घटस्थापना के साथ शुरू हुए चैत्र नवरात्र: मंदिरों में उमड़ा सैलाब

शिवपुरी। नवसंवत्सर 2072 के शुभारंभ के साथ ही आज से चैत्र मास का प्रारंभ हो गया है। जिसमें चैत्र नवरात्र भी प्रारंभ हो गये हैं और घटस्थापना के साथ ही मां की आराधना का दौर शुरू हो गया है।

आज नवरात्र के प्रथम दिन मां शैल पुत्री की आराधना मंदिरों में की गई, जहां मां के भक्तों का तांता लगा रहा और भक्त माता की आराधना में जुटे रहे। शहर के प्रमुख मंदिरों राजेश्वरी मंदिर, काली माता मंदिर, कैलामाता सहित अनेक मंदिरों पर मां के भक्त पूजा आराधना के लिए पहुंचने शुरू हो गए।

वहीं चैत्र नवरात्रों में मेले लगने का भी चलन है और शहर से दूर जंगलों में स्थित मंदिरों पर मेले लगने की भी तैयारियां शुरू हो गई हैं।  नववर्ष पर जहां पूरे शहर को भगवा रंग से सजाया गया है। वहीं मंदिरों पर भी विशेष विद्युत साज-सज्जा की गई है और फूल मालाओं से मंदिरों को सजाया गया है।

विदित हो कि हिंदू कैलेण्डर के अनुसार आज नव संवत्सर पर शक्ति की अवतार मां भवानी के 9 रूपों का पूजन किया जाता है और यह सिलसिला 9 दिनों तक चलता है। जिसमें मां के रूपों का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। साथ ही मंदिरों पर मेले भी लगाए जाते हैं। शहर से 40 किमी दूर जंगल में स्थित मां बलारी माता मंदिर पर विशाल मेले का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है और इस वर्ष भी मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं।

वहीं राजेश्वरी मंदिर और काली माता मंदिर पर भी मेले का आयोजन किया जाता है। जिसकी तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं। इन 9 दिनों में शहरभर के देवी मंदिरों व शक्तिपीठों पर अगाद श्रद्धा और भक्तिभाव व धूमधाम बनी रहती है। जिससे पूरा शहर मां की भक्ति में लीन दिखाई देता है।

बलारी मेले में पशु बलि का विरोध
चैत्र नवरात्र के साथ ही मेलों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। शहर से लगभग 40 किमी दूर सबसे प्राचीनतम और सिद्धस्थल मां बलारी पर बलि देने की प्रथा है, लेकिन पशु बलि विरोधी समिति इसे अंधविश्वास बताते हुए उक्त पशुओं की बलि देने का विरोध जता रही है और प्रशासन से मांग की है कि धार्मिक स्थलों पर पशु बलि की प्रथा को खत्म किया जाये।

समिति से जुड़े महेन्द्र दुबे का कहना है कि जागरुकता के अभाव में लोग इस तरह की प्रथा का अंधानुकरण करते हैं। उन्होंने कहा है कि बलारी माता साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा हैं और ईश्वर कभी किसी भी पशु या मनुष्य को हानि पहुंचते नहीं देख सकते हैं और मां तो संसार के सभी जीवों और मनुष्यों को अपनी संतान मानती हैं और वह संतान को कभी कटते हुए नहीं देखना चाहती है। उनकी मांग है कि शासन और प्रशासन ऐसी कुप्रथाओं पर शीघ्र अतिशीघ्र अंकुश लगाये।