शिवपुरी-मनुष्यरूपी शरीर यदि मानव को मिला है तो उसे जनकल्याण,धर्मकल्याण के कार्य करना चाहिए, व्यक्ति को सर्वदा धर्माचरण करना चाहिए क्योंकि धर्म से ही व्यक्ति अर्थ(धन),काम और मोक्ष(मुक्ति) को प्राप्त होता है।
इस लोक के बाद किसी भी लोक में पुत्र, धन, स्त्री, यश काम में नहीं आता परलोक में केवल पुण्य काम आते है इसलिए पुण्योदय वाले कार्य करें इसके अलावा कलियुग में भगवान के भजन-कीर्तन भी मनुष्य का कल्याण करते है।
मनुष्य के कल्याण और कलियुग में धर्मकल्याण का यह मार्ग प्रशस्त किया पं.नरोत्तम शास्त्री (श्रीवृन्दावन धाम) ने जो स्थानीय श्री सोमेश्वर मंदिर पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम चरण में कथा समापन पर सुदामा चरित, शुकदेव कथा,पारीक्षत मोक्ष का वृतान्त श्रवण कराकर श्रीमद् भागवत कथा संपन्न हुई।
कथा में आज भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की सीख जनमानस को दी गई और बड़े ही सरल स्वभाव से कथा का वृतान्त सुनाया। इसके बाद कृष्ण-उद्वव संवाद तथा अंतिम में राजा पारीक्षित मोक्ष व शुकदेव जी की विदाई का प्रसंग श्रवण कराया गया।
कथा के अंतिम पलो में बड़े ही ज्ञानवर्धन उपदेश देते हुए पं.नरोत्तम शास्त्री ने कहा कि कलियुग के दोषों से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को स्वयं का कल्याण करने के लिए भगवान के भजन-कीर्तन करते रहना चाहिए, क्योंकि घोर कलियुग में व्यक्ति की आयु 40-50 वर्ष की रह जाएगी।
मंत्र-औषधि का प्रभाव घट जाएगा, तीर्थों में धार्मिक स्थलों पर केवल पाखंड रह जाएगा इसलिए कलियुग में भी मनुष्य अपने कल्याण के लिए धर्मोपकारी कार्य करें।
सभी के कल्याण एवं पापों के नाश के लिए अंत में यह श्लोक सभी श्रोताओं से उच्चारण करवाया- नाम संकीर्तन यस्य सर्वपाप प्रणाशनम्। प्रणामों दु:ख शमन्सतं, नमामि हरिपरम्।। इन्हीं सब पंक्तियों के साथ श्रीमद् भागवत कथा का समापन हुआ।
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