राजनीति में किस्मत साथ हो तो रामसिंह भी गामा पहलवान हैं

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अशोक कोचेटा@चर्चित चेहरे/शिवपुरी। राजनीति में भाग्य का साथ कितना महत्वपूर्ण होता है इसकी नजीर जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव के व्यक्तित्व में देखी जा सकती है। चेहरे मोहरे, हाव-भाव और बातचीत से देखिये रामसिंह यादव कहीं से कहीं तक राजनैतिज्ञ नजर नहीं आते। उन्हें देखकर या तो अहसास होता है कि वह छोटे-मोटे व्यापारी हैं या फिर ग्रामीण परिवेश में पूरी तरह लिपटे एक किसान। 

वेशभूषा से व्यापारी दिखते हैं, लेकिन बोलचाल से किसान। राजनैतिज्ञों जैसे गुण या कहें अवगुण उनमें दूर से दूर तक कहीं नजर नहीं आता। इसके बावजूद भी राजनीति में छह साल पहले हुए विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाये तो शायद ही उन्हें कभी असफलता मिली हो। 

रामसिंह यादव इस समय इसलिए चर्चित हैं क्योंकि पूरे देश में कांग्रेस पराभव की ओर है और उसके विलुप्त होने का खतरा भी दिख रहा है, लेकिन शिवपुरी अपवाद है। कांग्रेस की पतन यात्रा शिवपुरी में कहीं से कहीं तक देखने को नहीं मिल रही। विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव, नगरपालिका, नगर पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायत में शिवपुरी जिले में कांग्रेस का परचम फहरा रहा है। 

कौन श्रेय नहीं देगा रामसिंह यादव को क्योंकि वहीं तो जिला कांग्रेस अध्यक्ष हैं। जहां तक रामसिंह यादव की राजनीति में व्यक्तिगत उपलब्धियों का सवाल है तो उन्हें अपने नसीब से ज्यादा ही मिला है। खतौरा जैसे छोटे से गांव में जन्मे रामसिंह यादव जनपद अध्यक्ष से लेकर दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष और दो बार कांग्रेस जिलाध्यक्ष के पद को सुशोभित कर चुके हैं। 

वर्तमान में वह कांग्रेस के जिलाध्यक्ष के साथ-साथ कोलारस विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं। राजनैतिज्ञों जैसे तेवर और आक्रामकता उनके व्यक्तित्व में कहीं से कहीं तक नजर नहीं आती। इसके बावजूद भी महल के सहारे उन्होंने राजनीति की सीढिय़ां चढ़ीं हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण उनकी सिंधिया परिवार के प्रति अगाध निष्ठा रही है। 

इस वफादारी की उन्होंने हर कीमत पर रक्षा की है। पूर्व मु यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सन 96 के चुनाव में गुना से उन्हें स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए टिकिट दिलवाया, लेकिन रामसिंह ने टिकिट लेने से इनकार किया। हालांकि यह बात भी कही जाती है कि उनके टिकिट लेने से इनकार करने के पीछे की पृष्ठभूमि में उन पर पड़ा गंभीर दबाव था, लेकिन सच्चाई कुछ भी हो, परंतु राजमाता के खिलाफ चुनाव न लडऩा राजनीति में आगे चलकर उनका सकारात्मक पक्ष ही बना। 

उनके जिलाध्यक्ष रहते शिवपुरी जिले में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पांच में से तीन सीटें जीतकर सभी को चौका दिया था। प्रदेश में शिवराज लहर के चलते जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन एक तरह से चमत्कार सदृश्य ही था। लोकसभा चुनाव में भी जब देश में मोदी लहर का जादू चल रहा था, लेकिन शिवपुरी जिले में तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद जिले में कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रामसिंह यादव के विधानसभा क्षेत्र से 30 हजार से अधिक मतों की और केपी सिंह के विधानसभा क्षेत्र पिछोर से भी लगभग इतने ही मतों की बढ़त बना ली थी। 

इसके बाद नगरपालिका, नगर पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायत चुनाव में भी रामसिंह यादव के नेतृत्व में कांग्रेस का परचम सबदूर फहरा। प्रत्यक्ष पद्धति के साथ-साथ अप्रत्यक्ष पद्धति के चुनाव में भी कांग्रेस भाजपा से कोसों आगे रही। 

हालांकि बहुत से लोग कांग्रेस की सफलता को एक अलग नजरिये से देखते हैं। वह रामसिंह को श्रेय देने के स्थान पर दलील देते हैं कि भाजपा की असफलता का कांग्रेस को फायदा मिला, लेकिन राजनीति में जीत अहम होती है और यही बात रामसिंह को अजेय योद्धा साबित कर रही है। 

भाई, पुत्री, भतीजा और नातिन को भी जिताया चुनाव
रामसिंह यादव के नेतृत्व के चलते उनकी पुत्री श्रीमती मिथलेश यादव निर्विरोध रूप से जनपद पंचायत बदरवास की अध्यक्ष बनने में सफल रहे, वहीं उनके भाई कप्तान सिंह तरावली पंचायत के सरपंच पद पर निर्वाचित हुए। भतीजा महेश यादव खतौरा पंचायत के सरपंच बनने में सफल रहे, जबकि नातिन नेहा यादव जनपद सदस्य पद पर निर्वाचित हुईं। 

अशोक कोचेटा
वरिष्ठ पत्रकार 
संपादक साध्यदैनिक तरूण सत्ता

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