भारतीय संस्कृति के नववर्ष का शुभारंभ होगा वैदिक रीति अनुसार

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शिवपुरी। नव संवत्सर 2072 हिन्दू नववर्ष के शु ाारंभ अवसर पर कल 21 मार्च को वैदिक संस्थान और पब्लिक पार्लियामेंट द्वारा वैदिक रीति के अनुसार हवन कर नववर्ष गुड़ीपड़वा मनाएगी, साथ ही नगरवासियों को तिलक लगाकर नववर्ष की शुभकामनाएं उक्त संस्थाओं के कार्यकर्ता देंगे।

वैदिक संस्थान और पब्लिक पार्लियामेंट से जारी प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया है कि राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति के लिए उक्त संस्थान कल सुबह माधवचौक पर हवन कार्यक्रम आयोजित करेंगी। नववर्ष के स्वागत के लिए संस्थानों द्वारा पूर्ण तैयारियां कर लीं गई हैं। प्रेस विज्ञप्ति में अपील की गई है कि कल होने वाले नवसंवत्सर कार्यक्रम में शहरवासी अधिक से अधिक सं या में उपस्थित होकर धर्मलाभ लें। 

विश्व गीता प्रतिष्ठान स्वाध्याय मण्डल भी मनायेगा नवसंवत्सर
नूतन वर्ष का अभिनंदन समारोह कार्यक्रम संवत 2072 शाके 1937 कल चौकसे की धर्मशाला के पास पर्यटक केन्द्र छत्री रोड पर विश्व गीता प्रतिष्ठानम स्वाध्याय मण्डल शाखा शिवपुरी द्वारा मनाया जायेगा। कार्यक्रम प्रात: 6 बजे प्रारंभ होगा। जिसमें स्वास्तिवाचन मंगलपाठ से कार्यक्रम का आगाज होगा। सूर्योदय के बाद सूर्य अभिषेक मंत्रोच्चार द्वारा होगा। 

प्रात: 6.25 पर सूर्य को अघ्र्यरोली, चावल, पुष्प एवं वेलपत्र समर्पण किये जायेंगे। 6.30 बजे आरती शंखवादन, झालर की झंकार होगी। प्रात: 6.35 पर ब्रह्मनाद ऊँ का उच्चारण किया जायेगा। 6.40 पर श्रीमद भगवतद गीता पूजन, संगीत वादन और तिलकोत्सव का कार्यक्रम आयोजित कियो जायेगा इसके बाद 6.50 पर नूतन वर्ष की शुभकामनाएं सहित मिलन समारोह होगा। 

कार्यक्रम के अंत में उपसंहार, प्रसाद वितरण किया जायेगा। स्वाध्याय मण्डल के सदस्यों ने अपील की है कि भागवान भास्कर का विधिपूर्वक अभिषेक कार्यक्रम में अधिक से अधिक सं या में शहरवासी उपस्थित हों, वहीं यह भी आग्रह किया गया है कि पुरूष सफेद व महिलाएं पीले, केसरिया और लाल वस्त्र पहनकर कार्यक्रम की भव्यता को बनाने में सहयोग प्रदान करें। 

नवसंवत्सर का ऐतिहासिक महत्व 
नवसंवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आज से लगभग 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 115 वर्ष पूर्व ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था, वहीं वर्तमान काल कलियुग में सम्राट विक्रमादित्य ने 2071 वर्ष इसी दिन राज्य स्थापित कर विक्रम संवत का आरंभ किया था। 12 महीने का एक वर्ष और सात दिन का सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही आरंभ हुआ।


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