शिवपुरी में भाजपा का गिरा ग्राफ, कांग्रेस पर भी नहीं भरोसा, कैसे हो विकास

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शिवपुरी। वाकई में इसे शिवपुरी का दुर्भाग्य ही कहेंगें कि आज प्रदेश और देश में भले ही भाजपा सत्तासीन हो लेकिन अंचल में जो हालात भाजपा के है वह दुर्दशा बताने के लिए काफी है। क्योंकि यहां भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव में जो हार का स्वाद चखा तो उससे उब नहीं पा रही है वहीं जनता की अपेक्षाऐं इन दिनों कांग्रेस पर खरी नहीं उतर रही। इससे शिवपुरी का विकास पिछड़ता हुआ नजर आ रहा है। यहां अब शिवपुरी में जहां भाजपा का ग्राफ गिरा तो कांग्रेस से जनता को अपेक्षा नहीं ऐसे में शिवपुरी का विकास कैसे हो यह यक्ष प्रश्र हरेक आमजन के मन में है।

देश और प्रदेश में भाजपा की सत्ता होते हुए शिवपुरी जिला इस मायने में अपवाद है कि यहां प्रथम दृष्टि में भाजपा की तुलना में कांग्रेस का ग्राफ अधिक ऊंचा दिख रहा है। पांच में से तीन विधायक कांग्रेस के हैं, सांसद कांग्रेस के हैं, नगरपालिका में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस का कब्जा है, जिले की अन्य नगर पंचायतों में करैरा को छोड़कर कांग्रेस काबिज है। जनपद और जिला पंचायत चुनाव में भी भाजपा के लिये अच्छे आसार नजर नहीं आ रहे। भाजपा क्यों पिछड़ रही है? इस सवाल का जबाव चाहे कुछ भी हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके बाद भी कांग्रेस से जनता खुश नहीं है। यह बात अलग है कि एक से निराश हो तो दूसरे को चुनना पड़ता है और विकल्पहीनता की स्थिति में तो दूसरे को चुनने के अलावा और किया भी क्या जा सकता है? ऐसी स्थिति में शिवपुरी की जनता पशोपेश की स्थिति में है कि आखिर वह करे तो क्या करे। दिल्ली की जनता की तरह उसके पास कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीसरा विकल्प नहीं है।

इसे शिवपुरी का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहेंगे कि लगभग 30-35 वर्षों से कांग्रेस और भाजपा दोनों दल जनता को सिंध नदी के पानी के नाम पर छलते रहे हैं। 80 के दशक में सिंध के लिये कांग्रेस ने आंदोलन चलाया और तत्कालीन कृषि मंत्री दाऊ हनुमंत सिंह ने पड़ोरा के रास्ते सिंध का पानी शिवपुरी लाने की योजना बनाई, लेकिन जब तक यह योजना अंजाम तक पहुंची तब तक उस क्षेत्र में सिंध का पानी इतना पर्याप्त नहीं रहा था कि उसे शिवपुरी लाया जाये और फिर नये सिरे से मड़ीखेड़ा से सिंध नदी का पानी शिवपुरी लाने का कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने सपना दिखाया। दोनों दल दावा करते हैं कि सिंध परियोजना उनकी मेहनत से मंजूर हुई। फिर श्रेय लूटने के चक्कर में अडग़ेबाजी भी शुरू हो गई और यह अड़ंगा आज भी लग रहा है।

सवाल यह है कि जब प्रदेश और देश दोनों में भाजपा की सत्ता है तो इस योजना की राह में व्यवधान क्यों नहीं दूर हो पा रहे? यही कारण है कि भाजपा का शिवपुरी में ग्राफ गिर रहा है। जब पूरे देश में मोदी का परचम और प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की लहर है इसके बाद भी जिले में भाजपा की लोकप्रियता आश्चर्यजनक रूप से कम हो रही है। यह भाजपा से निराशा का ही परिणाम था कि जिले की पांच सीटों में से भाजपा मात्र दो सीटें जीत पाईं वह भी उस स्थिति में जबकि एक सीट पर जनाधार संपन्न यशोधरा राजे सिंधिया उ मीदवार थी और उन्हीं के प्रभाव के कारण माना जाता है कि पोहरी सीट भी भाजपा की झोली में गई।

कांग्रेस से शिवपुरी की जनता की निराशा का परिणाम लोकसभा चुनाव रहा, जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवपुरी शहर से 15 हजार मतों से पराजित हो गये। विधानसभा और लोकसभा के परिणाम भाजपा और कांग्रेस को आइना दिखाने के लिये पर्याप्त हैं। कांग्रेस भले ही अपने आपको दिलासा दे कि नगरपालिका चुनाव में उसने भाजपा पर जीत हासिल कर ली है, लेकिन इस दिलासा का कोई अर्थ नहीं है। भाजपा की नगरपालिका में पराजय उसके पिछले कार्यकाल के कारण हुई है और जनता ने कांग्रेस को नहीं चुना, बल्कि कंधा बदलने का काम किया है। भाजपा के कामकाज से जनता ाुश होती तो नगरीय निकाय चुनाव में उसे खाली हाथ नहीं बैठना पड़ता।

भाजपा की कमजोर स्थिति का कारण इस दल में व्याप्त घोर अनुशासनहीनता भी है। विधानसभा और नगरपालिका चुनाव में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दलीय उ मीदवारों के खिलाफ काम किया, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। नगरपालिका उपाध्यक्ष चुनाव में तो भाजपा के कतिपय पार्षद जिनके नाम जाने पहचाने हैं वे कांग्रेस के हाथों बिक गये, लेकिन उनके खिलाफ कार्यवाही करने का साहस भाजपा संगठन नहीं दिखा पाया। भाजपा से निराश जनता ने कांग्रेस को चुना है, लेकिन कांग्रेस भी जनता की नजरों में चढ़ी हो ऐसा कहीं से कहीं तक नजर नहीं आता। जिले में कांग्रेस संगठन हताशा की स्थिति में है और जिलाध्यक्ष रामसिंह यादव लगभग एक साल से पद मुक्ति की राह देख रहे हैं। कांग्रेस जिले में कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रही। जनता के साथ खड़े होने का नैतिक साहस भी कांग्रेस नहीं दिखा पा रही। इसके बाद भी यदि कांग्रेस कहीं जीतती है तो उसका एकमात्र कारण है कि कांग्रेस की तुलना में जनता भाजपा से अधिक निराश है, लेकिन इससे जनता विकल्पहीनता की स्थिति में है, यह अवश्य जाहिर हो रहा है। 

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