज के दौलत की दम से राष्ट्रिय अध्यक्ष बने। २००३ में अध्यक्ष बनाए जाने की इस कड़ी में उनके भतीजे देवराज किरार ने प्रमुख भूमिका निभाई। देवराज के पिता कर्णसिंह ग्वालियर में रेलवे में बड़े ठेकेदार हैं। समाज के इस कार्यक्रम में विदिशा सांसद की हैसियत से शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद थे। यहीं से शिवराज और गुलाब सिंह के संबंध प्रगाढ़ होते चले गए। शिवराज शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया के वर्चस्व व जिद के चलते गुलाब सिंह को टिकट नहीं दे पाए। यशोधरा की पसंद पुस्तक विक्रेता और ईमानदार व्यक्तिव के धनी प्रहलाद भारती थे,उन्हें टिकट दिलाया। २०१३ में भी गुलाब सिंह ने टिकट हथियाने की कोशिश की,लेकिन यशोधरा ने मंसूबों पर पानी फेर दिया। बहरहाल शिवराज ने गुलाब सिंह को अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाने के साथ राज्यमंत्री का दर्जा देकर गुलाब सिंह कें राजनीतिक अहं की संतुश्टि की।

दूसरी तरफ देवराज ने २००८ में कांगे्रस से टिकट मंगा। देवराज सुभाष यादव के निकट आ गए थे। लेकिन शिवपुरी की कांग्रेस राजनीति में ज्योतिरादित्य की चलती थी,लिहाजा उन्होंने टिकट देवराज की बजाए हरिवल्लभ शुक्ला को दिया,जो अततः प्रहलाद से परास्त हो गए थे। बाद में देवराज की ग्वालियर के अपने ही घर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई और कांग्रेस को इस परिवार से छुटकारा मिल गया। किंतु अब देवराज की बहन श्रीमती सलोनी धाकड़ भाजपा में शामिल होकर टिकट हथियाने की होड़ में लग गई हैं। यह कोशिश उन्होंने २०१३ में भी की थी,लेकिन श्रीमति सिंधिया ने दाल नहीं गलने दी। लिहाजा सलोनी धाकड़ अब केंद्रीय खनिज मंत्री और ग्वालियर से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर के गुट से जुड़ गई हैं। बीते सप्ताह जब नरेंद्र सिंह पोहरी में थे, तब सलोनी ने मोहना से पोहरी और पोहरी से शिवपुरी के सड़क मार्ग को बड़े-बड़े वेनर पोस्टरों से पाट दिया था। सलोनी के पति ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल में डॉक्टर हैं। वही,उन्हें जातीय बहुलता के चलते पोहरी क्षेत्र की राजनीति में दखल के लिए उकसा रहे हैं। किंतु अब व्यापमं में ताऊ गुलाब सिंह और चचेरे भाई शक्ति प्रताप सिंह का नाम आ जाने के बाद सलोनी को पोहरी क्षेत्र सलोना बना रहेगा,यह उम्मीद कम हो गई है। बहरहाल पोहरी क्षेत्र में जबरन राजनीतिक पहुंच बनाने की होड़ में लगे इस परिवार का अपने ही हाथों अंत हो जाने से यहां के राजनीतिक हलकों में खुशफहमी है।
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