गुरू को दिमाग से चुनें, लेकिन चुनने के बाद हृदय से स्वीकारें

शिवपुरी। अपने मामा की प्रेरणा से 16 वर्ष पूर्व जैन दीक्षा लेने वालीं साध्वी वैभवश्री जी के साध्वी जीवन का ही यह चमत्कार है कि उन्होंने लगभग अपने पूरे परिवार को संन्यास जीवन धारण करने की प्रेरणा दी। उनकी मां साध्वी निहारश्री जी और बहन साध्वी देशनाश्री जी के साथ उनके मामा की बेटी साध्वी चरमश्री जी उनके साथ साध्वी जीवन में है जबकि उनकी एक बहन क्षुल्लिका प्रतिभा पावनी जी ने तो एक कदम बढ़कर क्रांतिकारी रूप से श्वेता बर जैन समाज की पहली क्षुल्लिका होने का गौरव प्राप्त किया है।

इतनी सारी परिवार की महिलाओं को दिशा देकर उनमें नारी शक्ति की महिमा का भाव जाग्रत करने वाली साध्वी वैभवश्री जी जैन धर्म की इस प्रचलित भ्रांत धारणा को नहीं मानती कि जैन दर्शन में किसी महिला को मोक्ष की पात्रता नहीं है। उन्हें इस बात से भी आपत्ति है कि नव दीक्षित संत को वर्षों से दीक्षित साध्वियों की तुलना में इसलिए पूज्यनीय माना जाये क्योंकि वह पुरूष हैं। बकौल साध्वी वैभवश्री जी ये सारी भ्रांत धारणाएं पुरूष प्रधान समाज और कतिपय आचार्यांे की देन है और शास्त्रों में इसका कोई उल्लेख नहीं है।

इंदौर में मार्च में आयोजित साधू स मेलन के लिए कानपुर से अपनी सतियों के साथ पद बिहार करती हुईं शिवपुरी आईं साध्वी वैभवश्रीजी ने कहा कि जैन धर्म वैज्ञानिक धर्म है और यह आरोप गलत है कि जैन दर्शन में स्त्रियों के प्रति पक्षपात की भावना है। यदि कहीं यह भावना दृष्टिगोचर होती है तो इसके लिये पुरूष प्रधान समाज की मानसिकता से ग्रस्त कतिपय आचार्य जि मेदार हैं। जिन्होंने तथ्यों को सही रूप में प्रस्तुत नहीं किया।

साध्वी वैभवश्री जी ने स्पष्टतौर पर कहा कि 19 वें तीर्थंकर भगवान मल्लीनाथ ने मोक्ष स्त्री जीवन में प्राप्त किया था। भगवान महावीर ने भी साध्वियों को काफी प्रमुखता और वरियता दी थी। उनके टोले में उन्होंने साध्वी चंदनवाला को प्रवृतनी बनाया था। संतों की तुलना में साध्वियों ने संन्यास मार्ग अधिक ग्रहण किया है और जीवन के चरम लक्ष्य को भी पुरूषों की तुलना में अधिक प्राप्त किया है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में ज्ञान की महता है। जो ज्ञानवान होता है वह पूज्यनीय होता है। इसमें लिंग भेद का क्या मूल्य? जब उनसे पूछा गया कि जैन धर्म में वर्षों पुरानी दीक्षित साध्वी को नवीन साधू की वंदना करनी पड़ती है तो उनका जबाव था कि आदरणीय सभी होते हैं, लेकिन पूज्यनीय वही होता है जो ज्ञानवान होता है।

वह नवदीक्षित साधू को सिर्फ नमोस्तू कहती हैं। जब उनसे पूछा गया कि उनके लिए ज्ञान का क्या अर्थ है तो उनका जबाव था कि ज्ञानवान वह होता है जो भीतर की सारी जटिलताओं और गं्रथियों से मुक्त हो गया हो। जिसकी समदृष्टि होती है और जिसमें न तो उच्चता और न ही हीनता की भावना होती है। साध्वी जी से सवाल किया गया कि अक्सर कहा जाता है गुरू के दरबार में दिमाग को छोड़कर और दिल को साथ लेकर जाना चाहिए शायद इसी कारण आशाराम और रामपाल जैसे दानवी प्रवृत्ति के संतों का फैलाव हुआ तो साध्वी जी का जबाव था कि पानी पियो छानकर और गुरू मानो पहचानकर। अर्थात् गुरू बनाने से पहले हर तरह की परीक्षा करना चाहिए लेकिन जब एक बार गुरू बना लिया तो फिर उनके साथ दिमाग का नहीं दिल का रिश्ता रखना चाहिए।

विशेष योग्यताधारक साधिका ही बन पाती है क्षुल्लिका: पावनी बहन
साध्वी वैभव श्री जी की बहन पावनी बहन भी संन्यस्थ हैं, लेकिन साधू जीवन की कठोरताओं और मर्यादाओं से उन्होंने कुछ मुक्ति पा ली है। क्षुल्लिका जीवन अपनाने वाली पावनी बहन श्वेता बर जैन समाज की पहली क्षुल्लिका हैं। समाज में क्रांति लाने का यह साहस विराट गुरू की प्रेरणा से संत सुमिती प्रकाश ने दिखाया है जिन्होंने पावनी बहन को पहली क्षुल्लिका दीक्षा दी।

पावनी बहन की मानें तो साध्वी जीवन अपनाने के लिए किसी विशिष्टता की आवश्यता नहीं है, लेकिन क्षुल्लिका होने के लिए एक्स फेक्टर होना अत्यंत आवश्यक है। उनके अनुसार साधू और साध्वी जहां आत्मकेन्द्रित होते हैं वहीं क्षुल्लिका का जीवन समाज केन्द्रित होता है अर्थात् समाजसेवा की भावना जिनमें प्रबल हो वह साध्वी बनने की अपेक्षा क्षुल्लिका बनना पसंद करें। वह कहती हैं कि साधू-साध्वी तंत्र-मंत्र, ज्योतिष आदि के ज्ञान से दूर रहते हैं और इसमें लिप्त होने की प्रेरणा भी नहीं देते जबकि क्षुल्लिका जीवन में वह इस ज्ञान का उपयोग करती हैं और समाज को नई दिशा देती हैं।

वह मानती हैं कि क्षुल्लिका दीक्षा की प्रथा बढऩे से जैन संस्कृति का जन जीवन में अधिक फैलाव होगा। साधू-साध्वी जहां जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं क्षुल्लिका साधिका संसार को सुंदर बनाने का उपाय बताती हैं।
अपने सांसारिक जीवन को कैसे जैन धर्म के अनुरूप बनाया जाये इस पर विशेष जोर क्षुल्लिका साधिका देती हैं।

भविष्य में साध्वी भी बन सकती हैं क्षुल्लिकाएं
साध्वी वैभवश्री जी ने बताया कि क्षुल्लिका साधिका साध्वी बन सकती हैं, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या साध्वियों का क्षुल्लिका बनने के लिए भी मार्ग खुला हुआ है तो हिचकिचाहट के साथ उन्होंने जबाव दिया कि अभी ऐसा नहीं है, लेकिन यदि आचार्य चाहेंगे तो ऐसा हो सकता है। वैसे उनका मानना है कि छूट मिलने से खतरे भी बढ़ जाते हैं और शायद इसी आशंका के कारण साध्वियों को क्षुल्लिका दीक्षा की इजाजत अभी नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि क्षुल्लिका पावनी बहन के बाद अब दूसरी क्षुल्लिका साधिका सुश्री राशि जैन होने जा रही है अभी वह धर्म प्रचार के लिए विदेश में है।