108 फुट की भगवान आदिनाथ की प्रतिमाँ का दर्शन अवश्य करें: आर्यिका ज्ञानमति

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शिवपुरी ब्यूरो।  महाराष्ट्र के मांगीतुंगी में 108 फुट की निर्मित हो रही प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमाँ का दर्शन अवश्य करें। यह मूर्ति फरवरी 2016 में आयोजित पंच कल्याणक के बाद प्रतिष्ठित हो जाएगी और विश्व की अद्वितीय कलात्मकता से सजी मूर्ति को देखने देश के ही नहीं बरन विदेशी पर्यटक भी उमड़ेंगे। उक्त उदगार महावीर जिनालय पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए गुरूवार सुबह गणनी आर्यिका ज्ञानमती माता जी ने व्यक्त किये।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 108 फुट की विशाल प्रतिमाँ का उल्लेख अब तक कहीं देखने को नहीं मिलता लेकिन जब 1996 में मांगीतुगी में चातुर्मास हुआ था तब वहां स्थित विशाल पहाड़ी को देखकर मन में भाव आया की यहां भगवान आदिनाथ की विशाल प्रतिमाँ निर्मित होनी चाहिये।

ताकि जैन संस्कृति के माध्यम से विश्व में हम अपनी धरोहर को संरक्षित और संवर्धित कर सकें। धर्मसभा से पूर्व आर्यिका चंदनामती माता जी ने मांगीतुंगी जायेंगे आदिनाथ को ध्यायेंगे। भजन गाकर के उपस्थित दर्शकों का मनमोह लिया और उन्होंने फरवरी माह में आयोजित होने वाले पंचकल्याणक में शिवपुरी के श्रावकों से भागीदारी करने का संकल्प भी दिलाया।

हस्तिनापुर के पीठाधीश स्वस्ती रविन्द्र कीर्ति स्वामी तो शिवपुरी वासियों की गुरूभक्ति से इतने प्रसन्न नजर आये की उन्होंने मांगीतुंगी में आयोजित पंचकल्याणक के दौरान शिवपुरी वासियों को अलग से शिवपुरी नगर बनाकर व्यवस्था देने का  वायदा किया। धर्मसभा का संचालन संजीव बाझल द्वारा किया गया।

कार्यक्रम के उपरांत मांगीतुगी स्वर्ण कलश रथ शिवपुरी से देश के विभिन्न हिस्सों में भ्रमण के लिए रवाना हुआ। रथ का राष्ट्रीय संयोजक सुरेश जैन मारोरा को बनाया गया। जबकि रथ का विधिवत उद्घाटन बचन लाल जैन पत्तेवालों द्वारा किया गया और आरती उतारने का शुभ अवसर पर चन्द्र कुमार वीरेन्द्र कुमार जैन पत्ते वालों को प्राप्त हुआ। मंगलाचरण कु. मेहुल जैन द्वारा किया गया।

पादप्रक्षालन, शास्त्र भेंट और आरती भी हुई
धर्मसभा के दौरान राजकुमार जैन जड़ी बूटी परिवार द्वारा आर्यिका ज्ञानमती माता जी का पादप्रक्षालन किया गया। जबकि चन्द्रसैन  आदीश जैन, वीरेन्द्र कुमार, पंकज जैन, अरिहंत फर्नीचर, रजनी जैन, संतोषी जैन, कमलश्री रावत, शशि जैन, प्रमिला जैन सहित कई श्रद्धालुओं ने आर्यिका ज्ञानमती माता जी और संघस्थ आर्यिका संघ को शास्त्र भेंट किये। जबकि आरती करने का शुभ अवसर पर राजुल महिला मंडल की सदस्यों को प्राप्त हुआ। 
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